Saturday, 24 December 2016

जनता को लुभाने की तैयारी...


उत्तराखंड,यूपी, गोवा समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है ऐसे में अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां अभी से जनता को लुभाने की तैयारी में डटी हुयी है। क्या सड़क,क्या पुल,क्या स्टेडियम जो भी मिल रहा है उसका शिलान्यास हो रहा है ऐसा लग रहा है मानो साल भर का काम इन 2-4 दिनों में पूरा करना है। मतलब पार्टियाँ अब हर कीमत पर जनता को लुभाना चाहती है चाहे इसके किये उन्हें कुछ भी करना पड़े। अब जो भी करना है आम लोगों को करना है, इस बात पे ध्यान देना चाहिए की खोखली बातों पर न आएं वरना अपने ही नेता आपके लिए मुसीबत बन जाएंगे।               
                                  हर कोई यही चाहता है कि उसके छेत्र का विकास हो, उसके राज्य का नाम भी देश भर में घूंजे, लेकिन इसके लिए कोई काम नहीं करता। मतलब सब सोचते है लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं करता नतीजा ये रहता है कि राज्य कभी विकास रथ पर सवार नहीं होता और ज्यों का त्यों ही रहता है। आज अगर बात उत्तराखंड की करें तो इस राज्य को बने हुए 16 साल हो चुके है तबसे यहाँ 16 अच्छे अस्पताल तक नहीं है,16 उच्च शिक्षा संस्थान तक नहीं है ऐसे में यही तो माना जायेगा की 16 साल में यहाँ कुछ नहीं हुआ बस सरकार बदली है नेता लोग बदले है। वादें सबके एक ही थे, भाषण सबके एक ही थे और घोषणाएं भी लगभग एक ही थी लेकिन किसी एक ने भी कुछ काम नहीं किया लेकिन अब चुनाव नजदीक है तो फिर से उद्धघाटनों का सिलसिला शुरू हो चूका है, जो फ्लाई ओवर 2-3 साल से जमे हुए थे वो एक महीने में बनकर तैयार हो गए है, जिस स्टेडियम को बनने में सालों लग गए उसके बदले दो स्टेडियम टेगार हो गए वो भी कुछ महीनों में। विकास का हक़ हर किसी का है लेकिन सिर्फ सत्ता पे आने के लिए वोट मांगना भीख मांगने जैसा है, मंत्री बनकर लोगों की सेवा करो तो जिंदगी भर लोग तम्हे याद रखेंगे लेकिन सिर्फ नेतागिरी करोगे तो जिस गली से गुजरोगे वहां गलियां पड़ेगी। उम्मीद है कि इस चुनाव में जनता दिमाग खर्च करके कुछ अच्छे लोगों को राज्य की जिम्मेदारी देगी।

Thursday, 22 December 2016

टूटने लगा है सब्र का बांध..



नोटबंदी को 50 दिन होने वाले है, पिछले डेढ़ महीनों से आम जनता एटीएम और बैंक के बाहर कतारों में खड़ी है, कोई अपनी इच्छा से तो कोई मज़बूरी है लेकिन अब वो वक़्त आ चूका है जब लोगों कुछ रुपयों के लिए कई घंटों तक लाइन में खड़े रहे, अब लोगों में सब्र का बांध डगमगाने लगा है और वो आक्रोशित होते दिख रहे है और हो भी क्यों न क्योंकि वो भी देख रहे है कि कहीं चायवाले के पास से करोड़ों रुपए निकल रहे है तो कहीं बैंक अधिकारी ही नई करेंसी को ठिकाने के लिए हाथ काले कर रहे है। नोटबंदी का फैसला अभी बहुत कुछ दिखाएगा..
     
               मोदी सरकार ने देशवाशियों से  50 दिनों का समय माँगा ताकि वो इन 50 दिनों में स्तिथि को सामान्य बना सके और आम लोगों को थोड़ी रहत दे सके लेकिन ये 50 दिन सरकार और आम जनता दोनों के लिए किसी चुनोती से काम नहीं दिख रही है। आम लोगों के लिए रोज-रोज बैंक और एटीएम के बहार खड़ा होना अब मुश्किल होता जा रहा है और ऊपर से सरकार अभी तक नियम पे नियम बदल रहे है जिससे लोगों में सरकार को लेके और ज्यादा गुस्सा है और हो भी क्यों न एक तो सरकार का इतना बड़ा फैसला ले लिया और ऊपर से नियम पे नियम खोजे जा रहे है ऐसे में आम जनता जाये तो जाये कहाँ ?लोगों की माने तो फैसला अच्छा है लेकिन नियम एक ही होना चाइये था बार बार नियम में बदलाव करने से सिर्फ आम लोगों को दिक़्कतें हो रही है। सरकार अपने फैसले से खुद को बचती भी दिख रही है तो वहीँ विपक्षी किसी भी मौके का फ़ायदा छोड़ना नही चाहते। अब इस घडी में भी पक्ष-विपक्ष करना कहीं की समझदारी नहीं लेकिन यही तो नियम है हमारे देश का।  अभी नोटबंदी ने जन्म लिया है , 50 दिन होने में समय है तो अंदाजा लगाया जा सकता है की नोटबंदी भी बहुत कुछ नया दिखाएगी..... 

Saturday, 17 December 2016

हर तरफ पिंक घोटाला..


बड़ा अजीब देश है हमारा, एक तरफ यहाँ लोगों से देश के विकास की बात बोली जाती है तो दूसरी तरफ कुछ लोग अंदर ही अंदर देश को खोखला करने पे तुले हुए है. जिस बैंक को आम जनता सुरक्षा के लिहाज से अपना समझती है आज वही बैंक में बैठे अधिकारी आम लोगों को धोका दे रहे है. नोटबंदी के बाद से ही आम लोग बैंक के बाहर लंबी लंबी कतारों में लगे है ताकि उन्हें घर चलाने के लिए 2-4 हज़ार रुपये मिल जाये तो वहीँ दूसरी तरफ बैंक के अंदर बैठे अधिकारी आम जनता की रुपए का सौदा कर रहे है.
       इसे नोटबंदी का असर कहें या बैंकों की गलती की आज कालेधन को बढ़ावा देने में जो सबसे आगे खड़ा दिख रहा है वो है बैंक, सुनकर अजीब लगेगा लेकिन ये एक घिनोनी सच्चाई है हमारे देश की जहाँ कालेधन को सफ़ेद करने का सारा दामोदर बैंकों के कंधों पर है. आम लोग सुबह से शाम तक बैंक के बाहर खड़े है तो कुछ बैंक के कर्मचारी और अधिकारी बड़े लोगों के लाखों-करोड़ों रुपए को वाइट करने का काम कर रहे है. नोटबंदी के बाद से अभी तक 12 राज्यों से 400 करोड़ से ज्यादा की ब्लैकमनी पकड़ी जा चुकी है, अकेले चेन्नई से 150 करोड़ के कालेधन का पर्दाफाश हुआ है, मतलब वो लोग पागल है जो कहते थे,"की भारत एक गरीब देश है"। अरे..! हमारा देश बिलकुल भी गरीब नहीं है, यहाँ के बाथरूम से 50 करोड़ रुपए निकलते है और ऑफिस,घरों से 100 करोड़। नोटबंदी के बाद हर तरफ आयकर विभाग की छापेमारी जारी है, कहीं नए करेंसी के करोड़ों नोट मिल रहे है तो कहीं करोड़ों का सोना, एक सवाल तो सबके मन में है कि जब सरकार दावा कर रही है कि बैंकों और एटीएम में कैश नहीं है तो ये करोड़ों नए नोट कहाँ से आ रहे है? आम जनता को तो 2000 रुपए भी मुश्किल से नसीब हो रहे है तो कुछ लोगों के पास नए करेंसी की भरमार है। मतलब साफ है कि कुछ बैंक के अधिकारी भी ऐसे लोगों का साथ दे रहे है जो भ्रस्ट है, कुछ परसेंट का कमीशन लेकर बैंक अधिकारी करोड़ों की ब्लैकमनी को सफ़ेद करने में मदद कर रहे है, ऐसे में वो आम लोगों को धोका दे रहे है, ये कैसा देश में हरा, अभी तो नए नोटों को आए एक ही महीना हुआ है और अभी से नए नोटों की काला बाजारी आसमान छू रही है।

Friday, 9 December 2016

अम्मा जैसा कोई नहीं...

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जिन्हें पूरा देश अम्मा के नाम से भी जानता था, आज देश उनके लिए आसूं बहा रहा है उनके निधन से मानो हर कोई सदमे में है, उनकी लोकप्रियता पूरा देश देख रहा है, तमिलनाडु में जयललिता की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यहां 'अम्मा' या मां का दर्जा मिला हुआ था। एक ऐसा नाम जिसके सामने हर कोई अपना सर झुकता था और झुकाये भी क्यों नहीं क्योंकि जयललिता ने हमेसा गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है, उन्होंने न सिर्फ तमिलनाडु की राजनीती में राज किया बल्कि वहां के हर एक जनता के दिल में भी राज किया और नतीजा ये रहा कि "अम्मा" तमिलनाडु में सिर्फ एक नाम नहीं रहा बल्कि ये एक ब्रांड बन गया। 

           तमिलनाडु की राजनीती में जयललिता का नाम हमेसा याद रखा जायेगा, तीन बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया और हर बार वहां की आम जनता के लिए अपने आप को समर्पित किया। हम सब ने इंद्रा अम्मा भोजनालय का नाम सुना है, ये नाम जयललिता से ही आया है क्योंकि उन्होंने ही गरीब लोगों के लिए एक ऐसे भोजनालय की शुरुवात करी जिसमे मात्र पाँच रुपए में भर पेट खाना मिल सके, इतनी महँगाई में अगर कोई पाँच रुपए में भर पेट खाना खिला दे तो आप उसे जिंदगी भर याद तो रखोगे ही, इसके अलावा उन्होंने अम्मा फार्मेसी की भी शुरुवात की ताकि गरीब लोगों को बेहद सस्ते रुपए में जरुरी दवाईयां मिल सके। उन्होंने हमेसा ही जरूरतमंद लोगों की सहायता की, हमेसा इस बात पे ज्यादा ध्यान दिया की उनके राज्य में हर कोई खुश हाली से जीवन बिता पाये और इसके लिए उन्होंने बहुत से ऐसे कदम भी उठाये जो कोई और सोच भी नहीं सकता. अम्मा नाम तमिलनाडु में इतना ज्यादा लोकप्रिय है कि इस नाम से वहां 80 प्रतिशत मार्केट चलता आया है, अम्मा भोजनालय से लेकर अम्मा लैपटॉप तक हर तरफ़ सिर्फ एक ही नाम,अम्मा। उनके निधन की खबर मिलते है पूरा तमिलनाडु मानो थम सा गया, लाखों लोगों के लिए ये खबर किसी झटके से कम नहीं थी और भी क्यों न क्योंकि जयललिता सिर्फ एक मुख्यमंत्री नहीं थी बल्कि वो तो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए अम्मा थी। सच में..! उनके जैसा कोई नहीं हो सकता, उनके जाने का सबको दुःख है क्योंकि वो एक ऐसी सख्सियत थी जिसे हर कोई भगवान मानता था।

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी का एक महीना...

केंद्र सरकार के नोटबंदी फैसले को एक महीने का समय हो चूका है, 8 नवंबर को अचानक जब ये फैसला सामने आया तब पुरे देश में रुपए को लेकर हाहाकार मच उठा, इस एक महीने में हमारे देश में बहुत सी नई तसवीरें सामने आई, कहीं बैंकों में लंबी-लंबी लाईने लगी तो कहीं एटीएम के बाहर लोग कैश के लिए संघर्ष करते दिखे.लड़ते भी दिखे. कुछ नजरें तो सच में अलग ही मिले, कहीं नालों में 500-1000 के नोट तैरते मिले तो कहीं जंगलों में लाखों रुपये से भरे बैग मिले, ये सब तस्वीरें पिछले एक महीने में हमारे देश में देखने को मिली.

        एक तरफ नोटबंदी के फैसले से आम लोग खुश दिखे तो विपक्षी पार्टियों में इसके ख़िलाफ़ आक्रोश दिखा, लेकिन सच्चाई ये भी है कि जनता के हित में लिया गया ये फैसला कहीं न कहीं जनता को ही भारी पड़ रहा है क्योंकि पिछले एक महीने से हिन्दुस्तान एटीएम और बैंक के बाहर खड़ी दिख रही है। केंद्र सरकार ने कालेधन को खत्म करने के लिए ये कदम तो उठाया लेकिन जो होमवर्क उन्हें करना चाहिए था वो उन्होंने नहीं किया और नतीजा हम सब देख रहे है कि आज आम जनता छोटे नोट के लिए इधर-उधर भटक रही है. नवंबर का महीना देश भर में कालाधन रखने वालों के लिए बुरा वक़्त लेकर आया, सही मायनों में तो दिवाली इस महीने हुई है, कालेधन वालों के ऊपर मोदी सरकार ने जो पटाखा फोड़ा है उसकी गूँज हमेसा उनके कानों पर रहेगी। लेकिन एक बात बड़ी अजीब सी लगी कि कुछ समय पहले तो हर कोई मोदी सरकार को कालेधन को खत्म करने के लिए गुज़ारिश कर रहा था, और जब इसके लिए मोदी सरकार ने ठोस कदम उठाया तो हर कोई इसपे टिप्पणी करने लग गया, इस तरह का कदम उठाना हमारे देश के लिए बहुत जरुरी हो चूका था क्योंकि कालेधन रखने वाले एक दीमक की तरह देश को अंदर से खोकला कर रहे थे ऐसे में नोटबंदी से उनपर कुछ लगाम को ज़रूर लगेगी। इस फैसले का हम सब स्वागत करते है क्योंकि देश के आने वाले बेहतर कल के लिए ये फैसला बिल्कल सही है।

Monday, 5 December 2016

श्रद्धांजलि नहीं सुरक्षा चाहिए...

बहुत बर्दाश कर लिया..बहुत आसूं बहा लिए..बस अब आर-पार की लड़ाई चाहिए..!! ये बात पूरा हिंदुस्तान बोल रहा है, 125 करोड़ भारतियों की एक ही तम्मना की पाकिस्तान के साथ भी वैसा ही किया जाये जैसा हमारे साथ होता रहा है, पाकिस्तान की तरफ से आतंकी हमला और गोलाबारी अब भारतीय सेना के लिए आम बात हो चुकी है, पाकिस्तान ने एक मुल्क होने का हक़ खो दिया है, रोज़ाना वो हमारे वीर सपूतों पर गोलियां बरसा रहे है और हम अपने जवानों को खो रहे है. आज वीर जवानों की शाहदत पर सब गर्व कर रहे है और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे है लेकिन सच कहूँ तो हमारे जवानों को श्रद्धांजलि नहीं बल्कि सुरक्षा चाहिए. 
        कभी सोचा है कि सिर्फ हिंदुस्तानी फ़ौज ही हमेसा हमलों की शिकार क्यों बनती है?इतने बड़े देश की सुरक्षा करने वालों को हम इतने जल्दी कैसे खो देते है?क्या हमारी सरकार इतनी कमज़ोर है कि वो हमारे जवानों की सुरक्षा तक नहीं कर सकती? बड़ा अफ़सोस होता है देखकर कि हम शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दे देते है, उनके लिए कैंडल मार्च करते है लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाते. करोड़ों-अरबों रुपए है हमारी सरकार के पास,आधुनिक टेक्नोलॉजी भी है लेकिन बावजूद इसके हमारे जवानों के पास कुछ ऐसी सुरक्षा नहीं है जिससे वो अपनी जिंदगी को सुरक्षित कर सके, न जवानों को बुलेट प्रूफ कवच दिया गया है न ही आधुनिक हतियार ऐसे में सिर्फ ऐके-47 से कैसे लड़ेंगे हमारे जवान, जरा सी चूक और आतंकी हमला..पहले पठानकोट हमला, फिर उड़ी में सेन्य आतंकी हमला और उनके बाद अब नगरोटा में आतंकी हमला, आतंकवादी हमला तो मानो पाकिस्तान के लिए बहुत छोटी बात है जिसे वो आये दिन अंजाम देते है और हिंदुस्तान आये दिन झेलता है लेकिन कब तक? उनके बलिदान को व्यर्थ क्यों जाने दे, वक़्त आ गया है कि हमारे जवानों को आधुनिक हथियार दिए जाये और उनकी सुरक्षा को बढ़ाया जाए क्योंकि वो सुरक्षित रहेंगे तो हमारा देश सुरक्षित रहेगा।

Friday, 2 December 2016

हम किसी से कम नहीं...


आज विश्व दिव्यांग दिवस है, दिव्यांग लोगों के लिए ये दिन बेहद ख़ास माना जाता है क्योंकि इस दिन शारीरिक रूप से कमज़ोर लोगों को बढ़ावा दिया जाता है और कोशिश की जाती है कि उन लोगों की जिंदगी में थोड़ी ख़ुशी लाई जाये, दिव्यांग लोगों को हमारे समाज में क्रूरता की नज़र से देखा जाता है, उनके शारीरिक क्षमता का भी मज़ाक बनाया जाता है जो की बहुत गलत बात है क्योंकि वो भी इंसान ही है, ईश्वर में सबको एक समान बनाया है तो उस ईश्वय के इन इंसानों से दूरी क्यों?
              आज दिव्यांग बच्चे हो या युवा हर कोई अब इस समाज को समझ रहा है और हर छेत्र में आम युवायों की तरह आगे बढ़ रहा है, ऋषिकेश में एक स्पेशल स्कूल है जिसमे बहुत सारे दिव्यांग बच्चे पढ़ाई करते है और उन्हें वहां आम बच्चों की तरह सिखाया जाता है और समाज में खड़े होने के काबिल बनाया जाता है, यहाँ से बच्चे पढ़-लिखकर अब आम जिंदगी गुजार रहे है. ऐसे ही बहुत से स्कूल हमारे देश में हैं, जो शारीरिक रूप से कमज़ोर बच्चों को नई जिंदगी देने का काम कर रहे है, हम सबने इस साल रियो पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन देखा, रिओ पेरालंपिक में भारतीय एथलीट ने कमाल का प्रदर्शन करके ये साबित कर दिया की हम किसी से कम नहीं..हमारे देश में अजीब सी परंपरा है यहाँ सिर्फ उन्हीं लोगों को पूछा जाता है जो बिलकुल ठीक-ठाक होते है क्योंकि हमारी सोच है कि जो शारीरिक रूप से कमजोर है तो वो और क्या कर सकते है। यही सोच को बदलने की जरूरत है, अगर हम थोड़ी सोच को बढ़ाकर दिव्यगों के लिए थोड़ा आगे आए तो इनको नई जिंदगी मिल सकती है और हमारे देश का विकास भी होगा. एक अच्छी बात ये भी है कि सरकार अब इनकी तरह ध्यान दे रही है और इनके लिए अनेकों कदम उठाये जा रहे है, इससे इनका बहुत भला होगा बस अब जरुरत है आम लोगों को इनके साथ देने की, लेकिन एक बात याद रखने लायक है कि इनको दया नहीं साथ चाहिए, आपका साथ..हम सब का साथ..

Tuesday, 29 November 2016

कैशलेस इंडिया की जरूरत...

कालेधन को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का अहम फैसला लिया तो देश भर में हड़कंप मच गया,काले धन वालों के खिलाफ ये एक ऐतिहासिक कदम है लेकिन क्या इससे देश का सारा काला धन बाहर आ पायेगा? शायद नहीं क्योंकि ये एक टेम्पररी ईलाज है जबकि देश को इसके लिए एक परमानेंट ईलाज की जरूरत है, और वो इलाज का नाम है कैशलेस सेवा, स्वीडन, चीन,रूस जैसे देशों में काला धन न के बराबर है क्योंकि वहां सब कुछ कैशलेस चलता है. 
                                               
  कैशलेस मतलब कोई भी चीज़ या समान खरीदने के लिए आपको जेब से केश नहीं देना होगा सिर्फ डेविड कार्ड या शॉपिंग कार्ड की मदद से सारी पेमेंट हो जायेगी, इससे न किसीको छुट्टे की जरूरत पड़ेगी न ही जेब में नोट रखने की। अगर बाकि देशों में कैशलेस सुविधा मुहैया हो सकती है तो हमारे भारत देश में क्यों नहीं? आज नोटबंदी से पूरा देश एटीएम के बाहर खड़ा है वहीँ अगर आज लोग कैशलेस सुविधा की तरफ बढ़ते तो किसीको एटीएम या बैंक के बाहर खड़े होने की जरूरत न होती. बहुत से देश ऐसे है जहाँ के 90प्रतिशत बैंकों में एक भी कैश नहीं है वहां की आधे से ज्यादा आबादी कार्ड के जरिये ही पेमेंट करते है। हमारे देश का कैशलेस होना बेहद जरूरी है क्योंकि आज नहीं तो कल नए 2000 के नोट के भी नकली रूप बाजार में आ जायेंगे, कुछ समय बाद फिर से करोड़ों का कालाधन जमा हो जायेगा, इसलिए इसका एक ही इलाज है वो है कैशलेस इंडिया को बनाना। अगर नोट ही नहीं रहेंगे तो कालाधन और नकली नोट का कारोबार पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। लेकिन कैशलेस देश का निर्माण करना भी आसान काम नहीं क्योंकि 125 करोड की आबादी वाले भारत में करोड़ों लोग ऐसे है जो पढ़े-लिखे नहीं है, हजारों गाऊं ऐसे है जहाँ एटीएम तो क्या एक डाक घर भी नहीं है तो ऐसे देश को कैशलेस बनाना अपने आप में बेहद मुश्किल है, लेकिन सरकार ने एक कदम तो उठाया है अभी बहुत कुछ करना बाकी है। भारतीय सरकार को ये समझना होगा की नोटबंदी से कुछ ज़्यादा असर नहीं होगा, कालेधन को खत्म करने के लिए सिर्फ एक ही तरीका है, वो है कैशलेस इंडिया का निर्माण।

Friday, 25 November 2016

50 दिन का इंतजार पीड़ाजनक...

केंद्र सरकार के ऐतिहासिक फैसले के बाद से ही अलग-अलग तस्वीरें देखने को मिल रही है, कहीं लोग एटीएम के बाहर लंबी लाइनों में खड़े दिख रहे है तो कहीं शादी वाले घर में खोमोसी पसरी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 125 करोड़ भारतीयों से माहौल सामान्य करने के लिए 50 दिनों का समय मांगा है लेकिन जिस तरह लोगों को नोटबंदी से लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उससे ये 50 दिन बहुत ज़्यादा लग रहा है क्योंकि अब एटीएम और बैंक के बाहर खड़े लोगों पर लाठियाँ बरसायी जा रही है क्योंकि अब लोगों को पैसों की दिक्कत हो रही है. 
           अब ये 50 दिन पीड़ाजनक लग रहे है क्योंकि लोगों को पैसों की जरूरत आज है तो वो कैसे 50 दिनों का इंतजार करें ? अपने ही रुपए के लिए उन्हें घंटों लाइनों में लगना पड़ रहा है जिससे अब लोगों में आक्रोश साफ़ देखा जा रहा है और ये गुस्सा जाएज़ भी है क्योंकि सरकार ने अचानक फैसला तो ले लिया लेकिन कहीं न कहीं होमवर्क नहीं किया जिससे अब छोटे नोटों की क़िल्लत पड़ रही है, सरकार को कुछ समय पहले से ही बाजार में छोटे नोट लेकर आ जाने चाहिए थे जिससे एटीएम में आसानी से 100 रुपए के नोट लोगों को मिल जाते, इससे लोगों को पुलिस की लाठियाँ भी नहीं खानी पड़ती। चलिये कोई नहीं अब मोदी साहब ने जनता से 50 दिनों का समय मांगा है इन 50 दिनों में सरकार हर वो मुमकिन काम करना चाहेगी जिससे लोगों को नोटबंदी के कारण हो रही परेशानियों से कुछ राहत मिल सके, लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें एक-एक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा है यही कारण है कि अभी तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर आ चुकी है, कुछ दिन पहले ही पंजाब के एक आदमी ने आत्महत्या कर दी क्योंकि उनकी बेटी की शादी के लिए उन्हें 5 लाख रुपए चाहिए थे, उनके अकॉउंट में 5 लाख रूपये थे लेकिन वो रुपए समय से नहीं मिल पाने के कारण उन्होंने मौत को गले लगा दिया, बताया जा रहा था कि बैंक में कैश खत्म होने के कारण उन्हें बैंक से खाली हाथ लौटना पड़ा और मायूस होकर उन्होंने ये कदम उठाया, ये कहीं न कहीं सरकार की लापरवाही है जिससे लोगों को अपने ही रुपए के लिए परेशान होना पड़ रहा है, ये अगर शरुवात है तो सोचा जा सकता है कि आने वाले 50 दिन और क्या-क्या लेकर आएंगे? ये 50 दिन लोगों के लिए काफी पीड़ाजनक होते दिख रहे है।

Wednesday, 23 November 2016

ये पाकिस्तान है..कभी नहीं सुधरेगा

किसी ने बिलकुल सही कहा है कि पाकिस्तान अब एक मुल्क नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा देश बन चूका है जो सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देता है और आतंकवाद का ही गुण-गान करता है. ये अब इंसानियत का पाठ भूल चुका है और हैवानों की सेना तैयार कर रहा है. पाकिस्तान सेना ने एक बार फिर भारतीय जवान के शव के साथ बर्बरता करके ये साबित कर दिया की उनके अंदर का इंसान मर चुका है.
           भारत-पाकिस्तान की लड़ाई काफी सालों से चलती आ रही है जिसमे अभी तक दोनों देशों के हजारों-लाखों जवानों ने अपनी जान खोई है लेकिन इन दोनों मुल्कों में फिलहाल दोस्ती दूर दूर तक नहीं दिख रही है. पाकिस्तान को आज हम आतंकवादियों का मुल्क कहे तो ये बिलकुल भी गलत नहीं होगा क्योंकि पाकिस्तान आतंकवाद का सहारा लेकर कश्मीर को जीतने की जत्तोजहत कर रहा है. जैसे हम पाकिस्तानी सेना को गलत बता रहे है वैसे ही पाकिस्तान में लोग भारतीय सेना को गलत बात रहे होंगे लेकिन सच्चाई ये है कि ये दोनों सेना एक दूसरे से बेहद अलग है. आज एक बार फिर पाकिस्तानी सेना द्वारा एक भारतीय शहीद जवान जिसका नाम प्रभु सिंह था, उनके शव के साथ अमानवता की गई ये पुरे पाकिस्तान के लिए बहुत शर्म की बात है क्योंकि किसी जवान के शव के साथ बर्बरता करना कहाँ सही है? ऐसे घिनोने काम सिर्फ पाकिस्तान ही कर सकती है, ये पहला मामला नहीं है इससे पहले 2013 में भी दो भारतीय जवानों के साथ बर्बरता की गई, पाकितानी सेना द्वारा इन दो जवानों के सर को काट कर अलग कर दिया गया, बात करे 2011, 2004 में भी पाकिस्तान ने ये घिनोना काम किया, इतने सालों में तो एक हैवान भी शायद इंसानियत समझ जाता है लेकिन पाकिस्तान ने तो कसम खा रही है कि वो नहीं बदलेगा. पाकिस्तान कहता है कि उनकी सेना हमेसा अपने मुल्क के लिए काम करती है और शांति फैलाना जानती है लेकिन सच्चाई ये है कि पाकिस्तान तो खुद कभी अपने जवानों का नहीं हुआ तो वो दूसरों की तकलीफ़ क्या समझेगा. भारत-पाकितान युद्ध के दौरान जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के जवानों को मार गिराया था तब पाकिस्तान ने अपने ही जवानों के शव को नहीं उठाया, उन्हें अपने ही जवानों के शव उठाने में शर्म आ रही थी, तब हिंदुस्तानी सेना ने पूरे सम्मान के साथ पाकिस्तानी जवानों के शव को पाकिस्तान पहुँचाया. ये है भारतीय सेना जो अपनों के साथ साथ दूसरों के दर्द को भी महसूस करना जानती है इर पाकिस्तान सिर्फ आतंकवाद फैलाना जानता है उन्हें बाकि कुछ और नहीं चाहिए.
        जब से भारतीय सेना ने सर्जीकल स्ट्राइक की है तब से   पाकिस्तान बौखलाया हुआ है, यही कारण है कि पाकिस्तान ने BAT(बॉर्डर एक्शन टीम) नाम की एक स्पेशल फाॅर्स तैयार की है जो सिर्फ पेट्रोलियम करते भारतीय सेना तो अपना निशाना बनाते है और उन्हें शव के साथ बर्बरता करते है. इस समय पाकिस्तान ने उस फाॅर्स में 700 नए कमांडो और आतंकवादीयों को शामिल किया है. पाकिस्तान हर तरह से भारतीय सेना को नुक्सान पहुँचाना चाहता है यही कारण है कि वो अपनी हरकतों से बाज़ आता नहीं दिख रहा, मगर हिंदुस्तानी फ़ौज ये अच्छे से जानती है कि इन आतंकवादियों का सफाया कैसे किया जाता है. भारतीय सेना पाकिस्तान के सुधरने का इन्तजार नहीं कर रही है क्योंकि सबको पता है कि ये पाकिस्तान है..कभी नहीं सुधरेगा।

Monday, 21 November 2016

हादसों से कब सीखेगा भारत?

हम रोजाना हादसों की खबर सुनते है, कहीं सड़क हादसा तो कहीं रेल हादसा लेकिन इन्हें रोकने के लिए कोई कदम उठाये गये है..ये हम कभी नहीं सुनते। हमारे देश में रोजाना बहुत से सड़क हादसे होते है , हर साल लगभग 10 लाख लोग अलग-अलग हादसों में अपनी जिंदगियां खो देते है, सरकार मरहम के रूप में कुछ मुआवजा दे देती है लेकिन इन हादसों को हर बार रोकने में असमर्थ दिखती है। 
         ताज़ा मामला इंदौर-पटना रेल हादसे का है जिसमे लगभग 70 जिंदगियां एक पल में खत्म हो गयी, बताया गया कि रेल की 14 बोगियां पटरी से उतर गयी और ये भयानक हादसा हो गया. इतना बड़ा हादसा ऐसे कैसे हो सकता है जबकि सरकार ये दावा रहता है कि देश की हालत बिलकुल आधुनिक है, यानि की ट्रेन से लेकर पटरी तक सब कुछ सही है तो फिर ऐसे हादसे क्यों होते है? ये पहली बार नहीं हुआ इससे पहले भी कई बार ऐसे हादसों से लोग का सामना हुआ है जिसमे बहुत जान-माल का नुक्सान हुआ है, लेकिन फिर भी हम ऐसे हादसों से सबक नहीं लेते क्योंकि इस देश में आधे से ज्यादा काम भगवन भरोसे रखे जाते है। रोजाना सड़क हादसों में भी हजारों लोग मौत के आगे दम तोड़ देते है, सड़क हादसों का असली करण यहाँ की सड़कों की हालत है, जैसी सड़के हमारे देश में है ऐसे शायद भी और देश में कहीं हो. लेकिन ऐसा नहीं है कि यहाँ का प्रशाशन चुस्त नाजी है, हमेसा देखा होगा की जब कोई नामी मंत्री किसी शहर के दौरे पर जाता है तो मंत्री के आने से कई हफ्ते पहले से ही सड़कों को चमकाना शुरू कर देते है. जिस सड़क पर गड्डों का मेला हुआ करता था वो सड़क नई-नवेली दुल्हन की तरह सज जाती है और जिस दिन मंत्री साहेब पहुँचते है उस दिन सड़क नए रूप में दिखाई देती है. लेकिन ये चमत्कार सिर्फ वहां होता है जहाँ कोई बड़ा नेता आने वाला हो वरना छोटे-मोटे नेताओं के लिए सिर्फ तालियाँ ही बहुत होती है। ये हमारे देश का दुर्भायग है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी यहाँ की असल तस्वीर नहीं बदल सकी है, कुछ दिन पहले जापान के एक शहर में 50 मीटर हाईवे 15 फ़ीट तक धस गया था लेकिन वहां के प्रशाशन और लोगों ने उस 50 मीटर गड्ढे को सिर्फ 48 घण्टों में भर दिया और 7 दिनों में वो सड़क पहले से भी मजबूत और सूंदर बना दी गई. ऐसा ही एक मामला हमारे देश की राजधानी दिल्ली में कुछ महीने पहले हुआ जहाँ पर एक सड़क 20 मीटर धस गयी थी लेकिन वो सड़क अभी तक नहीं बन सकी, ये बहुत बड़ा फर्क है जापान के प्रशाशन में और हमारे देश की सरकार में, वो लोग हादसों से सबक लेना जानते है इसलिए वो परमाणु बम और सुनामी जैसे त्रासदियों से उभर पाया है उसकी जगह भारत होता तो अभी न जाने यहाँ की क्या तस्वीर होती.
        भारत एक ऐसा देश है जो लगातार प्रगति कर रहा है लेकिन लगातार हो रहे हादसों से देश पीछे खिसकता है, इसलिए सरकार और प्रशाशन को चाहिए की इन हादसों को गंभीरता से ले, इनसे सबक ले ताकि फिर से कोई सड़क हादसा न हो, न ही कोई ट्रैन पटरी से उतरे ।

                     

Saturday, 19 November 2016

इंसान ही इंसान का नहीं...

इस दुनिया को बनाने वाले उस परमात्मा ने जब हम इंसानों को बनाया तो हमारे अंदर बहुत सी भावनाएं भी डाली ताकि हम इंसान कहलाये। गुस्सा,हँसना, रोना और अच्छे-बुरे की पहचान दी उसने, उसे ये लगा की इतना मॉडिफाई करके शायद ये इंसान अपने अंदर छुपे इंसानियत की महत्वता जान सके, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, आज इंसान जा सबसे बड़ा दुश्मन खुद एक इंसान है. गलत राह पर चलने वाला एक इंसान है और दुनिया में आतंकवाद को फैलाने वाला भी एक इंसान ही है . मतलब आज इंसान ही इंसान का नहीं है तो हम भगवन, किस्मत या कुदरत के भरोसे क्यों है?
             कभी सड़क किनारे एक छोटे बच्चे को भीख मांगते हुए देखा है, उसे 1 रुपए मिल जाये तो उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होती है वो कोई बयां नहीं कर सकता और उसकी जगह अगर किसी आम इंसान को हजारों रुपए मिले तो वो लाखों पाने के सपने देखता है, लाखों मिल जाये तो करोड़ों के लिए तड़पता है। आज ये दुनिया बहुत बुरी हो चुकी है यहाँ सिर्फ आपका बैंक बैलेंस की इज्जत है न की आपके स्वभाव की, अगर आपके पास लाखों-करोड़ों है तो दुनिया आपको सलाम करेगी, आपके पीछे रहेगी लेकिन आपके पास कुछ नहीं तो "चल साइड में होजा".. किसी के लिए अच्छा करो तो खुद का ही नुक्सान होता है ये बात तो शायद हर किसी को पता होगी, एक इंसान जो गुरु के रूप में कुछ सिखाता है, हमे काबिल बनाता है उसी का विरोध करने पर आज हमारे हाथ नहीं कांपते, ये हमारे लिए छोटी सी बात है लेकिन उस इंसान से पूछिये की उसे कैसा लगा जब उसी के शिष्य उनके खिलाफ खड़े हो. उनकी सालों की मेहनत पर एक पल में पानी फिर गया लेकिन नुक्सान कभी गुरु न नहीं होता. इसी तरह आज एक भाई अपने ही भाई का नहीं हो पा रहा है क्योंकि मन में लालच और गलत फेमियां ने अच्छी-खासी जग़ह बना रखी है. हम सबको बनने वाला ईश्वर बहुत ही दिमागदार है, हम सबसे तेज़ और भुद्दिमान , उसे पता था कि अगर मैं सबको एक समान बनाऊंगा तो कोई मुझे नहीं पूछेगा न ही इस धरती पर किसी को किसी की फ़िक्र होगी इसलिए उसने सबको दो आँखे,दो कान,एक नाक,दो हाथ, एक दिल दिए लेकिन फिर भी सबको एक दूसरे से बहुत अलग बनाया. मेरा तो अब ये मानना है कि सिर्फ उनकी मदद करनी चाहिए जिन्हें सच में मदद की जरूरत है वरना यहाँ ढोंगी लोग बहुत है, एक दिन में 5 बार बड़ों के पैर छूते है लेकिन पीठ पीछे उन्ही के पैर पर कील बिछाते है. लेकिन ऐसे लोगों को कुछ हासिल नहीं होता वक़्त सब हिसाब बराबर करता है.

Wednesday, 16 November 2016

ये कदम भी जरुरी था..

भारत सरकार के एक कदम से हर तरफ काले धन रखने वालों के बुरे दिन नज़र आने लगे है, ये एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला साबित हो रहा है जिसके आने वाले दिनों में बड़े फायदे आम लोगों को मिलेंगे क्योंकि जिस तरह लगातार देश में काला धन बड़ रहा था उससे हमारे ही देश को परेशानी झेलनी पड़ रही थी लेकिन 500 और 1000 के नोट बंद होने के बाद कालेधन वाली बीमारी को खत्म किया जा रहा है, और लोगों की माने तो ये कदम बेहद जरुरी था।
              केंद्र सरकार का ये फैसला काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है क्योंकि अब देखा जा रहा है कि जिन लोगों के पास गलत कमाई से जुटाया गया धन है अब वो उस रूपये को जला रहे है, कहीं कहीं तो लाखों रुपए नालों में बहते नजर आने लगे है क्योंकि अब काला धन रखने वालों के पास कोई और रास्ता नहीं बचा जिससे वो इन रुपए को बचा सके. न वो ये लाखों-करोड़ों रुपए बैंक में जमा कर सकते है न ही इनको खर्च कर सकते है क्योंकि अब ये नोट मात्र एक कागज का टुकड़ा रह गया है. इस ऐतिहासिक कदम के और भी बहुत फायदे नजर आ रहे है, बड़े ताज्जुब की बात है कि 8 नवम्बर से अभी तक घाटी में पत्थरबाज़ी की एक भी घटनाएं सामने नहीं आई है क्योंकि जिन कश्मीरी युवकों को 500-1000 के नोट देकर सेना पर पत्थर मारने को कहा जाता था वो नोट तो अब बंद हो चुके है इससे अब आतंकवादियों के पास भी रुपए नहीं बचे है जो की भारत की नजर से बहुत अच्छी खबर है, मतलब एक बात तो साफ़ हुई है कि मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसकी हमारे देश सख्त जरूरत थी, और उस कदम के परिणाम अब हमें दिखाई देने लगे है. लेकिन इस फैसले को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए क्योंकि ये कदम हमारे देश के लिए है और देश सिर्फ एक पार्टी का नहीं है, चाहे कांग्रेस हो या आप ,या फिर सपा, इन सबको मिलाकर ही भारत बनता है तो हर किसी को इस फैसले का स्वागत करना चाहिए. काले धन के मामले में हमारा देश की स्तिथि काफी अच्छी-ख़ासी है ये बड़े शर्म की बात है, एक तरफ हम चाहते है कि हमारा देश हर छेत्र में आगे रहे लेकिन काले धन को छुपा छुपा कर देश का बंटा धार करने पर तुले है.

Friday, 11 November 2016

सरकार के फैसले में फंसा आम आदमी...

मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले से बाद से ही पूरे देश में 500 और 1000 के नोट बदलवाने की होड़ मची हुई है, और जिस 100 के नोट को कल तक छोटा समझा जाता था आज उसके लिए हर कोई 5-5 घंटे बैंक और एटीएम के दर पे खड़ा होता दिखाई दे रहा है. आज हर किसीको छोटे नोट की कीमत समझ आने लगी है क्योंकि बड़े नोट अब मात्र एक कागज़ का टुकड़ा रह गए है. 
          भारत सरकार के अचानक लिए इस फ़ैसले ने पिछले 2-3 दिनों में आम जनता को बहुत परेशानियों का सामना करने पर मजबूर कर दिया है, और बहुत कुछ सिखा भी दिया है, पहली बात जिस किसी के पास भी गलत कमाई का पैसा है अब उस पे आयकर विभाग की नज़र जमी हुई है और दूसरी बात लोगों को ये समझ में आई है कि कोई भी नोट छोटा-बड़ा नहीं होता। भारत से काला धन को हटाने के लिए ये कदम बेहद आवश्यक था,और इस फैसले से जल्द ही काली कमाई एक- एक कर के बाहर निकलेगी लेकिन कहीं न कहीं अचानक लिए इस फैसले से आम जनता को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है ख़ासकर उन लोगों का ज्यादा दिक्केतें हो रही है जिनके घर शादी या किसी तरह का कार्यक्रम है क्योंकि इस वक़्त न उनके पास नगद रुपए है न ही एटीएम से ज्यादा रुपए निकल पा रहे है ऐसे में शादी जैसे कार्यक्रम में कुछ काम नहीं हो पा रहा है. सिर्फ दिल्ली में ही आगामी 7 दिनों में 34 हज़ार शादियां है लेकिन अभी तक किसी भी कार्यक्रम की तैयारी शुरू नहीं हो पा रही है. लाखों रुपए होने के बावजूद जेब में एक रुपए तक नहीं है, शादी की तैयारी हो चुकी है लेकिन शहनाई नहीं बज रही है, इसके अलावा रोज़ाना देखा जा रहा है कि सुबह से ही बैंकों के बाहर लोगों की लंबी लम्बी लाइने लगनी शुरू हो जाती है, लगातार इस तरह की भीड़ से लोगों को तो परेशानी हो ही रही है साथ ही साथ बहुत से जगहों पर जाम की स्तिथि बनती नजऱ आ रही है. हमने कुछ लोगों से इस बारे में बात की तो लोगों का जवाब सुनकर काफी अच्छा लगा, लोगों की माने तो वो मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे है और सरकार का ये कदम काफी सराहनीय माना जा रहा है. लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई ये भी दिख रही है कि आम जनता के लिए सरकार ने कोई ऐसी तैयारियां नहीं की जिससे आम लोगों को कम से कम दिक्कत हो, ऐतिहासिक फैसला हो सुना डाला लेकिन फंस गया आम आदमी.
        ये काफी अच्छी बात है कि जिस व्यक्ति ने देश के हित में एक कदम उठाया है तो आम लोग भी उनके फैसले से खुश है लेकिन लाखों लोगों को सुबह से शाम तक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है , कहीं शादी रुकी हुई है तो कहीं लोग दो वक़्त का खाना भी नहीं खा पा रहे है, इसके लिए सरकार को पहले से सोचना चाहिए था..

Tuesday, 8 November 2016

उत्तराखंड के 16 साल,नही दिखा कोई कमाल..

उत्तराखंड राज्य को बने हुये 16 साल पूरे हो चुके है, आज वो 17वें साल के प्रवेश कर रहा है, बीते 16 सालों में उत्तराखंड ने बहुत कुछ देखा, कुछ विकास तो कुछ तबाही, लेकिन इन सबके बीच में एक सवाल खड़ा होता है कि क्या इन 16 सालों में उत्तराखंड का विकास हुआ? शायद नहीं..! क्योंकि अभी तक उत्तराखंड में विकास के नाम पर सिर्फ फाइलें बनाई गई है।
     उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, फिर लोगों ने यहाँ के विकास और रोजगार के लिए उसे अलग राज्य बनाने की मांग उठाई, बहुत से आंदोलन हुए और फिर 9 नवम्बर,2000 में उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित कर दिया गया। उत्तराखंड राज्य को बनाने का बहुत फायदा यहाँ के लोगों को मिलना चाहिए था,रोजगार,उज्जवल भविष्य और पूर्ण विकास के सपनो के साथ इसका गठन तो किया गया लेकिन अफ़सोस की बात है कि जैसा उत्तराखंड 16 साल पहले था आज भी वैसा का वैसा ही है. न अभी तक यहाँ लोगों को पूरा रोज़गार मिल सका, न ही पहाड़ों तक मुलभुत सुविधाएं पहुँच सकी. उत्तराखंड की पहचान हमेसा से यहाँ के पहाड़ रहे है तो सरकार का पहला कर्तव्य पहाड़ों तक सुविधाएं पहुँचाना होना चाहिए था लेकिन आज भी यहाँ के पहाड़ वीरान होते जा रहे है, पहाड़ों पर न बिजली पहुँच रही है न शिक्षा, न ही रोजगार ऐसे में पहाड़ पे रह रहे लोग शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हो रहे है और हमारे पहाड़ वीरान होने को मजबूर है. जहाँ तक विकास की बात है तो विकास तो शहरों का भी नहीं हुआ है, यही तो सच्चाई है कि कहने को तो यहाँ बहुत से शहर है लेकिन उनकी हालत किसी गाऊं से कम नहीं है, न सड़के ठीक है न शिक्षा व्यवस्था और न ही इंड्रस्ट्रीयल विकास ऐसे में भला उत्तराखंड कैसे विकास के रथ पे सवार हो सकता है? 2013 की आपदा को कौन भूल सकता है, लगातार अतिक्रमण और प्रकर्ति से खिलवाड़ का नतीजा आपदा की रूप लेकर जब आया तब उत्तराखंड की तस्वीर ही बदल के रख दी थी, केदारनाथ छेत्र पूरी तरह से छतिग्रस्त हो गया था उस आपदा ने उत्तराखंड को कई साल पीछे कर दिया. सरकार तो हर बार बदलती है लेकिन 16 सालो में अभी तक उत्तराखंड की तस्वीर नहीं बदल सकी।
          उत्तराखंड की आबादी लगभग 1 करोड है, जिनमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या रोजगार,बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से कोसो मील दूर है. कहने को यहाँ AIIMS स्थापित हो चुका है लेकिन अभी तक पहाड़ पर मेडिकल सुविधा के नाम पर सिर्फ कुछ चिकित्सक ही है. उत्तराखंड हमे ऐसे ही नहीं मिला इसके लिये बहुत से आंदोलन किये गये, आंदोलनकारियों की कड़ी मेहनत और बलिदान के बाद ये प्रदेश हमे मिला लेकिन सोचिये कि क्या उनके बलिदान का फ़ायदा हुआ?

Sunday, 6 November 2016

अब पछताए होवत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत...

" ये मेरे शहर को ये हुआ क्या, कहीं राख़ है तो कहीं धुंआ ही धुंआ.." आज दिल्ही से लेकर पंजाब तक जहरीली धुंध ने अपने पैर पसारे हुये है. दिल्ही वालों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की हज़ार रुपये के पटाखे के बदले उन्हें ये दिन देखना पड़ सकता है, दिवाली को बड़ी मात्रा में पटाखे जलाने से दिल्ही समेत पंजाब,हरियाणा और गाजियाबाद की हवा इस कदर खराब हुयी की पोल्लुशन की मात्रा समान्य से 20 गुना ज्यादा जहरीली हो गयी जिसका असर अब आधा हिन्दुस्तान झेल रहा है। 
       दिवाली की रात हर कोई आतिशबाजी करने में व्यस्त था, न किसीने पर्यावरण के बारे में सोचा न ही पशु-पक्षियों की जिंदगी के बारे में और उसके बाद पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने से प्रदुषण की मात्रा और ज्यादा बड़ गयी जिसका नतीजा ये रहा की अब दिल्ली और आस पास के राज्यों में साँस लेने लायक हवा नहीं बची है, हर कोई मुँह पर मास्क लगाके घर से बाहर निकलने को मजबूर हो चूका है। दिवाली से पहले तमाम तरह के प्रचार-प्रसार किये गए थे की इस दिवाली पटाखों का कम से कम प्रयोग करे लेकिन किसी भी अभियान का कोई असर नहीं दिखा और लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, और अब लोग अपने कर्मों पर अफ़सोस कर रहे है, लेकन "अब पछताए होवत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"। प्रदुषण की मात्रा इस कदर बढ़ चुकी है कि छोटे बच्चों के स्कूल तक बंद करवाने पड़ गए है। दीपावली में पटाखे जलाने से हवा में कार्बन,कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाईओक्ससीडे की मात्रा बेहद ज्यादा हो चुकी है जो की हमारे सेहत के लिए काफी खतरनाक होती है और पशु-पक्षियों के लिए भी हानिकारक होती है. लगातार बढ़ रहे प्रदुषण ने दिल्ली सरकार की नींद खराब हो चुकी है और दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित हो चूका है लेकिन इनका क्या फायदा जो नुक्सान होना था वो हो चूका है. अगर सावधानी पहले से बरती होती तो आज देश की राजधानी का दिल यूँ नहीं तड़पता.
          हर साल यही तस्वीर सामने आती है, न कोई इनके लिए पहले से तैयारी करता है न बचने के समाधान निकाल पाता है बस एक दूसरे के ऊपर गलतियां थोपते रहते है. इस दूषित पर्यावरण के लिए कौन जिम्मेदार है? हम सब, क्योंकि हमारे द्वारा ही प्रदुषण को बढ़ाया जाता है और हमारे द्वारा की सवाल खड़े किये जाते है.

Thursday, 3 November 2016

शहीदों के परिवार के लिए एक कदम...

हमारे देश की रक्षा करना हमारे सैनिकों का काम है, ये बात हम सब जानते है लेकिन वही सैनिक जब बॉर्डर पे आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो जाता है तो उसके परिवार की रक्षा करना, उनका साथ देना ये किसका काम है? हम सब अपनी अपनी जिंदगियों में मस्त है इसलिए हमें उनके परिवार का ख्याल तक नहीं आता जिन्होंने अपनों को देश के लिए कुर्बान कर दिया. इस वक़्त पूरा देश त्योहारों को मना रहा है, धनतेरस, दीवाली और फिर नया साल लेकिन कभी मन में ख्याल आया है कि वो परिवार किस स्तिथि से गुजर रहा होगा जिनका बेटा, पिता या भाई देश की सुरक्षा करते करते देश पे मर मिटा है. क्या उनके लिए अब कोई त्यौहार मायने रखेगा? कोई खुशियां उनके घर की देहलीज़ तक पहुचेंगी? शायद ये ख्याल कभी मन में पैदा ही न हुआ हो. 
                आज देश में आतंकी गतिविधियां बेहद बड़ चुकी है, सैनिकों के ठिकानों पर हमले हुए जा रहे है जिसमे हमारे वीर जवान उनकी गोलियों को झेल रहे है. आज मीडिया भी उन जवानों के शौर्य की कहानियाँ टेलीविज़न पर दिखा रही है ताकि उन शहीदों के परिवार तक हमारी सरकार का ध्यान पहुँचे लेकिन सच्चाई ये है कि जब तक अख़बारों और टेलीविज़न में जवानों के बारे में बताया जाता है सिर्फ तब तक ही कोई इनके लिए सोचता है क्योंकि दो दिन बाद तो हर कोई भूल जाता है कि कोई जवान हमारे लिए, हमारे देश के लिए शहीद हुआ है. जिनके घर का बेटा या पिता,भाई कोई भी देश के लिए शहीद होता है उनके परिवार के लिए कोई सामने नहीं आता, कुछ परिवारों को छोड़ दे तो लगभग हर बार ऐसा ही देखा गया है कि शहीदों के परिवार को बहुत मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यहाँ तक की उनके हर छोटी छोटी चीजों के लिए जूझना पड़ता है. जब जवान शहीद होता है तो सरकार वादे कर देती है, कुछ समाज सेवा से जुड़े संगठन भी सामने आते है लेकिन कुछ समय बाद ही सब कुछ ठंडा पड़ जाता है. ऐसा आखिर हमारे ही देश में क्यों होता है कि जो हमारे देश के लिए शहीद हुआ हम उसी के परिवार को सहारा नहीं दे सकते, इस वक़्त हमारे देश की जन संख्या 130 करोड़ है, अगर हर व्यक्ति सिर्फ एक - एक रुपए भी दे तो कुल 130 करोड़ रुपए हम शहीदों के परिवार के लिए खर्च कर सकते है, लेकिन हमसे इतना भी नहीं होता. हम सिर्फ एक दो दिन तक उन्हें याद करते है उसके बाद अपने अपने काम-धंदे पर लग जाते है, मेरा मानना है कि गलती सरकार और हमारे सिस्टम के साथ साथ हम लोगों की भी है जो उनके दर्द को महसूस नहीं कर पाते, हमारे समाज में ही हजारों ऐसे लोग है जिनके पास पैसों की कोई कमी नहीं है, अरे..! थोड़ी मदद उनके परिवारों की आप लोग ही कर दो क्योंकि हमारे देश का सिस्टम तो पूरा ही खराब है लेकिन आप तो अच्छे है, लोगों का दुःख-दर्द समझ सकते हो . आप लोग जैसे कुछ लोग अगर सामने आ जाये तो शहीदों के परिवार को कभी किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े. वैसे भी ये हमारा कर्तव्य होना चाहिए की शहीदों के परिवार की सहायता कर क्योंकि वो शहीद हुए है हमारे लिए, हम सबके लिए. आज बहुत से ऐसे परिवार है जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है सिर्फ हमारे देश के लिए तो अब हमारी बारी है उनके लिए कुछ करने की, ज्यादा नहीं थोड़ा-थोड़ा हर कोई साथ दे तो शहीद का परिवार शायद कठिन परिस्थियों से बाहर निकल सके।
          

Sunday, 30 October 2016

बिन दिये कैसी दीवाली?

एक जमाना था जब दीपावली में हर घर पे मिट्टी के दिये लगाये जाते थे, घर का आँगन हो या छत हर जगह पर दिये जलाके रखने में पूरा घर ही रोशन हो जाया करता था लेकिन अब वो दिये कहीं ग़ुम से हो चुके है. आधुनिक लाइट्स की चकाचोंग में उन दियो की रोनक अब कम लगने लगी है यही कारण है कि अब दीपावली की पहचान माने जाने वाले दिये अब खत्म की कगार पर पहुँच गये है.
         आज बाज़ारों में अलग अलग तरह की लड़ियाँ,चमकीले बल्ब और सजावट के तमाम समान आ चुके है ऐसे में लोगों के सामने बहुत से विकल्प है तो उनका ध्यान मिट्टी के दियो की तरफ़ जाता ही नहीं क्योंकि वक़्त के साथ साथ अब सजावट के तरीके भी बदल रहे है. लेकिन कभी सोचा है कि उन लोगों के लिए दीपावली कैसे रहेगी जो मिट्टी के दीये बेचकर अपनी दीपावली मनाते है? शायद हमारी वजय से उनकी दीपावली में रोनक नहीं होती, होगी भी कैसे क्योंकि हम उनकी मेहनत को नजरअंदाज करके महँगी और चमकदार लड़ियाँ को खरीद रहे है. हमे ये नहीं भूलना चाहिए की दीपावली का मतलब घर को रोशन करना नहीं बल्कि जरूरतमंद लोगों की जिंदगी में ख़ुशी देना है या यूँ कहे की किसी इंसान के घर पे आपकी वजय से ख़ुशी आये तो मतलब आपकी दीपावली सफल रही है. आज पूरा देश चीनी लड़ियों और पटाखों का बहिष्कार कर रहा है हर तरफ इन समानो पे रोक लगायी जा रही है लेकिन कोई ये नहीं बोल रहा है कि इस दीपावली में मिट्टी के दियो का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करे. यही तो हमारी कमी है कि हम हर बात को सिर्फ एक तरफ से सोचते है , मेरा मानना है कि इस दीपावली उन लाखों लोगों को खुश करते है जो मिट्टी के दिये बेचते है , हमारी ख़रीदारी से उनकी दीपावली बहुत अच्छी गुज़रेगी और उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होगी वो आपको जिंदगी भर याद रहेगी और जब भी आप उन्हें याद करोगे खुद पर गर्व महसूस करने पर मजबूर हो जाओगे। मिट्टी से दीये को बनाना भी एक कला है इस कला की इज्जत करनी चाहिए, इस दीपावली हम चीनी समानों से तौबा कर रहे है, तो हमे एक कदम और उठाना चाहिए की लुप्त हो रही दिये की प्रथा को फिर से उठाया जाये।
        दीपावली खुशियों का त्यौहार है सिर्फ अपने घर की ख़ुशी या अपनों की ख़ुशी के लिए इसे मनाने से अच्छा है कि हम सब दूसरों के चहरे पर खुशी लेकर आए, इस दीपावली मिट्टी के दीये घर लायें।

Thursday, 27 October 2016

डर के साये में जिंदगी..

जरा सोचिए आप अपनी फैमिली के साथ आराम से घर पे सोये हुए है, तभी अचानक बम का एक गोला आपके छत पे गिरे और धड़ाम से फूट जाये तो उस वक़्त आप क्या करेंगे?क्या सोचेंगे?किस तरह परिवार को बचाएंगे? सोचने में ही डर लग रहा है तो जरा सोचिए कि उन लोगों की जिंदगी कैसी चल रही होगी जो रोजाना बॉर्डर पे इस तरह के डर में जी रहे है. हम सब अपने अपने घरों में आराम से खा-पी रहे है तो वहीँ दूसरी तरफ बॉर्डर पे रह रहे हजारों लोगों की जिंदगी पे लगातार मौत का खतरा बना हुआ है और वो खतरा है आतंकवाद.
 सर्जीकल स्ट्राइक के बाद से ही पाकिस्तान बौखलाया हुआ है जिसकी वजय से वो लगातार भारतीय सेना और बॉर्डर से सटे गाऊं को अपना निशाना बना रहा है. पाकिस्तान की हरकतों की वजय से घाटी में तनाव तो बना ही हुआ है उसके साथ साथ बॉर्डर में रह रहे लोगों को डर के साये में जीना पड़ रहा है. हिंदुस्तान की तरफ से हुयी सर्जीकल स्ट्राइक को पाकिस्तान पचा नहीं पा रहा है यही कारण है कि सर्जीकल स्ट्राइक के बाद से अभी तक 40 बार पाकिस्तान सैनिकों द्वारा सीज़फायर का उलंघन किया गया है. अब पाकिस्तान ने आतंकवाद फैलाने के लिए बॉर्डर पे रह रहे लोगों और स्कूली बच्चों को निशाना बना रहे है, पाकिस्तान की तरफ से अभी तक बम धमाकों में 3 महीनों में बॉर्डर के 19 स्कूल तबाह हो चुके है जिसके चलते हजारों बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है और अब वो बच्चे घर पर ही पढ़ने को मजबूर है. घाटी में जिस तरह तनाव चल रहा है उससे हर कोई परेशान है खासकर स्कूली बच्चे क्योंकि पाकिस्तान अब स्कूल के आसपास धमाके कर रहा है ताकि बच्चे डर जाये और स्कूल न जा सके. घाटी में आलम ये है कि आतंकवादी पुलिस वालों के हथियार छीन कर भाग रहे है मगर पुलिस बल कुछ नहीं कर पा रही है, आतंकवादियों को किसी का ख़ौफ़ नहीं है. एक तरह पूरा देश त्यौहारों में व्यस्त है तो वहीँ बॉर्डर पे बेस गाऊं में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ है, वहां पटाखों के बदले गोला-बारूद के फटने की आवाज़ें सुनाई दे रही है. रोजाना कई बार बॉर्डर पे पाकिस्तान द्वारा गोलियां बरसाई जाती है जिसमे बहुत से बेकसूर लोग घायल हो रहे है अब हमारी सरकार को भी उन तमाम लोगों के लिए कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए वरना वहां लोग यूँ ही मरते रहेंगे और बाकि लोग पलायन का रास्ता अपनाएंगे .

Tuesday, 25 October 2016

फिर लौट आई चार धाम यात्रा...

उत्तराखंड में 2013 की वो आपदा कौन भूल सकता है, उसके जख्म आज भी लाखों लोगों के जहन पे मौजूद है. शायद ही किसी ने सोचा होगा की उस जख्म पर मरहम का काम 2016 की चार धाम यात्रा करेगी क्योंकि इस साल ये यात्रा पिछले कई सालों के मुकाबले बेहतर रही. इस साल चारो धामों यमनोत्री,गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ में श्रद्धालुयों की अच्छी-ख़ासी भीड़ देखने को मिली जिससे उत्तराखंड के पर्यटन पर भी अच्छा असर पड़ा और नतीजा ये रहा की जो पर्यटन लगभग पटरी से उतरता दिख रहा था एक बार फिर पटरी पर वापस लौट आया है.
                   17-18 जून, 2013 ये वो दिन है जो उत्तराखंड के लिए काला दिन साबित हुए, इन दो दिनों में बरसात के कारण उत्तराखंड के केदारघाटी में जो तबाही हुयी वो बेहद भयानक थी. जोरदार बारिश के कारण केदारघाटी में बादल फटा जिससे वहां मौजूद हजारों श्रद्धालुयों की जिंदगी छिन गयी. केदारघाटी में मुख्य मंदिर को छोड़कर सब कुछ तबाह हो गया, उसके बाद 2 साल तक इसका असर चार धाम यात्रा पर पड़ा. जिस यात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु आते थे,आपदा के डर से उनकी संख्ता बहुत नीचे पहुँच गयी, ऐसे में 2016 की यात्रा एक नई उम्मीद और आस्था का सैलाब लेकर आई . 2016 की चार धाम यात्रा में अभी तक 14 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री दर्शन कर चुके है और ये आंकड़ा अभी भी बड़ रहा है। उत्तराखंड में पर्यटन की दृष्टि से ये बेहद अच्छी खबर है क्योंकि उत्तराखंड में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है. सरकार के बहुमूल्य प्रयास और स्थानीय लोगों के प्रचार-प्रसार की बदौलत एक बार फिर चार धाम यात्रा श्रद्धालुयों को अपनी और खीचने में कामयाब हुई और डूबते पर्यटन को एक बार फिर सहारा दिया। पहाड़ों पे लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए भी ऐसी यात्रा की हमे सख्त जरुरत थी क्योंकि पहाड़ों पर रोजगार न होने के कारण, लोग पहाड़ छोड़ने पर मजबूर हो रहे थे, न दुकानदारी चल रही थी न ही कमाई का कोई साधन मिल रहा था ऐसे में चार धाम यात्रा की वजय से पहाड़ों तक एक बार फिर रोजगार पहुँचा, और दुकानदारों, व्यापारियों के चेहरों पर खुशी देखने को मिली। बरसात तक लाखों श्रद्धालुयों के चारो धामों के दर्शन किए और बरसात के बाद एक बार फिर यात्रियों के आने का सिलसिला जारी है, अब चार धाम यात्रा बंद होने में कुछ ही दिन बचे है लेकिन 2016 की इस यात्रा ने 2013 के जख्म पर मरहम का काम किया है, हम यूँ भी कह सकते है कि आपदा के बाद एक बार फिर चार धाम यात्रा लौट आई .

Saturday, 22 October 2016

फिर कुल्हाड़ी पर पैर मार रहा पाकिस्तान..

पाकिस्तान इस वक़्त दिमाग से कुछ काम नही कर रहा है,वो बस हर तरह से भारत को नुक्सान पहुँचना जानता है चाहे इसके लिए उसे अपने ही मुल्क के लोगों से लड़ना पड़े. अब उसने फिर एक ऐसा कदम उठा लिया है जिससे उसे ही नुक्सान झेलना पड़ सकता है, भारत से नाराज़गी इस क़दर है की पाकिस्तान सरकार ने अब पाकिस्तान में हर भारतीय चैनेल के प्रसारण पर रोक लगा दी है और अगर कोई ब्रॉडकास्टिंग कंपनी इसका उलंघन करती पाई जाती है तो उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जायेगी। 
          इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर है, ऐसे मैं पाकिस्तान हर तरीका अपनाने की कोशिश कर रहा है जिससे भारत को कोई न कोई नुक्सान हो लेकिन ये कदम पाकिस्तान को ही भारी पड़ सकता है क्योंकि 20 करोड़ की जनसंख्या वाले पाकिस्तान मैं हर कोई हिन्दुस्तानी फिल्मों और सीरियल्स का दीवाना है. पाकिस्तान में अभी तक रोजाना सिर्फ 3 घंटे ही विदेसी कार्यक्रमों को दिए जाते थे लेकिन भारतीय फिल्मों ओर नाटकों की लोकप्रियता को देखते हुए पाकिस्तान में भारत के सीरियल्स का रिपीट टैलीकास्ट किया जाता है यानी की पाकिस्तान की आवाम को हिन्दुस्तानी सीरियल्स काफ़ी पसंद है तो अब पाकिस्तानी सरकार वहां की आवाम से कैसे समझोता करता है ये जल्द ही पता चल जायेगा.अब बात करे फिल्मों की तो बात हैरान करने वाली है कि पाकिस्तान मैं सबसे ज्यादा भारतीय फिल्में दिखाई जाती है ओर वहां इन्हें बहुत सराया जाता है। पाकिस्तान में मनोरंजन का 75 प्रतिशत कारोबार भारतीय फिल्मों की वजय से होता है बाकी 25 प्रतिशत पाकिस्तानी फिल्मों का होता है. आंकड़ों की तरफ देखे तो एक सिनेमाघर का मालिक अगर 100 रुपए कमाता है तो उसमें से 75 से 80 रुपए भारतीय फिल्मों की बिक्री की वजय से होता है। पाकिस्तान की अभी तक की सबसे कमाई वाली फिल्म ने पहले दिन मैं 1.6करोड़ का करोबार किया था, जबकि सलमान खान की सुल्तान ने पाकिस्तान मैं पहले दिन 3.4 करोड़ का करोबार किया, आंकड़े भी यही बयां कर रहे है की पाकिस्तान में भारतीय फिल्में ओर सरीअलस कितने लोकप्रिय है. पाकिस्तान से बहुत से कलाकार भारत मैं आकर बॉलीवुड मैं अपनी किस्मत आजमाते है, यहां जब उन्हें काम मिलता है वो तब पाकिस्तान में उन्हें जाना जाता है.
       पाकिस्तान की जनता भारतीय गानों की भी बहुत शौकीन है और वहां के बच्चों में "छोटा भीम" बहुत लोकप्रिय है, अगर पाकिस्तान भारत से इन चीजों को बंद करके बदला लेने जा रहा है तो पाकिस्तान को एक बार फिर सोचना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं वो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है जिसमे नुकसान सिर्फ पाकिस्तान का ही होगा।

Wednesday, 19 October 2016

इस दिवाली "नो चीनी"

हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच वैसे ही तनाव चलता आया है,ऊपर से चीन का पाकिस्तान को समर्थन देना हिंदुस्तान की जनता को इस कदर चुबा की अब बात चाइनीज़ समान के बहिष्कार तक पहुँच चुकी है. इन दिनों भारत में त्योहारों का सीजन है ऐसे में चीन का बहुत सारा समान भारतीय बाज़ारों की रौनक बड़ाता आया है लेकिन इस बार देश में हर तरफ चीन के समान का बहिस्कार दिखाई दे रहा है और हो भी क्यों न क्योंकि आतंकवाद की फैक्ट्री माने जाने वाली पाकिस्तान को चीन का साथ मिल रहा है ऐसे में 125 करोड भारतियों का गुस्सा निकलना लाज़मी है.

भारत और चीन काफी समय से व्यापार करते आये है, इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक दोस्ती काफी अच्छी है जिसका दोनों देशों को बहुत फायदा मिलता आया है। आंकड़ों की तरफ देखे तो हर साल भारत और चीन के बीच 70 अरब डॉलर का व्यापार होता है, बाकी देशों के मुकाबले चीन के साथ व्यापार करने में भारत को 6 गुना ज्यादा फायदा पहुँचता है. ऐसे में अब चीन के बने सामानों का बहिष्कार करना कहीं भारत की आर्थिकी पे बुरा असर न डाल दे. पाकिस्तान का साथ देने पर भारतियों पर काफ़ी आक्रोश देखा जा रहा है यही कारण है कि इस बार दिवाली जैसे त्यौहार पर हर तरफ चीन के समान की बिक्री पर रोक लगाने की मांग उठती जा रही है. दिवाली के समय पर भारतीय बाजारों में चीन की लड़ियाँ, लाइट्स, सजावट के समान और पटाखों का ज्यादा बोलबाला रहता है क्योंकि चीन के इन समानों की क़ीमत थोड़ी सस्ती होती है ऐसे में ये समान यहाँ बहुत चलते है और इनकी काफी मांग रहती है लेकिन इस बार दिवाली में चीन की लड़ियाँ और पटाखों पर प्रतिबंद लगाया गया है अब देखने लायक होगा की भारतीय बाजार पर इस कदम का कितना असर होता है. हमारे देश में चीन का व्यापार बहुत बड़ा है, पिछले 10 सालों में यहाँ चीन की बहुत सी मोबाइल कंपनियां,टेलिकॉम इंडस्ट्रीज़ और मेडिकल कंपनियां अपने पैर जमा चुकी है. 70 अरब डॉलर हर साल।
इसके अलावा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स और रियल इस्टेट में भी चीन भारत पे करोड़ों निवेश करता है. इन दिनों चाइनीज मोबाइल कंपनियों ने हिंदुस्तान पर काफी मुनाफ़ा कमाया है, आज हिंदुस्तान में चीन की 25 मोबाइल कंपनियां है जो की भारतीय बाजार में काफी अच्छा कमा रही है. इके बात तो साफ़ है कि हिंदुस्तान और चीन के बीच में जो व्यापारिक दोस्ती है इसका फायदा दोनों देशों को है, और अगर हिंदुस्तान में लोग चीन की लड़ियाँ, लाइट्स और पटाखों पर रोक भी लगाते है तो इससे चीन के उच्च व्यापार पे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि पटाखों और लाइट्स के अलावा भी भारत में चीन की मेडिकल,टेलिकॉम और इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री का बहुत बड़ा काम है.
       हमारी तरफ से ज्यादा न सही लेकिन एक कदम तो उठाया गया है जिससे शायद चीन को इस बात का ऐहसास हो जाये की पाकिस्तान का समर्थन करना उनके लिए कोई फायदा का सौदा नहीं है. लेकिन सच्चई ये भी है कि इससे भारत को भी कोई ज्यादा फायदा नहीं होगा .

Monday, 17 October 2016

आजकल सबकुछ ऑनलाइन..

पिछले 5-6 सालों में ख़रीदारी करने का स्वरूप बिलकुल ही बदल गया है, कभी बाज़ार में जाकर दिन भर 15-20 दुकानों में अच्छे से जांच परखकर समान लेते हुए लोग दिखते थे लेकिन आज सबकुछ ऑनलाइन हो चूका है। ऑनलाइन शॉपिंग का मतलब है घर बैठे इंटरनेट के जरिए समान को ऑर्डर करना। 
          ऑनलाइन शॉपिंग का प्रचलन सन 1990 से शुरू हुआ तब ये इतना ज़्यादा फायेदेमंद साबित नहीं हो पाया था लेकिन इंटरनेट की जबरदस्त मांग और बढ़ोतरी के चलते 2000 तक ऑनलाइन शॉपिंग का ग्राफ़ ऊपर बढ़ता गया और आज ऑनलाइन शॉपिंग से हर कोई जुड़ा है। आज बहुत सी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी, जैसे स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, ईबे लोगों के लिए आ चुकी है जो हर वक़्त उपभोगतायों को आकर्षित करती है। ख़ासकर आजकल क्योंकि इनदिनों त्योहारों का समय में ऐसे में ऑनलाइन कंपनियां लगातार आकर्षक डिस्काउंट के साथ समान बेच रही है और ग्राहक भी इनको काफी हद तक पसन्द करते है। इन दिनों दिवाली सेल का बोलबाला है, दिवाली भारत की सबसे ख़ास त्याहारों में से एक है ऐसे में लोग भी इस त्यौहार को यादगार बनाने के लिए बहुत सी शॉपिंग किया करते है चाहे कपड़े लेने हो या घर का कोई समान इससे अच्छा मौका लोगों के पास नहीं होता यही कारण है कि हर ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी अपने ग्राहकों के लिए दिवाली ऑफर्स लेकर आती है जिनके अंतर्गत ग्राहकों को अच्छे कीमत वाले समान पर अच्छा डिस्काउंट मिलता है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक चीजों जैसे टेलीविज़न, मोबाइल फ़ोन और फ़्रिज जैसे उपकरणों पर ज्यादा डिस्काउंट होता है, हर साल त्योहारों के समय पर ऑनलाइन कंपिनियों को करोड़ों का फ़ायदा होता है। एक तरफ ऑनलाइन सर्विस शुरू होने से ग्राहकों को फायदा पहुँच रहा है तो वहीँ दूसरी तरह दुकानदारों को इससे घाटे का सौदा करना पड़ रहा है क्योंकि ग्राहकों को तो ऑनलाइन कॉम्पिनियां पहले ही आकर्षित डिस्काउंट देदेती है तो दुकानदारों से कौन भला समान खरीदेगा? ययही कारण है कि ऑफलाइन शॉप हमेसा ऑनलाइन कंपिनियों के खिलाफ रहते है। ऑनलाइन शॉपिंग का ट्रेंड आज सर चड़कर बोल रहा है ऐसे में लोगों को कुछ बातों का हमेसा ध्यान रखना चाहिए की जिस ऑनलाइन कंपनी से वो हजारों का समान खरीद रहे है वो सुरक्षित हो, उसमे कोई धोखाधड़ी या गोलमाल न हो क्योंकि बहुत बार देखा गया है की ऑनलाइन शॉपिंग के चकजर में लोगों को ठगी का शिकार होना पड़ा है।
           आजकल ऑनलाइन शॉपिंग ने हमारे खरीदने की सोच को बड़ा दिया है, एक जगह पर ही अब हजारों ब्रांड के समान उपलब्ध होने से हम इनकी तरफ आँख बंद करने भरोसा करने लगे है। ऑनलाइन शॉपिंग करते हुए हमेसा सुरक्षा बरते वरना परिणाम बहुत शर्मनाक हो सकता है।

Saturday, 15 October 2016

तीन प्रथायों को खत्म करने की आवाज़

आखिरकार मुस्लिम महिलायों ने अपनी आवाज़ को उठाते हुए कुछ प्रथायों को खत्म करने की मांग की है। सरकार पर दवाब तो बनाया जा रहा है लेकिन अंत में फैसला क्या होगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

         बात चाहे तीन तलाक़ की जो या बहुविवाह की अब मुस्लिम महिलाएं चाहती है कि इन सब रीति रिवाजों को खत्म किया जाये क्योंकि ये उनके मान के खिलाफ है। बात करे तीन तलाक़ की तो ये प्रथा मुस्लिम धर्म और समाज में पिछले कई सालों से चलती आ रही है जिसके अंतर्गत मात्र तीन बार मौखिक तरीके से तलाक तलाक तलाक बोल देने से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो जाता है, जानकार हैरानी होगी की मुस्लिम समुदाय की 93 प्रतिशत महिलाएं इसे प्रथा को खत्म करना चाहती है। बात भी बिलकुल सही है कि सिर्फ मौखिक तौर पे तलाक बोल देने से रिश्ता खत्म करना सही बात नहीं। दूसरा मुद्दा है मुस्लिम आदमी द्वारा बहुविवाह की परंपरा। इसके अंतर्गत मुस्लिम समाज में और कानून के अनुसार मुस्लिम युवक दो से ज्यादा विवाह कर सकता है उसे कानून इसकी इजाज़त देता है। मुस्लिम महिलायों को इससे सख्त नाराजगी है और वे सब इस प्रथा को खत्म करने की मांग कर रहे है। इसके अलावा तीसरा मुद्दा है हलाला,जिसमे अगर एक तालकसुदा महिला अपने पति के साथ फिर रहना चाहती है तो उसे इसके लिए पहले एक अन्य आदमी से निकाह करना पड़ेगा। इस तरह की तमाम प्रथाएं मुस्लिम समुदाय में चलती आ रही है और अब मुस्लिम महिलाएं इसका जबरदस्त विरोध कर रही है। अभी तक मुस्लिम समुदाय में महिलायों की शादी 18 साल से पहले ही करवा दी जाती है जबकि 95 प्रतिशत महिलाएं चाहती है कि उनकी शादी 18 साल के बाद करायी जाये, इसके अलावा मुस्लिम समुदाय में जो कपड़ों को लेकर विवाद रहता है अब उसे भी खत्म करने की मांग की जा रही है। मुस्लिम महिलायों की माने तो उन्हें उनके पसंद के कपड़े पहनने की इजाजत दी जाये जरुरी नहीं की सिर्फ बुर्खे में जिंदगी गुज़ार ली जाये।
          आज मुस्लिम लॉ बोर्ड के सामने बहुत से सवाल खड़े हो चुके है, लाखों मुस्लिम महिलाएं अब जिंदगी के तरीके बदलना चाहती है अभी तक उन्हें हर छेत्र में दबाया जाता रहा है तो अब उनकी आवाज ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है। बात चाहे तीन तलाक की हो या बहुविवाह की अब मुस्लिम महिलाएं इन प्रथायों को खत्म करके की दम लेंगी। 

Thursday, 13 October 2016

पहले सबूत..फिर सर्जीकल स्ट्राइक

हम एक ऐसे देश में रह रहे है जहाँ हर कोई सिर्फ अपने लिए जीना चाहता है, यहाँ एक नेता लोगों के लिए नहीं बल्कि अपने लिए राजनीती में आता है,यहाँ आप बुरा काम करोगे तो चलेगा लेकिन अच्छा काम करोगे तो आपको सबको जवाब देना पड़ेगा और आपको शर्मिंदा होना पड़ेगा, ये है हमारा देश। 
           आजकल एक शब्द हर किसी के जुबां पर है वो शब्द है"सर्जीकल स्ट्राइक", जिसका मतलब है एक खास जगह पर पूरा प्लान करके ऑपरेशन करना। उड़ी हमले के बाद से ही भारत पर पाकिस्तान से बदला लेने का दवाब था, क्या नेता क्या जनता हर कोई बस बदला लेने के लिए बोल रहा था, फिर क्या आखिरकार भारतीय सेना ने पाकिस्तान से बदला लिया वो भी सर्जीकल स्ट्राइक करके। लेकिन अब इसी बात को राजनीतिक मुद्दा बनाकर इसे हमारे देश की तमाम पार्टियां इससे खेल रही है। बड़ी शर्म की बात है कि भारत जैसे देश में इस तरह की बातें सुनने को मिल रही है यहाँ यहाँ करोड़ों लोग एक आसमान के नीचे रह रहे है लेकिन सबकी नीयत और सोच बिलकुल अलग-अलग है। भारतीय सेना ने बड़ी मेहनत से, अपनी जान की बाज़ी लगाकर सर्जीकल स्ट्राइक किया तो अब कुछ राजनेता चाह रहे है कि भारतीय सेना उनको इस बात का सबूत दे। सर्जीकल स्ट्राइक का सबूत? अरे.. पाकिस्तान में लोग हस रहे होंगे इस बात को सुनकर की हिंदुस्तान में तो सर्जीकल स्ट्राइक के लिए आपस में घमासान मचा हुआ है। हिंदुस्तान के कुछ ज्यादा ही पड़े लिखे लोग है जो अपनी कुर्सी का गलत उपयोग करते है, उन्हें बस अपनी कुर्सी से प्यार है अपने काम से नहीं। कुछ लोग यहाँ सबूत के पीछे पड़े है तो कुछ भारतीय सेना पर ही सवाल उठा रही है। अब क्या सर्जीकल स्ट्राइक की पूरी वीडियो को youtube पे डाल दे या इसकी सीडी बनाकर दूकान पर बेचे ताकि आतंकवादियों को अच्छे से पता चले की हमने सर्जीकल स्ट्राइक कैसे करी। बड़ी बेहक़ूफी वाली सोच है उन तमाम लोगों की जो हमारी सेना से सबूत मांग रहे है। इस तरह की सर्जीकल स्ट्राइक हमारी तरफ से पहली बार नहीं हुई है इससे पहले भी सेना ने सर्जीकल स्ट्राइक किया है लेकिन इस बार सेना के इस कारनामे को मीडिया का पूरा सपोर्ट मिल रहा है तभी कुछ नेतायों को ये बात रास नहीं आ रही है।
                इस देश का कुछ नहीं हो सकता, यहाँ सर्जीकल स्ट्राइक के बाद सबको सबूत दिखने पड़ते है वरना कोई मानने को तैयार ही नहीं होता की सर्जीकल स्ट्राइक हुयी है। यहाँ देश को आगे ले जाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च होते है लेकिन देश आगे नहीं बढ़ता, क्रिकेट में 6 छक्के मारने पर 60 करोड का इनाम मिलता है, लेकिन दुश्मन की 6 गोली खाकर देश के लिए मर मिटने वाले सेनिकों को सिर्फ सबूत के लिए पूछा जाता है।

Friday, 7 October 2016

पाकिस्तान कलाकारों को बाय बाय..

विश्व भर में सिनेमा जगत के दो प्रमुख रूप देखे जाते है, बॉलीवुड और हॉलीवुड, बॉलीवुड यानि की भारतीय सिनेमा जिसमें भारतीय फिल्में और एल्बम आती है। आज बॉलीवुड का नाम पूरी दुनिया में लोकप्रिय है,सबसे ज्यादा दर्शक आज सिर्फ बॉलीवुड के पास ही है। बॉलीवुड तब जन्मा जब हिंदुस्तान की पहली फिल्म राजा हरिशचंद्र अस्तिव में आई उसके बाद पहली बोलती फिल्म जिसका नाम था आलमआरा, ये वो दौर था जब भारत सिनेमा जगत में कदम रख रहा था। आज बॉलीवुड पुरे विश्व में नाम कमा चूका है, करोड़ों लोग आज इस सिनेमा से जुड़े हुए है और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती ज रही है। बॉलीवुड में आज भारतीय कलाकारों के साथ साथ पाकिस्तानी कलाकार भी अपनी किस्मत आजमा रहे है और बहुत से पाकिस्तानी कलाकार इससे जुड़ने की चाह रखते है। कई सालों से पाकिस्तानी कलाकार भी बॉलीवुड से जुड़ते रहे है जिनको हिंदुस्तानी आवाम में काफी पसंद भी किया ही और उसके दीवने भी बने है। 
             लेकिन आज माहौल कुछ और है, न परिस्थितियां पहले जैसी रही न ही सोच। आज भारत-पाकिस्तान के बीच जो कुछ हो रहा है उससे इन कलाकारों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि अब इन्हें यहाँ काम मिलना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन लग रहा है। पाकिस्तान के साथ हिंदुस्तान हमेसा दोस्ती का रिश्ता बनाने के लिए आगे आता है लेकिन पाकिस्तान की तरफ से हिंदुस्तान को हमेसा धोखा दिया जा रहा है। पठानकोट हमले हो या, उडी बेस कैंप हमला पाकिस्तान अपनी फितरत से बाज़ नहीं आ रहा है,एक बार फिर जिस तरह से पाकिस्तान आतंकवादियों को सहारा दे रहा ह उससे भारत के साथ साथ और भी देशों को काफ़ी दिक्कतें हो रही है, आतंकवादी हमलों के गुनाहगारों को तो हमारी सेना मौत के घाट उतार चुकी है लेकिन पाकिस्तान की हरकतों का भुकतान अब भारत में काम कर रहे पाकिस्तानी कलाकारों को भुगतना पड़ रहा है। ये हम सब जानते है कि पकिस्तान के हजारों कलाकारों को हिंदुस्तान में काम मिलता आया है कुछ नाम जैसे राहत फ़तेह अली खान, आतिफ़ असलम, फ़वाद खान ये वो बॉलीवुड के सितारे है जिन्होंने नाम बॉलीवुड में कमाया, ये सब पाकिस्तानी कलाकार है लेकिन इन्हें बॉलीवुड में जगह मिली। पाकिस्तान को ये बात नाजी भूलनी चाहिए की जिस हिंदुस्तान को वो तबाह करने के फालतू सपने देख रहा है इससे पूरी तरह से उसका ही नुक्सान होगा। पाकिस्तान का पेट भरने वाला देश हिंदुस्तान है, उनकी प्यास बुझाने वाला देश हिंदुस्तान है। बॉलीवुड तो बिना पाकिस्तानी कलाकरों के भी चलेगा, लेकिन पाकिस्तान क्या होगा अगर हिंदुस्तान ने और सख्ती दिखाते हुए पाकिस्तानी कलाकारों को भारत से आउट कर दिया? पाकिस्तान ये न भूले की वो हर छेत्र में भारत से पीछे है।

Tuesday, 4 October 2016

कैसे आया फेसबुक..

आज शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो फेसबुक में न आया हो, क्या बच्चे क्या बड़े हर किसी का आज फेसबुक में अकॉउंट है और वो रोजाना कई घण्टों तक फेसबुक में ऑनलाइन रहते है। कभी सोचा है कि जिस फेसबुक को हम आज अपने सबसे करीब रखते है, जिसे आज हम अपना सच्चा दोस्त मानते है और पूरी दुनिया जिससे जुडी है वो फ़ेसबुक क
भी सिर्फ एक कॉलज तक सीमित हुआ करता था और अचानक से पूरी दुनिया में लोकप्रिय होता चला गया।         
                               फेसबुक को 4 अप्रैल, 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने बनाया था जिसका नाम है मार्क ज़ुकेरबर्ग, तब मार्क स्टूडेंट थे और उन्होंने इसे नाम दिया "द फेसबुक"। कॉलेज नेटवर्किग स्केल के रूप में शुरुवात के बाद जल्द ही यह कॉलेज परिसर में लोकप्रिय होती चली गई और कुछ ही महीनों में यह नेटवर्क पूरे यूरोप में पहचाना जाने लगा। अगस्त 2005 में इसका नाम फेसबुक कर दिया गया। देखते ही देखते कॉलज कैंपस से निकलकर फेसबुक ने पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली और आज ये लगभग 35 देशों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट में शुमार है। फेसबुक सिर्फ साइट ही बड़ी नहीं है बल्कि ये आज विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है, जिसमे लहभाग 9 हज़ार कर्मचारी है जो की इंजिनियर, आईटी और कम्युनिकेशन के महारथी है। इसके संस्थापक है मार्क ज़ुकेरबर्ग, जो की सबसे सफ़ल युवा बिजनेसमैन में आते है। आज फेसबुक इस क़दर लोगों के सर चड़कर बोल रहा है कि रोज़ाना फसेबूक में 3000 से ज़्यादा नए प्रोफाइल बनते है और हर साल करोड़ों से भी बहुत ज्यादा लोग इससे जुड़ते है। औसत हर व्यक्ति रोज़ाना फेसबुक पर 3 से 4 घण्टे का समय बिताता है ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। सिर्फ भारत से ही फेसबुक को 50 करोड से ज्यादा यूज़र्स फॉलो करते है और इसमें अपने दोस्तों से बातें करते है। आपको जानकर हैरानी होगी की दुनिया में जितनी सेल्फी खिंची जाती है उनमें से 90 प्रतिशत सेल्फी को फेसबुक में अपलोड किया जाता है, हर घंटे में फेसबुक पर 10 हज़ार सेल्फियां अपलोड की जाती है। किसी सोशल साइट के प्रति ऐसी दीवानगी शायद ही कभी देखने को मिले। फेसबुक में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों को फेसबुक द्वारा बेहद ख़ास सुविधाएं दी जाती है, बेहतर सैलरी के साथ साथ काम करने के लिए बेहतर माहौल और हर तरह की आधुनिक सुविधा मिलती है। फेसबुक का कार्यलय अमेरिका के कैलिफोर्निया शहर में स्तिथ है जिसमें हज़ारों कर्मचारी है। फेसबुक आज के दौर में युवायों को अपनी और सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है लेकिन आजकल जिस तरह से साइबर क्राइम में बढ़ोतरी हो रही है उससे फेसबुक की छवि पर भी असर पड़ता है क्योंकि बहुत बार इसमें कुछ लोगों द्वारा नकली आईडी बनायी जाती है जिसका गलत तरीके से इस्तमाल किया जाता है। 
        आज फेसबुक के बिना हम एक दिन भी नहीं व्यतीत कर सकते क्योंकि फेसबुक एक लत की तरह होती जा रही है, और हो भी क्यों न क्योंकि आज इसमें अरबों लोग जुड़े है। फेसबुक सच में एक ख़ास चमत्कार है जिससे नेटवर्किंग साइट्स की परिभाषा ही बदल दी।


Sunday, 2 October 2016

एप्पल जैसा कोई नहीं..

आज का दौर आधुनिक दौर है, हम हर तरफ से आधुनिक सुविधाओं से घिरे हुये है, नई नई टेक्नोलॉजी और आविष्कारों की बदौलत आज हम चाँद तक पहुँच गये है। आज हम बात करते है एप्पल की, आज एप्पल कंपनी को कौन नहीं जानता, एक ऐसी नामी कंपनी जिसमे काम करना हर इंसान का सपना होता है इनकी सुविधायों के आगे सब कुछ बहुत कम लगता है। 1999 से अभी तक एप्पल कंपनी लगातार कामयाबी दिखाते हुए पूरे विश्व के ग्राहकों की पहली पसंद बन चुकी है, चाहे आईफोन हो या एप्पल पैड या फिर एप्पल सिस्टम आज लोग एप्पल के दीवाने है, और एप्पल आईफोन के लिये तो युवायों में गजब का दीवानापन देखा जाता है।
              एप्पल कंपनी दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों में से एक है इसका मुख्यालय अमेरिका में स्तिथ है। शुरुआती दौर में कंपनी ने आर्थिक मंदी झेली थी लेकिन इसके बाद ऐसी लोकप्रियता हासिल की जो आज पूरी दुनिया देख रही है। हर आदमी की इच्छा होती है कि वह जिंदगी में कभी न कभी एप्पल का फोन जरूर लें। एप्पल आज बेहद बड़ी कंपनी बन चुकी है आपको पता है, एप्पल में नौकरी करने वाला हर तीसरा आदमी भारतीय है।एप्पल कंपनी के संस्थापक  स्टीव जॉब्स है जो पूरी एप्पल इंडस्ट्री को संभालते है। बताया जाता है कि स्टीव जॉब्स को कंपनी ने 1985 में बेदखल कर दिया था उनकी 1996 में फिर से कंपनी में वापसी हुई। पूरी दुनिया में एप्पल कंपनी के लगभग 83,000 कर्मचारी है और एप्पल हेडक्वार्टर के कर्मचारी हर साल 125,000 $ कमाते है। इससे भी चौकाने वाली बात ये है कि एप्पल कंपनी हर 1 मिनट में 300,000 डॉलर की कमाई करती है यानि की लगभग 20 करोड़ रुपए। इसके साथ साथ एप्पल के ऐप्स को दुनिया में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाता है, एप्पल के स्टोर से 25 बिलियन से ज्यादा ऐप्स अब तक डाउनलोड किए जा चुके हैं जो की अपने आप में एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड है। एप्पल कितनी शक्तिशाली इंडस्ट्री है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एप्पल कंपनी से जुड़ते ही 25 साल के उम्र में स्टीव जॉब्स करोड़पति बन गए थे। एप्पल पुरे विश्व में प्रसिद्ध है लेकिन इसका 61 प्रतिशत बिजनेस अमेरिका के बाहर से ही होता है, यानी की प्रॉफिट का एक तिहाई हिस्सा एप्पल का अमेरिका से नहीं बल्की बाकी देशों से आता है। कंपनी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जापान में एक आदमी आईफोन 6 के लिए 7 महीने तक लाइन में लगा था।
                सन 2012 में एप्पल ने अपने 40 मिलियन आईफोन बेचे थे, इसका मतलब रोज़ाना लगभग 1,10,000 आईफोन बेचे गए। एप्पल के आईफोन आज दुनिया भर के करीब 89 देशों में बेचे जाते हैं और हर साल करोड़ों सेट्स की बिक्री होती है।आपको जानकार हैरानी होगी की 2014 की पहली तिमाही में एप्पल कंपनी ने इतने ज्यादा रूपए कमाए थे जो Google,Facebook & Amazon की कमाई को मिलाकर भी पूरा नहीं कर सकती। इसलिए आज पूरी दुनिया एप्पल की दीवनी है।

Saturday, 1 October 2016

उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर..

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसमें बहुत सी सांस्कृतिक विरासत मौजूद है,उत्तराखण्ड जिसे 2006 तक उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण 9 नवम्बर 2000 में हुआ। जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। सन 2000 में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। इस राज्य में हिन्दू धर्म की सबसे धार्मिक और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल है, तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। हर राज्य की अपनी कुछ ख़ास संस्कृति होती है ठीक इसी तरह हमारे उत्तराखंड में भी बहुत सी संस्कृतियां विराजमान है जो की उत्तराखंड को सबसे अलग और ख़ास देवभूमि बनाती है। 


        उत्तराखंड को ईश्वर की धरती या देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हिंदुओं की आस्था के प्रतीक चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री स्थित हैं। उत्तर भारत का ये राज्य गंगा और यमुना समेत देश की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल भी है जिसे गंगोत्री और यमनोत्री के नाम से जाना जाता है।भगवान शिव के और अनेक पवित्र मंदिरों के कारण उत्तराखंड हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में गिना जाता है। बद्रीनाथ और केदारनाथ, दो ऐसे तीर्थस्थल हैं, जो यहां सदियों पहले से हैं। बद्रीनाथ चार धामों में से एक है और सबसे पवित्र स्थलों में से भी एक है। केदारनाथ भी बद्रीनाथ जितना ही पवित्र और दर्शनीय स्थल है,यहां प्राचीन शिव मंदिर है, जहां 12 ज्योर्तिलिंग में से एक शिवलिंग विराजमान हैं। गंगोत्री धरती का वह स्थान है, जिसे माना जाता है कि गंगा ने सबसे पहले छुआ। देवी गंगा यहां एक नदी के रूप में आई थीं। यमुनोत्री यमुना नदी का स्रोत है और इसके पश्चिम में पवित्र मंदिर है।उत्तराखंड आज लगातार बाकी राज्यों की तरह विकास की और बड़ रहा है जिसमे सरकार भी बेहद सहायता कर रही है। उत्तराखंड में तमाम बड़े मंदिर और धार्मिक स्थल है जिसमे हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री, गंगोत्री, हेमकुंड साहिब और तुंगनाथ बेहद ख़ास है। रोजाना हजारों-लाखों की संख्या में तीर्थयात्री इस धार्मिक स्थलों के दर्शन हेतु उत्तराखंड का रुख करते है। इसके साथ साथ यहाँ बहुत से पर्यटक स्थल जैसे की औली, नैनीताल, फूलों की घाटी,मसूरी स्तिथ है।इसके अलावा ऋषिकेश को सभी पवित्र स्थानों के लिए प्रवेश द्वार है।उत्तराखंड की संस्कृति का हर कोई दीवाना है,यहाँ का रहन-सहन,पहनावा, खाना-पीना सब कुछ एक अलग की खुसी का एहसास दिलाता है।    उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों के अलग-अलग खाद्य पदार्थों की बड़ी विविधता है, जो किसी को भी अपना मुरीद बना सकती है। उत्तराखंड में स्थानीय साग-पत्ते और मसाले का मिश्रण खाने का स्वाद और बढ़ा देते हैं यहां मठरी और तिल लड्‌डू, मडुआ रोटी, उड़द के पकौड़े, भांगजीरा की चटनी, आलू के गुटके,सिंगोडी, सिनसुक साग, झिंगारा की खीर, कापा की दाल और सिंघल सबसे स्वादिष्ट तरीके से बनाया जाता है और ये ही यहाँ की पहचान भी है।
             उत्तराखंड अपनी संस्कृति को हमेसा अपनाते आया है,जहाँ पूरा देश पश्चमी संस्कृति की और आकर्षित होता दिख रहा है तो वहीँ आज भी उत्तराखंड में उसकी संस्कृति बसी है यहाँ के लोग अपनी संस्कृति को आज भी उसी तरह के उत्साह से अपनाते है जैसे पहले अपनाते थे। सरकार भी अब उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए गम्भीरता से काम कर रही है,सरकार द्वारा उत्तराखंड की संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जा रहा है और यहाँ के धार्मिक स्थलों पर ख़ासा ध्यान रखा जा रहा है। एक कदम हमे भी उठाना है कि हम अपनी संस्कृति को खोने न दे उत्तराखंड की संस्कृति ही इसकी पहचान है।

Friday, 30 September 2016

सर्जिकल स्ट्राइक--18 का बदला 36 से

उड़ी हमले के बाद से ही 125 करोड़ भारतीय सिर्फ पाकिस्तान से बदले की मांग कर रहे थे, सिर्फ एक ही ख़्वाहिश थी की पाकिस्तान को उसके इस कारनामे का बदला उनकी ही तरह मिले, इसके लिए प्रधानमंत्री द्वारा उच्च स्तरीय बैठकों पर बहुत सी चर्चाएं हुयी और आखिरकार भारतीय सेना ने वो कर दिखाया जिसका इंतजार पूरा भारत कर रहा था, पाकिस्तान को उसी के घर में घुसकर उड़ी हमले का बदला लिया।
            19 सितम्बर को हुए उड़ी हमले के बाद से अभी तक हर भारतीय बस यही तो चाहता था कि पाकिस्तान को सबक मिल जाये और उड़ी हमले के 10 दिन बाद आखिरकार सर्जीकल स्ट्राइक करके भारत ने पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ा दी। ना आतंकवादियों के ट्रेंनिंग कैम्प बचे न ही POK में मौजूद 38 आतंकवादी सबकुछ तबाह करके भारतीय सेना ने ये साबित कर दिया की पाकिस्तान हमे ये सब करने को मजबूर न करे वरना अंजाम यही होगा। सबसे पहले आपको ये बताते है की आखिर सर्जीकल स्ट्राइक होती क्या है? सर्जीकल स्ट्राइक ठीक उसी तरह होता है जैसे एक डॉक्टर किसी मरीज के खास हिस्से में ऑपरेशन करते है, पहले से ही पूरी तैयारी के साथ और हर बात का अच्छे से पता करके इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है। इस तरह के ऑपरेशन में पैरामिलिट्री कमांडो को खास तरह की ट्रेंनिंग दी जाती है, इस तरह की खास ट्रेंनिंग सिर्फ कमांडों को ही दिया जाता है। इसमें ट्रेंनिंग में कमांडो को हर वो चीज के वाकिफ़ कराया जाता है जिससे वो दुश्मनो के छक्के छुड़ा सके।सर्जीकल स्ट्राइक को अंजाम देने वाला भारत तीसरा देश बन चूका है है, इससे पहले अमेरिका और इजराइल इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे चुके है। मेरा मानना है कि भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जो रास्ता अपनाया है वो बिलकुल सही है, ये काम को भारत को बहुत समय पहले ही कर देना चाहिए था तो आज आतंकवाद इस तरह नहीं बढ़ता।
          1947 से आज तक पाकिस्तान कभी भी अपने कारनामों पर रोक नहीं लगा पाया है वो सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देता है। उडी हमले का बदला तो भारत ने ले लिया और शायद अब पाकिस्तान आतंकवादीयों को बढ़ावा देने के लिए हज़ार बार सोचेगा। और अगर फिर भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज़ नहीं आया तो हर बार सर्जीकल स्ट्राइक को झेलने के लिए तैयार रहे।

Thursday, 29 September 2016

योग किया तो डरना क्या..

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसके पास इतना समय है कि वो जिम में पसीना बहाये या सुबह शाम व्यायाम करे, ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि तो आखिर हम कैसे अपने शरीर और मस्तक को स्वस्थ बनाए? इसका जवाब शायद एक है होगा, वो है सिर्फ योगा। योग करने से न सिर्फ शरीर स्वस्थ रहता है इसके साथ साथ मन भी शांत रहता है। 
   किसी ने बिलकुल सही कहा है कि "योग बनाये जीवन निरोग"। आज हर कोई सिर्फ पैसों के लिए पागल है और पूरी उम्र रुपए कमाने के लिए इधर-उधर भटकता है ऐसे में वो अपने शरीर को अंदर से कमज़ोर बना देता है, अगर हम रोजाना सिर्फ 30 मिनट योग करे तो उसका फायदा हमे आजीवन मिलता है।योग एक ऐसी प्रक्रिया है जो आत्मा को परमात्मा तक जोड़ती है और हमारे मन को शांत रखने में मदद करती है। योग भारत की देन है , आज से हजारों साल पहले योग का जन्म हुआ था तबसे लेकर आज तक योग का महत्व लगातार बढ़ता ही आया है। बच्चे हो या युवा या बूढ़े हर कोई आज योग का हाथ थाम रहा है क्योंकि हर कोई इसके फायदे को भलीभांति जानने लगा है। अब तो सरकार द्वारा योग को हर स्कूल और संस्थानों में कराये जाने के निर्देश आ चुके है। इसके साथ साथ पिछले 10-12 सालों में देखे तो युवायों का योग की तरफ अच्छा-ख़ासा रुझान देखने को मिल रहा है, अब वो योग में अपना बेहतर भविष्य को देख रहे है और इसकी तरफ आकर्षित हो रहे है। आज योग का महत्ब पूरा विश्व जनता है यही कारण है कि योग पुरे विश्व में फ़ैल चूका है और हर कोई इससे जुड़ना चाहता है। आजकल हमारे देश में युवा योग सीखकर विदेशों में जा रहे है और वहां योगाचार्य बनकर हजारों लोगों को योग के गुण शिखा रहे है। योग अब इस कदर बड़ रहा है कि सरकार भी अब इसमें आगे आ रही है, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को बड़ाने में एहम योगदान दे रहे है हर साल वो अंतर्राष्ट्रीय योग दिवान को बड़े उल्लास के साथ मानते है और सबको इसमें शामिल होने के लिए कहते है।
           हजारो साल पहले से योग के फायदे देखने को मिलते रहे है, अब तो हर कोई इसे अच्छे से जानने लगा है। आज के जीवन में हम सबको थोड़ा सा समय अपने शरीर को देना चाहिए, सिर्फ सुबह या शाम को 30 मिनट योग करके हम अपने शरीर के साथ साथ अपने मन और मस्तक को भी साफ़ और स्वच्छ रख सकते है। हम दिन भर काम के लिए भागते रहते है, ऐसे में सिर्फ योग एक ऐसा माध्यम है जो आपको हर तरफ से फायदा पहुँचा सकता है।