
दिवाली की रात हर कोई आतिशबाजी करने में व्यस्त था, न किसीने पर्यावरण के बारे में सोचा न ही पशु-पक्षियों की जिंदगी के बारे में और उसके बाद पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने से प्रदुषण की मात्रा और ज्यादा बड़ गयी जिसका नतीजा ये रहा की अब दिल्ली और आस पास के राज्यों में साँस लेने लायक हवा नहीं बची है, हर कोई मुँह पर मास्क लगाके घर से बाहर निकलने को मजबूर हो चूका है। दिवाली से पहले तमाम तरह के प्रचार-प्रसार किये गए थे की इस दिवाली पटाखों का कम से कम प्रयोग करे लेकिन किसी भी अभियान का कोई असर नहीं दिखा और लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, और अब लोग अपने कर्मों पर अफ़सोस कर रहे है, लेकन "अब पछताए होवत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"। प्रदुषण की मात्रा इस कदर बढ़ चुकी है कि छोटे बच्चों के स्कूल तक बंद करवाने पड़ गए है। दीपावली में पटाखे जलाने से हवा में कार्बन,कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाईओक्ससीडे की मात्रा बेहद ज्यादा हो चुकी है जो की हमारे सेहत के लिए काफी खतरनाक होती है और पशु-पक्षियों के लिए भी हानिकारक होती है. लगातार बढ़ रहे प्रदुषण ने दिल्ली सरकार की नींद खराब हो चुकी है और दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित हो चूका है लेकिन इनका क्या फायदा जो नुक्सान होना था वो हो चूका है. अगर सावधानी पहले से बरती होती तो आज देश की राजधानी का दिल यूँ नहीं तड़पता.
हर साल यही तस्वीर सामने आती है, न कोई इनके लिए पहले से तैयारी करता है न बचने के समाधान निकाल पाता है बस एक दूसरे के ऊपर गलतियां थोपते रहते है. इस दूषित पर्यावरण के लिए कौन जिम्मेदार है? हम सब, क्योंकि हमारे द्वारा ही प्रदुषण को बढ़ाया जाता है और हमारे द्वारा की सवाल खड़े किये जाते है.
हर साल यही तस्वीर सामने आती है, न कोई इनके लिए पहले से तैयारी करता है न बचने के समाधान निकाल पाता है बस एक दूसरे के ऊपर गलतियां थोपते रहते है. इस दूषित पर्यावरण के लिए कौन जिम्मेदार है? हम सब, क्योंकि हमारे द्वारा ही प्रदुषण को बढ़ाया जाता है और हमारे द्वारा की सवाल खड़े किये जाते है.
No comments:
Post a Comment