
उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, फिर लोगों ने यहाँ के विकास और रोजगार के लिए उसे अलग राज्य बनाने की मांग उठाई, बहुत से आंदोलन हुए और फिर 9 नवम्बर,2000 में उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित कर दिया गया। उत्तराखंड राज्य को बनाने का बहुत फायदा यहाँ के लोगों को मिलना चाहिए था,रोजगार,उज्जवल भविष्य और पूर्ण विकास के सपनो के साथ इसका गठन तो किया गया लेकिन अफ़सोस की बात है कि जैसा उत्तराखंड 16 साल पहले था आज भी वैसा का वैसा ही है. न अभी तक यहाँ लोगों को पूरा रोज़गार मिल सका, न ही पहाड़ों तक मुलभुत सुविधाएं पहुँच सकी. उत्तराखंड की पहचान हमेसा से यहाँ के पहाड़ रहे है तो सरकार का पहला कर्तव्य पहाड़ों तक सुविधाएं पहुँचाना होना चाहिए था लेकिन आज भी यहाँ के पहाड़ वीरान होते जा रहे है, पहाड़ों पर न बिजली पहुँच रही है न शिक्षा, न ही रोजगार ऐसे में पहाड़ पे रह रहे लोग शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हो रहे है और हमारे पहाड़ वीरान होने को मजबूर है. जहाँ तक विकास की बात है तो विकास तो शहरों का भी नहीं हुआ है, यही तो सच्चाई है कि कहने को तो यहाँ बहुत से शहर है लेकिन उनकी हालत किसी गाऊं से कम नहीं है, न सड़के ठीक है न शिक्षा व्यवस्था और न ही इंड्रस्ट्रीयल विकास ऐसे में भला उत्तराखंड कैसे विकास के रथ पे सवार हो सकता है? 2013 की आपदा को कौन भूल सकता है, लगातार अतिक्रमण और प्रकर्ति से खिलवाड़ का नतीजा आपदा की रूप लेकर जब आया तब उत्तराखंड की तस्वीर ही बदल के रख दी थी, केदारनाथ छेत्र पूरी तरह से छतिग्रस्त हो गया था उस आपदा ने उत्तराखंड को कई साल पीछे कर दिया. सरकार तो हर बार बदलती है लेकिन 16 सालो में अभी तक उत्तराखंड की तस्वीर नहीं बदल सकी।
उत्तराखंड की आबादी लगभग 1 करोड है, जिनमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या रोजगार,बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से कोसो मील दूर है. कहने को यहाँ AIIMS स्थापित हो चुका है लेकिन अभी तक पहाड़ पर मेडिकल सुविधा के नाम पर सिर्फ कुछ चिकित्सक ही है. उत्तराखंड हमे ऐसे ही नहीं मिला इसके लिये बहुत से आंदोलन किये गये, आंदोलनकारियों की कड़ी मेहनत और बलिदान के बाद ये प्रदेश हमे मिला लेकिन सोचिये कि क्या उनके बलिदान का फ़ायदा हुआ?
उत्तराखंड की आबादी लगभग 1 करोड है, जिनमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या रोजगार,बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से कोसो मील दूर है. कहने को यहाँ AIIMS स्थापित हो चुका है लेकिन अभी तक पहाड़ पर मेडिकल सुविधा के नाम पर सिर्फ कुछ चिकित्सक ही है. उत्तराखंड हमे ऐसे ही नहीं मिला इसके लिये बहुत से आंदोलन किये गये, आंदोलनकारियों की कड़ी मेहनत और बलिदान के बाद ये प्रदेश हमे मिला लेकिन सोचिये कि क्या उनके बलिदान का फ़ायदा हुआ?
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