Wednesday, 24 August 2016

इंसानियत खोते इंसान...

आज कल हर कोई सिर्फ अपने आप से मतलब रखता है, सिर्फ खुद की ख़ुशी और जरुरत को ही वो अपना धर्म मानने लगा है। किसी दूसरे का दुःख दर्द के लिए आज किसी पे समय नहीं है क्योंकि आज हम इंसान तो कहलाते है लेकिन हमारी इंसानियत कहीं खो सी गयी है। 
       भगवन ने हर इंसान को एक जैसा बनाया है, हर किसी को वही दिल, वही आँखे और वही जज़्बात लेकिन हर कोई आज इंसान नहीं कहलाता। क्यों? आखिर क्यों इंसान होते हुए भी हमारे अंदर इंसानियत नहीं रही? क्योंकि आज हर इंसान दौलत,शोहरत के पीछे पगलों की तरह भाग रहा है। इंसान ये भी भूल जाता है की जिस दौलत के लिए वो अपनो को छोड़ने के लिए तैयार है एक दिन वो भी उस दौलत को छोड़ के चला जायेगा। आज कल इंसान सिर्फ तीन चेजों पे मरता है, दौलत दौलत और बेहिसाब दौलत। उसकी जिंदगी बस दौलत कमाने में ही निकल जाती है। बात भी सही है कि बिना दौलत आज कुछ भी नहीं, दौलत सब कुछ तो दे सकती है लेकिन शांति नहीं। आज हमे किसी का दुःख नहीं देखते क्योंकि आखों में पैसों का पट्टा लगा हुआ है। जब किसी बड़े हॉस्पिटल में किसी इंसान को इमरजेंसी होती है तो पहले वहां बड़ी रकम जमा करनी पड़ती है, इलाज तब शुरू होता है। पहले रुपए फिर इलाज, ये किस्से अक्सर देखे जाता है।रोड किनारे किसीका एक्सीडेंट हो जाये, तो लोगों की भीड़ तो ऐसी लगती है जैसे उन्हें ही इलाज करना है, लेकिन जब बात आती है उसे उठाके अस्पताल लेकर जाने की तब हम कोशिश करते है की हमे कोई न बोल दे इसे उठाने के लिए। क्योंकि हमे अपना काम, अपना समय उसकी जिंदगी से कई गुना ज्यादा कीमती लगती है।
           इंसान पहले ऐसा था, न पहले इस तरह पैसों की भूख थी, वक़्त के साथ साथ इंसान भी बदला और उसका चरित्र भी। कहा जाता है कि "नेकी कर और दरिया में डाल" लेकिन आज दरिया में सिर्फ प्लास्टिक या पॉलीथीन ही डाला जाता है क्योंकि नेकी कोई करता ही नहीं। लेकिन उसके बावजूद भी हम भगवन  के प्रति अपनी आस्था पूरी रखते है। भगवन के द्वार पे जोर जोर से भजन-किर्तन करते है, वो सुने न सुने पूरा शहर सुन लेता है की आज वहां भजन हो रहा हैं । लेकिन वहीँ पास में एक भूखा इंसान भीख मांगने को मजबूर बेठा है उसकी तरफ कोई नहीं देखता। जब भी कोई खास त्यौहार होता है तो भगवन के मंदिरों पर लाखों लीटर दूध, मक्खन डाला जाता है। लेकिन उसकी जगह किसी गरीब इंसान को एक रोटी देने के लिए बोलो तो वहीँ इंसान मुँह फेर लेता है। अपने परिवार की ख़ुशी की कामना तो हर कोई करता है लेकिन कभी उनके बारे में सोचा है जिन्हें असल में आपके सहारे की जरूरत है। भगवन के प्रति आस्था बिलकुल सही है, इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन इंसानियत के नाते ही सही हमेसा जरूरतमंद की मदद करना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए क्योंकि इंसानियत ही हमारा धर्म है।

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