Sunday, 21 August 2016

मत छीनो बचपन..

बचपन हर किसी के जिंदगी का सबसे ख़ास स्टेज होता है, बचपन यानी खेलने कूदने की उम्र, हर पल मस्ती और किसी भी तरह का कोई दवाब नहीं। आज की भागदोड़ भरी जिंदगी से दो मिनट निकालकर जरा बचपन के दिनों के बारे में सोचो। न किसी बात की चिंता, न कोई जिम्मेदारी बस मस्ती। 
      लेकिन देश में बढ़ती गरीबी के साथ साथ लाखों बच्चों का बचपन उनसे छिन रहा है। एक परिवार में कोई कामने वाला नहीं होता तो उस घर के छोटे छोटे बच्चे बचपन से ही मजदूरी करना शुरू कर देते है। लेकिन उनके माँ बाप को इससे कोई तकलीफ नहीं होती क्योंकि घर चलाने के लिए सिर्फ पिता के पैसे पूरे नहीं हो पाते इसलिए अपने बचपन को भूलकर छोटे बच्चे भी काम पे लग जाते है। काम चाहे कैसा भी हो, होटल या ढाबे पर बर्तन धोना, मजदूरी करना या किसी ठेल्ली पे काम करना, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं बस किसी तरह उनका पेट पल जाये। हर बाप चाहता है की उनका बच्चा बचपन से अच्छे से पढे, ताकि बड़े होकर वो एक अच्छी जिंदगी बिता सके लेकिन गरीबी ने इस कदर लोगों को सताया है की ये अरमान उनके मन में ही दम तोड़ देता है। और ऊपर से सरकार का ढीलापन मानो उनकी जिंदगी को और कठिन क्र देता है। वो सरकार से उम्मीद ही नहीं लगाते क्योंकि वो अच्छे से जानते है की जितने समय में सरकार तक उनकी बात पहुँचेगी तब तक उनका परिवार अपना अस्तित्व खो चुका होगा। इसलिए वो सरकार बरोसे नहीं रहते और अपने छोटे छोटे बच्चों को मजदूरी पे भेज देते है।
            मैंने एक बार गरीब बच्चे से पूछा था कि की तुम स्कूल क्यों नहीं जाते? तो उसने कहा की स्कूल जाने के लिए भी पैसे नहीं है उनके माँ बाप के पास इसलिए वो चाय की ठेल्ली पे काम करने को मजबूर है। आज हमारा देश तरक्की की राह पर अग्रसर है लेकिन गरीब वर्ग तक हर किसी कि आँखें नहीं पहुँचती। जिस उम्र में बच्चों को पढ़ाई करने के लिए स्कूल भेजना चाहिए उस उम्र के लाखों बच्चे आज बाल मजदूरी को झेल रहे है क्योंकि भारत में ग़रीबी बीमारी की तरह फ़ैल रही है। सरकार सुन तो रही है लेकिन देख नहीं रही है, छोटे बच्चों से बड़ी उम्मीद रखनी चाहिए न ही दो पैसे के लिए उनका बचपन छीन लेना चाहिए।

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