Tuesday, 23 August 2016

क्यों फसता है आपदा में उत्तराखंड?

हर साल मानसून के शुरू होते ही उत्तराखंड में आपदा की बरसात शुरू हो जाती है। कहीं बादल फटने की घटनाएं होती है, कहीं सड़क धस जाने की तो कहीं बिजली गिरने की। प्रशाशन हर बार खुद को चोक्कना और पूरी तरह से तैयार बताने के दावे करता है तो फिर क्यों हर बार तस्वीर इतनी भयानक हो जाती है? 


       उत्तराखंड में पहले भी ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आती थी, मगर पिछले कुछ सालों से हालात बेहद गंभीर होते दिख रहे है। साल 2013 की वो प्राकर्तिक आपदा को कौन भूल सकता है जिसने उत्तराखंड को ऐसे घाव दिए जो आज तक नहीं भर सके । सवाल यही उठता है की आखिर क्यों हर बार उत्तराखंड ऐसी आपदा में बुरी तरह फसता है। कुछ जानकारों की माने तो जिस तरह पर्यावरण में परिवर्तन हो रहे है उसकी वजय से ये सारी घटनाएं हो रही है। तो कोई बढ़ते प्रदुषण से हो रही ग्लोबल वार्मिंग को इसका जिम्मेदार बता रहा है। 2013 से अभी तक बहुत सारी घटनाएं उत्तराखंड में सामने आ चुकी है जिसके चलते हजारों लोग प्रभावित हो चुके है। खासकर बरसात के शुरू होते ही उत्तराखंड में मानो आफत शुरू हो जाती है। इस साल यानि 2016 में भी हालात कुछ ठीक होते नहीं दिख रहे है। मई तक सब कुछ ठीक चल रहा था , चार धाम यात्रा भी अपने चरम पर थी मगर मानसून के आते ही एक बार फिर उत्तराखंड आपदा में फसता हुआ नजर आ रहा है। हर बार की तरह सरकार और प्रशाशन ने खुद को पूरी तरह से तैयार बताया मगर शुरुवात में ही हुयी बारिश से प्रशाशन के सारे पोल खुल गए। कहीं घर धस गए, कहीं सड़कें ही बाढ़ के पानी के पानी के साथ बेह गयी,  तो कहीं जिंदगियां भी आपदा के आगे बेबस नजर आये। पहाड़ों में रह रहे लोगों की जिंदगी वैसे ही बहुत मुश्किल होती है, ऊपर से ये आफत की बारिश मानो उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं। उनके घर, खेत और जीवन भर की कुंजी सब कुछ आपदा के भेंट चढ़ जाती है। सरकार उन्हें 1-2 लाख रुपए देकर खुद को जिम्मेदार बता देता है। मगर सरकार शायद ये नहीं सोचती की ये लाख दो लाख रुपए कब तक इनका साथ देंगे।
सबको पता है की हर बार इस तरह की घटनाएं होती है, तो फिर क्यों हर बार सब कुछ तहस नहस हो जाता है। क्या हमारी सरकार, हमारा प्रशाशन इतना कमजोर है की वो इस भयानक तस्वीर को बनने से न रोक सके।

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