

कुछ साल पहले तक बाघों के हमले सिर्फ पहाड़ों पर बसे गाऊं और छोटे कज्बों तक ही देखने को मिलते थे लेकिन आज ये शहरों तक पहुँच चुके है। इसका सबसे बड़ा करण है लगातार बड़ रहा जंगलों का कटाव, जिसके चलते इनके घर खत्म हो रहे है तो ये जानवर शहरों का रुख करने को मजबूर हो रहे है। गलती हमारी ही है क्योंकि आज हम इतने स्वार्थी हो गए है की अपने फायदे के लिए जंगल पे जंगल को काट रहे है ऐसे में जंगली जानवर कहाँ जायेंगे? हम अपने अशियानें के लिए उनका घर उजाड़ रहे है तो अब वो ही हमारे शहरों की तरफ बड़ रहे है। आजकल बाघ का आतंक लगातार बड़ रहा है। अभी कुछ समय पहले ही उत्तराखंड के यमकेश्वर में बसे एक गाऊं में बाघ का बेहद खतरनाक आतंक देखने को मिला, उसी गाऊं के 3 लोगों का शिकार कर चुका था वो लेकिन आज तक वन विभाग उसे पकड़ने में असफल रही है। अब मामले यूपी, हिमांचल से भी सामने आ रहे है जिससे अब सरकार की नींद उडी हुयी है। हर साल हमारे देश में बाघ के हमलों से लगभग दस हजार मौतें होती है और लाखों लोग घायल होते है। पहले ये जानवर रात को हमले करते दिखते थे लेकिन अब क्या दिन क्या रात? जंगली जानवरों के लिए अब सब समय एक ही है। हमारा देश बहुत ज्यादा खेती के ऊपर डिपेंड रहता है, किसान दिन रात मेहनत करके अपने खेतों पर अनाज बोते है लेकिन जंगली जानवरों के चलते इनके सारी खेती नष्ठ हो जाती है। सरकार के पास करोड़ों रुपए है लेकिन वो इतनी असमर्थ है की खेतों के लिए बिजली के तारों की वयवस्था कर सके। अगर प्रशाशन थोड़ा साथ दे तो किसानो का भला हो सकेगा। मेरे विचार में सबसे पहले प्रशाशन को बाघों के हमलो को रोकने के लिए वन विभाग की एक टीम बनानी चाहिए जो सिर्फ बाघों के लिए काम करे, और लोगों को उनके हमलों से बचाये। जिस जगह पर बाघ देखा गया है वहां चौबीसों घंटे वन विभाग को खोज बीन करनी चाहिए। अक्सर देखा जाता है की जब बाघ की खबर मिलती है तो प्रशाशन खोजबीन तो शुरू करता है लेकिन थोड़े देर बाद सब घर की तरफ चल लेते है। अरे वो बाघ है, आज नहीं तो कल फिर आएगा या कभी भी वापस आ सकता है। ऐसे में वन विभाग को और मुस्तैदी दिखाने की जरूरत है।
आज बाघ के हमलों से इंसान भी परेशान हो चुके है। हम इंसानों की गलती से जंगलों को तो नुक्सान हो ही रहा है लेकिन साथ ही साथ हमारी खुद की जिंदगियां भी खतरे में पड़ रही है।
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