Friday, 30 September 2016

सर्जिकल स्ट्राइक--18 का बदला 36 से

उड़ी हमले के बाद से ही 125 करोड़ भारतीय सिर्फ पाकिस्तान से बदले की मांग कर रहे थे, सिर्फ एक ही ख़्वाहिश थी की पाकिस्तान को उसके इस कारनामे का बदला उनकी ही तरह मिले, इसके लिए प्रधानमंत्री द्वारा उच्च स्तरीय बैठकों पर बहुत सी चर्चाएं हुयी और आखिरकार भारतीय सेना ने वो कर दिखाया जिसका इंतजार पूरा भारत कर रहा था, पाकिस्तान को उसी के घर में घुसकर उड़ी हमले का बदला लिया।
            19 सितम्बर को हुए उड़ी हमले के बाद से अभी तक हर भारतीय बस यही तो चाहता था कि पाकिस्तान को सबक मिल जाये और उड़ी हमले के 10 दिन बाद आखिरकार सर्जीकल स्ट्राइक करके भारत ने पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ा दी। ना आतंकवादियों के ट्रेंनिंग कैम्प बचे न ही POK में मौजूद 38 आतंकवादी सबकुछ तबाह करके भारतीय सेना ने ये साबित कर दिया की पाकिस्तान हमे ये सब करने को मजबूर न करे वरना अंजाम यही होगा। सबसे पहले आपको ये बताते है की आखिर सर्जीकल स्ट्राइक होती क्या है? सर्जीकल स्ट्राइक ठीक उसी तरह होता है जैसे एक डॉक्टर किसी मरीज के खास हिस्से में ऑपरेशन करते है, पहले से ही पूरी तैयारी के साथ और हर बात का अच्छे से पता करके इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है। इस तरह के ऑपरेशन में पैरामिलिट्री कमांडो को खास तरह की ट्रेंनिंग दी जाती है, इस तरह की खास ट्रेंनिंग सिर्फ कमांडों को ही दिया जाता है। इसमें ट्रेंनिंग में कमांडो को हर वो चीज के वाकिफ़ कराया जाता है जिससे वो दुश्मनो के छक्के छुड़ा सके।सर्जीकल स्ट्राइक को अंजाम देने वाला भारत तीसरा देश बन चूका है है, इससे पहले अमेरिका और इजराइल इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे चुके है। मेरा मानना है कि भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जो रास्ता अपनाया है वो बिलकुल सही है, ये काम को भारत को बहुत समय पहले ही कर देना चाहिए था तो आज आतंकवाद इस तरह नहीं बढ़ता।
          1947 से आज तक पाकिस्तान कभी भी अपने कारनामों पर रोक नहीं लगा पाया है वो सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देता है। उडी हमले का बदला तो भारत ने ले लिया और शायद अब पाकिस्तान आतंकवादीयों को बढ़ावा देने के लिए हज़ार बार सोचेगा। और अगर फिर भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज़ नहीं आया तो हर बार सर्जीकल स्ट्राइक को झेलने के लिए तैयार रहे।

Thursday, 29 September 2016

योग किया तो डरना क्या..

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसके पास इतना समय है कि वो जिम में पसीना बहाये या सुबह शाम व्यायाम करे, ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि तो आखिर हम कैसे अपने शरीर और मस्तक को स्वस्थ बनाए? इसका जवाब शायद एक है होगा, वो है सिर्फ योगा। योग करने से न सिर्फ शरीर स्वस्थ रहता है इसके साथ साथ मन भी शांत रहता है। 
   किसी ने बिलकुल सही कहा है कि "योग बनाये जीवन निरोग"। आज हर कोई सिर्फ पैसों के लिए पागल है और पूरी उम्र रुपए कमाने के लिए इधर-उधर भटकता है ऐसे में वो अपने शरीर को अंदर से कमज़ोर बना देता है, अगर हम रोजाना सिर्फ 30 मिनट योग करे तो उसका फायदा हमे आजीवन मिलता है।योग एक ऐसी प्रक्रिया है जो आत्मा को परमात्मा तक जोड़ती है और हमारे मन को शांत रखने में मदद करती है। योग भारत की देन है , आज से हजारों साल पहले योग का जन्म हुआ था तबसे लेकर आज तक योग का महत्व लगातार बढ़ता ही आया है। बच्चे हो या युवा या बूढ़े हर कोई आज योग का हाथ थाम रहा है क्योंकि हर कोई इसके फायदे को भलीभांति जानने लगा है। अब तो सरकार द्वारा योग को हर स्कूल और संस्थानों में कराये जाने के निर्देश आ चुके है। इसके साथ साथ पिछले 10-12 सालों में देखे तो युवायों का योग की तरफ अच्छा-ख़ासा रुझान देखने को मिल रहा है, अब वो योग में अपना बेहतर भविष्य को देख रहे है और इसकी तरफ आकर्षित हो रहे है। आज योग का महत्ब पूरा विश्व जनता है यही कारण है कि योग पुरे विश्व में फ़ैल चूका है और हर कोई इससे जुड़ना चाहता है। आजकल हमारे देश में युवा योग सीखकर विदेशों में जा रहे है और वहां योगाचार्य बनकर हजारों लोगों को योग के गुण शिखा रहे है। योग अब इस कदर बड़ रहा है कि सरकार भी अब इसमें आगे आ रही है, हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को बड़ाने में एहम योगदान दे रहे है हर साल वो अंतर्राष्ट्रीय योग दिवान को बड़े उल्लास के साथ मानते है और सबको इसमें शामिल होने के लिए कहते है।
           हजारो साल पहले से योग के फायदे देखने को मिलते रहे है, अब तो हर कोई इसे अच्छे से जानने लगा है। आज के जीवन में हम सबको थोड़ा सा समय अपने शरीर को देना चाहिए, सिर्फ सुबह या शाम को 30 मिनट योग करके हम अपने शरीर के साथ साथ अपने मन और मस्तक को भी साफ़ और स्वच्छ रख सकते है। हम दिन भर काम के लिए भागते रहते है, ऐसे में सिर्फ योग एक ऐसा माध्यम है जो आपको हर तरफ से फायदा पहुँचा सकता है।

Wednesday, 28 September 2016

नाच न जाने आँगन टेड़ा..

किसीने सच ही कहा है कि आधा ज्ञान हानिकारक होता है, अगर किसी चीज़ के बारे में पता ही न हो तो उस तरफ चलना ही क्यों? ये तो वही बात हो गयी कि,नाच न जाने आँगन टेड़ा"। हम अक्सर देखते है कि कुछ लोग बिना सोचे समझे ऐसे कदम उठा लेते है जिनके बारे में उन्हें कुछ पता ही नहीं होता, वो ऐसा क्यों कर रहे है?किस लिए कर रहे है और क्या मिलेगा ऐसा करके?
         हम ऐसा इसलिए बोल रहे है कि आज कश्मीर में जो युवा सेना के जवानों पर पत्थर फ़ेंक रहे है उन युवायों को खुद ही नहीं पता की वो ऐसा क्यों कर रहे है। उनकी समझ इतनी नहीं है कि वो इस बात को समझ सके की क्या सही है क्या गलत। जब मीडियाकर्मी ने कश्मीर जाकर इन पत्थरबाजों से बातचीत करी, तो पत्थरबाजों के जवाब सुनके सब चोंक गए। जब पत्थरबाजों से पूछा गया कि वो भारतीय सेना पर पत्थर क्यों फेंक रहे है तो उन युवायों का कहना था कि उन्हें ये नहीं पता की वो पत्थर क्यों फेक रहे है न ही उन्हें ये पता है कि वो किस बात की आज़ादी मांग रहे है। ये बेहद शर्मिंदगी वाली बात है कि जिस देश में हम रह रहे है, जिस धरती पर जन्म लिया जिस देश का खाना हम खाते है उसी देश के खिलाफ आज युवा ज़हर उगल रहा है। कश्मीर में हिंसा को भड़काने वाले आतंकवादी घाटी के युवायों को निशाना बनाके बीएसएफ के जवानों पर हमला कर रहे है। उन्हें ये बात अच्छे से पता है कि घाटी में युवायों को किस तरह से भटका सकते है, कुछ रुपए का लालच देकर वो उनके हाथों पे पत्थर रख रहे है वो बहुत से नासमझ युवा सही गलत को न देखते हुए वो काम कर रहे है जो की देश के खिलाफ है। चौकाने वाली बात ये है कि इन युवायों को उम्र 15 से 22 साल तक की है, कुछ तो अभी स्कूल जाते है। उउन्हें आजादी चाहिए लेकिन किस बात की आजादी ये किसी को नहीं पता, भारत को आजाद हुए तो 70 साल हो गए है , अब कौन की आजादी चाहिए इन्हें? जिन्हें आजादी का मतलब ही नहीं पता उन्हें आजादी आजादी चिल्लाने का भी हक़ नहीं होता, बेवजय चिल्लाना और देश के खिलाफ आवाज उठाना बेहद गलत है।
         मुझे ये बात समझ नहीं आती की कोई पढा-लिखा हुआ इस तरह की बचकानी हरक़तें कैसे कर सकता है, सिर्फ एक दूसरे को देखकर या किसी की दही बातों पे आकर अपने ही देश के खिलाफ होना उनके लिए बड़े शर्म की बात है। कश्मीर कल भी हिंदुस्तान का था, आज भी है और कल भी हिंदुस्तान का ही रहेगा ये बात पूरी दुनिया को पता होना चाहिए खासकर पाकिस्तान को।

Tuesday, 27 September 2016

बिना समझौता तोड़े भारत लेगा बदला..

उड़ी हमले की आज पूरा हिंदुस्तान निंदा कर रहा है, आवाम की मांग है कि जल्द से जल्द पाकिस्तान को उनकी इस हरकत की कठौर सज़ा दी जाये। अब युद्ध के लिए तो शायद हमारी सरकार इजाजत न दे तो एक और तरीका भारत ने ख़ोज निकाला है जिससे बिना युद्ध किये पाकिस्तान को उड़ी हमले की सज़ा मिल जायेगी। वो सज़ा मिलेगी सिंधु जल समझौते को तोड़कर, लेकिन क्या इस समझौते को तोड़ना भारत के लिए इतना आसान होगा? 
            कराची में 19 सितम्बर,1960 को भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल समझौता हुआ था, तब तीन पार्टियों भारत, पाकिस्तान और वर्ल्ड बैंक ने इस पर हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते के अंतर्गत भारत से सिंधु नदी के साथ साथ उसकी सहायक नदियों के पानी को पाकिस्तान के लिए देना था, इससे पाकिस्तान को पानी तो मिलता ही इसके साथ साथ दोनों देशों के बीच दोस्ती भी रहती लेकिन समझौते के 5 साल बाद ही पाकिस्तान की तरफ से हिंदुस्तान पर आतंकी हमला हुआ और तभी से भारत समझ गया कि पाकिस्तान हमारा ही पानी पीके हमसे ही युद्ध करेगा। लेकिन बावजूद इसके भारत ने पिछले 55 सालों से कभी भी इस समझौते को तोड़ने की बात नहीं कही, जबकि पाकिस्तान की तरफ से हमेसा युद्ध होता रहा है। 1971 का युद्ध , फिर कारगिल और उसके बाद भी कई बार पाकिस्तान ने भारत को इस समझौते को तोड़ने के लिए मजबूर किया लेकिन भारत ने बड़प्पन दिखाते हुए ये कदम नहीं उठाया। आज हर टीवी चैनल, अखबार और विशेषज्ञ ये बात बोल रजे है कि भारत को सिंधु जल नदी समझिता तोड़ देना चाहिए ताकि पाकिस्तान पानी के लिए तड़प उठे। लेकिन क्या हम ये जानते है कि इस समझौते को तोड़ना कोई आसान काम नहीं है। अगर भारत इस समझौते को तोड़ता है फिर भी वो सिंधु और उसकी सहायक नदियों का पानी पाकिस्तान जाने से नहीं रोक सकते क्योंकि अभी तक भारत ने इसके लिए कश्मीर में कोई डैम या नहर नहीं बनाई है। अगर समझौता आज टूटता भी है तो पानी रोकने में 15 से 20 साल तक लगेंगे। दूसरा कारण ये है कि अगर भारत ये समझौता तोड़ देता है तो पाकिस्तान में आतंकवादी आवाम को हिंदुस्तान के खिलाफ खड़ा कर सकते है। इसलिए भारत ये समझौता तो नहीं तोड़ेगा लेकिन अपने अधिकारों का अब पूरा यूज़ करेगा। अभी तक हिंदुस्तान सिंधु और उसकी सहायक नदियों यानि की  झेलम,रवि,सतलुज और चेनाब का भरपूर यूज़ नहीं किया है, भारत सिर्फ 20 % पानी का इस्तेमाल करता है जबकि समझौते के हिसाब से भारत 60 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल कर सकता है। अगर भारत सिंधु जल समझौता का भरपूर इस्तेमाल करता है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो जायेगी।
        पाकिस्तान को अब ये नहीं भूलना चाहिए की भले की भारत इस समझौते को बड़ी तोड़ सकता लेकिन वो अपने सिंधु जल समझौते का पूरा इस्तमाल कर सकता है जो की पाकिस्तान के लिए बड़ी चिंता का विषय है। पाकिस्तान की 77 प्रतिशत जनता सिंधु और उसकी सहायक नाफ़ियों के भरोसे है ऐसे में अगर भारत भी इस समझौते से नदी का ज्यादा इस्तेमाल करता है तो पाकिस्तान की हालत क्या होगी ये पूरा पाकिस्तान जनता है।

Monday, 26 September 2016

4जी डाटा नहीं आटा चाहिए..

रोटी, कपडा और मकान इन तीन चीजों के बिना जीवन गुजारना किसी चुनोती से कम नहीं , और आज इन्हीं तीन को खरीद पाना हर किसी के बस में नहीं क्योंकि लगातार महँगाई आसमान छू रही है। गरीबों की सुध लेने वाला कोई नहीं दिखता, क्योंकि पूरी दुनिया तो अपने अपने काम और पैसों के लिए भाग रही है। 
              रिलायंस के मुखिया मुकेश अंबानी ने इतनी महँगाई के बावजूद तीन महीने के लिए देश भर में 4जी डाटा देने का कारनामा तो कर दिखाया लेकिन इससे किसी भी एक गरीब का भला होगा? क्या वो लोग 4जी डाटा इस्तमाल कर सकेंगे जो दो वक्त की रोटी के मोहताज़ है? बिलकुल भी नहीं क्योंकि गरीबों के लिए क्या 3जी क्या 4जी, उनकी नजर से देखा जाये तो रिलायंस ने सिर्फ अमीरों का भला किया है। निचले वर्ग या गरीब लोगों के लिए ये कोई अच्छा कदम नहीं है , अंबानी साहेब उन्हें डाटा नहीं आटा चाहिए। हमारे देश में हजारों ऐसे लोग है जिनकी कमाई करोड़ों रुपए से भी हजार गुना ज्यादा है , दुनिया के सबसे धनी लोगों में हिंदुस्तान के भी कई चेहरे देखने को मिलते है लेकन यही हिंदुस्तान करोड़ों उन लोगों का भी ही जो बड़ी ही मुश्किल से अपनी जिंदगी को जी रहे है,ना खाने के लिए खाना है, न रहने के लिए घर न ही पढ़ाई के लिए रुपए। ऐसे में वो लोग 4जी डाटा का क्या इस्तमाल करेंगे क्योंकि मोबाइल फ़ोन भी तो नहीं है। काश रिलायंस ग्रुप तीन महीने के लिए गरीब लोगों के लिए कुछ किलो आटा मुफ्त कर देता तो करोड़ों गरीब लोग उन्हें दुवाएं देते। आज भारत में लगभग 10 करोड बच्चे ऐसे है जो स्कूल नही जाते क्योंकि उनके माँ-बाप के पास उन्हें पढ़ाने के लिए रुपए तक नहीं है तो गरीबी से लड़ने के लिए वो बच्चे मजदूरी करते है। ऐसे ही 3 करोड बच्चे वो है जो कुछ घण्टे स्कूल जाते है फिर काम पर निकल जाते है, ये सब उनकी मजबूरियां है क्योंकि उन्हें रोटी चाहिए जो की सिर्फ मजदूरी करके ही तो मिलेगी, ऐसे में अगर 4जी डाटा की जगह 1-1 किलो आटा ही मिल जाता तो उन करोड़ों बच्चों के चेहरों पर जो खुसी होती वो हम कभी बयां नहीं कर सकते। मैं ये नहीं बोल रहा हूं कि गरीबों की तरफ कोई देखता ही नहीं है लेकिन इन्हें वो सब सुविधाएं नहीं मिल पा रही है जो इनकी जिंदगी को  कुछ हद तक आसान कर सके। सरकारी और प्राइवेट संस्थाएं अगर कुछ करोड रुपए को ईमानदारी से गरीबों की जिंदगी में लगाये तो कुछ ही सालों में हिंदुस्तान से गरीब शब्द ओझल हो जायेगा।
        आज पूरा हिंदुस्तान रिलायंस जियो से प्रभावित है और हो भी क्यों न, इतनी महँगाई में जहाँ हर चीज़ के दाम ऊपर बड़ रहे है ऐसे में तीन महीने तक फ्री 4जी किसी सपने से कम नहीं है। मगर ये भी हमे पता है कि 4जी का लुफ्त गरीब लोग कैसे उठा पाएंगे? काश रिलायंस तीन महीने तक हर गरीब परिवार को 4जी डाटा की जगह आटा देते। 

Sunday, 25 September 2016

बस्ता है या बोझ..

सुबह सुबह स्कूल के लिए बच्चों को जाता देख एक ही सवाल मन में आता है कि ये इनका बस्ता है या कोई बोझ क्योंकि छोटे छोटे बच्चों की पीठ पर लटके बड़े-बड़े बैग किसी भरी बोझ से कम नही लगते। सरकार का नियम है कि स्कूली बच्चों के बैग का वजन भारी नहीं होना चाहिए लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चों के बैग का वजन उन्हें वजन से भी ज्यादा भारी होता है। 
  ऐसा नहीं है कि आजकल ही ऐसा देखने को मिलता है, जब मैं भी स्कूल जाया करता था तब मेरा बस्ता भी किसी बोझ से कम नहीं हुआ करता था, घर से स्कूल तक यही सोचता था कि आखिर इतना ज्यादा भार क्यों? कोई हमे देखता क्यों नहीं ही की हम क्या झेल रहे है और कैसे झेल रहे है। घर से निकलते ही लंबे रास्ते को सोचता था और फिर अपने 10 किलो के बस्ते को एक मज़दूर की तरह अपने कंधों पर रखकर स्कूल की तरह निकल पड़ता था। हँसी भी आती थी की पढ़ाई-लिखाई इतनी होती भी नहीं है जितनी किताबें बस्ते के अंदर राखी रहती थी। मुझे ऐसा लगता है कि बच्चों पर इतना बोझ रखने की कोई जरूरत नहीं है अगर घर के लिये होमवर्क भी दे रहे है तो 2 या 3 विषय बहुत है क्योंकि ज्यादा विषयों पर एक साथ काम देना बच्चों के समझ में नहीं आता है सिर्फ बस्ते का वज़न जरूर बढ़ाता है। कानून भो कहता है कि स्कूली बैग का वजन भारी नहीं होना चाहिए और अगर किसी स्कूल को इसका दोषी पाया जाता है तो स्कूल प्रशाशन के खिलाफ सख्ती से कार्यवाही की जएगी, उस स्कूल के प्रिंसिपल और प्रबंदकों को भी सज़ा में हिस्सेदारी मिल सकती है। तो सरकार ने बच्चों के इस समस्या के लिए कड़े कानून तो बना दिए है लेकिन सच्चाई हम सबके सामने है। आज भी रोजाना करोड़ों स्कूली बच्चे पढ़ाई का बोझ एक बस्ते में रूप में लेकर स्कूल जाते है, जिसमे स्कूल प्रशाशन चुप्पी साधे बैठा रहता है। 
            वैसे ही हमारे देश में शिक्षा की बदहाली रहती है, कहीं बच्चे नहीं है तो कहीं शिक्षक नहीं है तो कहीं ये दोनों है तो पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं है। एजुकेशन सिस्टम का हाल तो सबसे ज्यादा बुरा है ऐसे में अगर सरकार इन छोटी छोटी बातों पर भी सख्ती नहीं दिखाएगी तो छोटे-छोटे मासूम बच्चों का क्या होगा?कब तक तो हर सुबह अपने वज़न से भी ज्यादा भारी बस्तों को लेकर स्कूल जायेंगे? माना कि उन कंधों ने कल देश का भार संभालना है इसका ये मतलब तो नहीं की अभी से उनको 10-10 किलो ने बस्ते पकड़ा दिए जाये।

Saturday, 24 September 2016

अब न कहना भी मुश्किल..

एक मेडिकल कॉलेज की लड़की को कॉलज जाते हुए एसिड अटैक का शिकार बना दिया जाता है, एक काम करने वाली लड़की को सरेआम 25 बार चकुयों से मारा जाता है, एक लड़की को जला दिया जाता है ये सब घटनाएं रोजाना हमारे देश में होती है क्योंकि लड़कियों का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने मनचले आशिक़ का प्रेम प्रस्ताव को मना किया। 
            बड़े ताज्जुब की बात है कि जिस देश में लड़कियां आईपीएस,पीसीएस और यहाँ तक की राष्ट्रपति तक बन जाती है उसी देश में आज भी लड़कियों को राह चलते मार दिया जाता है। कुछ सरफिरे लड़के जो खुद को आशिक़ नाम देते है उन्हें ये कौन समझाये की इस तरह की हरकतें इंसान नहीं बल्कि शैतान करते है। उन्ही वजय से आज लड़कियों को न कहने का डर सताने लगा है क्योंकि न कहने पर तो लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करदी जाती है या उन्हें मार दिया जाता है। ये तो उस ज़माने की तरह हो गया जब राजा अपने राज्य में कोई सुंदर लड़की को देख लेते थे या उन्हें अगर को पसंद आ गयी तो वो उस राजा को हर कीमत पर चाहिए, चाहे उसके लिए खून तक बेह जाये। अरे ये 21वीं सदी है, आज इंसान चाँद को छू रहा है और कुछ सरफिरे युवक आज भी लड़कियों को दासी समझ रहे है। आज लड़कियों को इतना भी हक़ नहीं की वो किसी लड़के के प्रेम प्रस्ताव को न बोल सके, उनकी जिंदगी है उन्हें फैसला लेने दो जबरदस्ती न रिश्ता बनता है और न ही बनाया जाता है। कुछ दिनों तक लड़की का पीछा करना, उसे डराना-धमकाना , गलत हरकत करना ये सब वो करते है जो लड़के नहीं होते या यूं कहें जो मर्द ही नहीं होते, सबसे पहले इंसानियत को सीख लो तब सोचना इधर-उधर की। आजकल लड़कों ने लड़कियों को परेशान करना अपना पेशा बना दिया है, अगर लड़की ने गुस्सा किया या लड़के का दिल तोड़ा तो उस लड़की को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, झूट-झूट की कहानियां, गंदे आरोप और चरित्र पे सवाल खड़े कर दिए जाते है। अक्सर ये देखा जाता है कि को युवक खुद बदनाम है वो भी अगर किसी लड़की के चरित्र पे ऊँगली उठाये तो उसी को सब मान लेते है क्योंकि लड़कियों को तो उनकी सच्चाई के साथ दबा दिया जाता है। सबसे ज्यादा बुरा हाल आज दिल्ही का है जहाँ रोज़ाना सरफिरे आशिक़ न कहने वाली लड़कियों को बेहरमी से मार देते है या उनपे एसिड फेंक देते है न प्रशाशन का डर न ही खुदा का।
           इस तरह की घटनाओं को जल्द की रोकना होगा लेकिन कैसे? मेरा मानना है कि इस तरह के आरोपियों को हिरासत में लेने की कोई जरूरत नहीं है उन्हें सीधा जान से मार देना चाहिए उन्हें जेल में बंद करने से कुछ भला नहीं होगा देश का सिर्फ कैदियों की संख्या में इजाफ़ा होगा। उन्हें ये बताने की जरूरत है कि लड़कियां उनकी जागीर नहीं की उनका फ़ैसला हसते-हसते मान लिया जाये।


Friday, 23 September 2016

मिट्टी की खुशबू सी यादें..

जब बारिश की पहली बूँद मिट्टी पर गिरती है उस वक़्त जो मिट्टी की खुशबू आती है वो हर किसीके दिल को छू जाती है उसी तरह हमारी जिंदगी में कुछ यादें उसी खुशबु की तरह होती है जिन्हें सोचकर ही दिल खुश् हो जाता है। चाहे यादें अच्छी हो या बुरी लेकिन वो पुरानी बात और पुराने पल तरोताज़ा कर जाती है,इसलिए यादों को मैं मिट्टी की खुशबू के समान मानता हूं।
        आज हम अपने बचपन को पीछे छोड़ आगे निकल चुके है, जब 9-10 साल के थे तब जिंदगी बहुत अलग थी, आज अलग है और आने वाले समय में भी अलग होगी क्योंकि सब चीज वक़्त के साथ बदलती रहती है। बचपन में स्कूल जाने का बिलकुल मन नहीं होता था, माँ मार मार के घसीटते हुए स्कूल गेट तक लेकर जाती थी, उस वक़्त मेरा कहीं भाग जाने का मन होता था लेकिन जब दिन में छुट्टी की घंटी कानो पर पड़ती थी वो सुबह का गुस्सा न जाने कहाँ भाग जाया करता था। घर पहुँचते ही कहीं जुटे तो कहीं कपड़े फेंककर मस्ती में लग जाय करता था। ये बचपन की बातें आज भी अच्छे से याद है जब हाजी सोचता हूं तो आँखों के सामने बचपन की तस्वीर आ जाती है। जितनी खुशी मुझे ये सब सोचकर मिलती है उतनी ही तकलीफ मुझे इस बात से होती है कि अब बचपन कभी मुड़ के वापस नहीं आएगा, बचपन के दिन चले गए अब जिंदगी के असली मायनों को देखने और सीखने का समय आ गया है। लयकीन आज भी जब खिड़की से बारिश को जमीं पे गिरता देखता हूं तो बचपन की यादें ताज़ा हो उठती है, तब भी में बारिश के बूदों को गिनने की कोशिश करता था, हर बार करता था लेकिन हमेसा हार जाता था। हँसी सी आती है ये सब सोचकर तो थोड़ा हस लिया करता हूँ क्योंकि आज भी में उन बूदों को गिनने में कामयाब नहीं हो पाता। मुझे आज भी याद है सर्दियों में सुबह के वक़्त सीसे पे धुंध पड़ी रहती थी, उनमें ऊँगली से घर बनाना, घर के बहार एक गाड़ी और एक गेट, मानो मैं अपना सपना उसमे बना रहा हूँ।
         आज ये सब बातें एक याद बनकर रह गयी है लेकिन आज भी ये उस वक़्त जिंदा हो उठती है जब मिट्टी की खुशबू आती है। अपनेपन का एहसास तो कराती ही है उसके साथ साथ कुछ पलों के लिए हमे बचपन की तरफ लेकर चली जाती है ये खुसबू।

Thursday, 22 September 2016

हमारी अधूरी कहानी..

इश्क़, प्यार और महोब्बत तीन अलग अलग शब्द है लेकिन इनका मतलब एक ही है। आज भले ही प्यार का मतलब किसी को पता न हो लेकिन हर कोई इसमें गिरना चाहता है, इसके रंग देखना चाहता है इसे महसूस करना चाहता है। प्यार सिर्फ लड़का-लड़की वाला नहीं होता, एक माँ का अपने बच्चे के लिए, एक बहन का अपने भाई के लिए भी होता है। लेकिन आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में किस के पास इतना समय है कि वो प्यार का मतलब जाने। बस बेहिसाब दौलत मिल जाये प्यार तो कहीं से भी मिल जायेगा। 
            प्यार हर रिश्ते को मजबूती देता है, एक पकवान में स्वाद का काम करता है प्यार। जब माँ अपने बच्चे के माथे को चूमती है तब एहसास होता है कि आखिर क्या है प्यार। जब बहन अपने छोटे भाई को गोद में इधर-उधर घुमाती है तब मालूम होता है कि ये है प्यार। सिर्फ प्यार बोलने से नहीं मिलता न ही बढ़ता है, इसके लिए चाहिए समझ और एहसास। हीर-रांझा, सोनी-महिवाल को कौन नहीं जानता इनके प्यार के रिश्तों के बारे में हम हमेसा सुनते आये है। ये आज भले ही हमारे बीच में नहीं है लेकिन जब भी प्यार की बात आती है तो इनका नाम आना लाज़मी है क्योंकि इनका प्यार सच्चा था,अटूट था। आज ये नहीं है लेकिन प्यार का एहसास कभी नहीं जाता, वो तो हवा की तरह हमेसा यही रहता है। लेकिन सब रिश्तों की हैप्पी एंडिंग हो ये मुमकिन तो नहीं, हर रिश्ता प्यार पे शुरू हो और प्यार पे ही खत्म ये भी मुमकिन नहीं क्योंकि बहुत बार प्यार तो होता है लेकिन मिल नहीं पता। सबके प्यार की कहानी पूरी नहीं हो पाती, जिनकी होती है वो सच में भाग्यशाली होते होंगे और जिनका प्यार अधूरा रह जाता है उनकी कहानी भी अधूरी रह जाती है। पास तो आते है लेकिन दूरियाँ कम नहीं होती क्योंकि जरुरी नहीं की आसमा और जमीं कभी एक हो, उसी तरह ये भी जरूरी नहीं की हर प्यार पूरा हो।और जब प्यार पूरा नहीं होता, जिसे हम चाहते है उसका साथ उम्रभर नहीं मिलता तो वो वक़्त वो पल हमे तड़पा तड़पा के मार देता है। अगर प्यार अधूरा रह जाये तो जिंदगी तो रहती है पर जीने का मन नहीं करता, न खुद की खबर रहती है ना किसीकि सुध बस उसका चेहरा बार बार याद आता है। दिन तो जैसे तैसे गुज़र जाता है लेकिन शाम फिर उसकी याद लेकर दरवाजे में दस्तक देती है, फिर वो रात 7-8 घंटो की नहीं बल्कि 7-8 सालों की लगती है। आज इंसान सिर्फ पैसों के लिए पागल हो रहा है ना घरवालों की चिंता रहती है ना अपने चाहने वालों की, लेकिन जब कोई चाहने वाला दूर चला जाता है तब हम उस वक़्त को याद करते है जब हम उन्हें वक़्त नहीं दे पा रहे थे। कोसते है तब खुद को की ये क्या हो गया, चाहता था जिसे दिलो जान से आज वो ही दूर चला गया।
       प्यार हर किसी को मिले ये जरूरी नहीं , प्यार अगर गुड़ की तरह मीठा होता है तो इसी को आग का दरिया भी कहा जाता है। ये हमेसा दो रूप दिखता है, कभी हसाता है तो कभी रुलाता है। अगर कोई तम्हे दिल से प्यार करे तो उसका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में सबसे खूबसूरत एहसास है प्यार, बहुत किस्मतवालों को मिलता है।

Tuesday, 20 September 2016

ना डिजिटल इंडिया, ना काला धन...चाहिए सिर्फ बदला

मोदी सरकार को दो साल हो चुके है, इन दो सालों में बहुत कुछ नया देखने को मिला लेकिन जो चीज नहीं बदली वो है आतंकवाद। उड़ी में जिस तरह पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने बिना कारण भारतीय सेना पर हमला किया ये बिलकुल भी बर्दाश किये जाने लायक नाही है। आज पूरे 130 करोड भारतीय, सरकार से बस यही चाहती है कि पाकिस्तान को इस कांड का जवाब उनके तरीके से ही दिया जाये।
           उडी में हुए आतंकवादी हमले से पूरा हिंदुस्तान दहल उठा है, हर तरफ पाकिस्तान मुर्दाबाद की आवाज सुनाई दे रही है, जुलूस निकाल जा रहे है पुरे देश में आक्रोश देखा जा सकता है लेकिन क्या फायदा उस आक्रोश का जब हमारी सरकार ही कुछ नहीं कर पा रही है। करोड़ो हिंदुस्तानियों की आँखों में इस वक़्त गुस्सा और आतंकवाद के लिए आक्रोश देखने को मिल रहा है तो वहीँ अभी तक सरकार सिर्फ रिपोर्ट तक ही सीमित है। अभी तक सिर्फ उच्च स्तर की मीटिंग और रिपोर्ट मांगी जा रही है, अरे इतने समय में तो अमेरिका अपने दुश्मनों को घर पे घुसकर मार गिरता। 48 घंटे से ज्यादा समय हो चूका है अभी तक सरकार से ये फैसला नहीं लिया गया कि आतंकवाद को कैसे खत्म किया जाये, कैसी इनसे निपटा जाये? बहुत बर्दाश कर लिया हमने, कब तक हमारे जवान यूँ ही देश के लिए शहीद होते रहेंगे?उनके परिवारों के बारे में तो सोचो, उस 10 साल के बच्चे के बारे में सोचो जिसका पिता अब कभी उसके सामने नहीं आ सकता, उस माँ के दिल से सोचो की इस वक़्त उसपे क्या बीत रही होगी , जिसका जिगर का टुकड़ा आज कफ़न पर लिपटा हुआ है। ये सोचकर भी रोना आ जाता है तो उसके लिए ये वक़्त कितना भयानक होगा जिनका बेटा, पिता भाई आज आतंकवादियों के गोलियों का निशाना बने है। हर बार, हर बार सिर्फ हमारे साथ ही क्यों? आखिर क्यों और कैसे कुछ आतंकवादी हमारी सरहद तक पहुँच जाते है और इस तरह की घटना को अंजाम दे देते है। आज में भी सरकार से ये बात बोलना चाहता हूं कि हमे काला धन वापस नहीं चाहिए, हमे डिजिटल इंडिया नहीं चाहिए न ही कांग्रेस या भाजपा की सरकार चाहिए हमे बस इस बार पाकिस्तान से बदला चाहिए। ऐसा बदला की आज के बाद पाकिस्तान की तरह की हरकत के बारे में कभी सोचे भी तो उसकी रूह कांप जाये।
          बहुत गुस्सा आता है ये सोचकर की हमारा देश किस भावना से सोचता है, आखिर क्यों हम आतंकवादियों को और उन्हें पैदा करने वालो को मुँह तोड़ जवाब नहीं दे पाते? आज हमारे 20 सैनिक शहीद हुए है , सिर्फ उन्हें सलामी देने से ये आज नहीं बुझेगी। शुरू पाकिस्तान ने किया है तो खत्म अब हिंदुस्तान को करना होगा, उच्च स्तरीय बैठकों से आज तक कुछ नहीं हुआ।

कहीं कलम कहीं पत्थर..

आज फिर हिंदुस्तान को आतंकवाद ने झटका दे दिया, एक बार फिर हमारे देश के वीर जवान सरहद की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गए, एक बार फिर आतंकवादियों ने हमारा दिल झंझोर दिया। आज आतंकवाद से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व परेशान है, आतंकवाद ने अपना पैर हमारे देश में फिराने शुरू कर दिए है,इसका सबूत ये है कि आज कश्मीर में युवायों के हाथों में पत्थर पकड़वा चुके है आतंकवादी। आतंकवादियों के निशाने पर अब कश्मीर के युवा है जिनको कुछ पैसों का लालच देकर वो BSF के जवानों पर पथराव करवा रहे है।
              पता है हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है, यहाँ के लोगों का एकजुट ना होना। यहाँ हर कोई पैसों के लिए जीता है और पैसों के लिए ही मर जाता है, अगर बात करे कश्मीर की तो यहाँ हालाद हमेसा से नाजुक रहे है। चाहे कश्मीर का मुद्दा हो या नक्सलियों का, यहाँ साल भर आतंकवादी मुठभेड़ चलती रहती है, लेकिन अब आतंकवादियों ने हिंसा बड़ाने के लिए नया हथियार के रूप में यहाँ के युवायों का इस्तेमाल करना सीख लिया है। जी हां अब वो कश्मीर के युवायों को कुछ रुपयों का लालच देकर घाटी में हिंसा कर वा रहे है। कश्मीर और बीएसएफ का हमेसा से रिश्ता कुछ खास नहीं रहा है इसी बात को फायदा उठाते हुए अब आतंकवादी घाटी के युवायों से बीएसएफ के जवानों पर पथराव करवा रहे है, जिसमे बहुत से जवान घायल हो रहे है और घाटी में लगातार तनाव भी पैदा हो रहे है। सेना के जवान भी मजबूर है क्योंकि घाटी के युवायों पर गोलियां चलाना एक तरह से गलत ही है क्योंकि वो हमारे ही देश के है,ऐसे में इस परिस्थितियों से निपटने के लिए बीएसएफ के जवान हवाई फायरिंग, आंसू गैस और लाठी का सहारा लेने को मजबूर है। याआतंकवादियों को यही तो चाहिए की भारत में लोग ही उनका काम आसान कर दे। एक तरफ आतंक की राह में भटक कर सेना पर पथराव किया जा रहा है तो वहीँ कश्मीर का ही एक युवा ऐसा है जिसकी सोच इन युवायों से अलग है। वो कश्मीर का युवा है नबील वानी, जिसने बीएसएफ 2016 की परीक्षा में पूरा भारत टॉप किया है और बन गया BSF में असिस्टेंट कमांडर। नबील के घर की भी आर्थिक हालत ठीक नहीं थी ऐसे में वो भी उन युवायों द्वारा हाथ में पत्थर उठाके सेना को परेशान कर सकता था लेकिन नबील ने पत्थर की जगह कलम उठाया और कड़ी मेहनत के बाद आज असिस्टेंट कमांडर बन गया। ये होता है जब कोई देश के लिए सोचता है, अपने देशवासियों के बारे में सोचता है। आज पूरा देश उनकी कामयाबी के चर्चा कर रहा है इनका बीएसएफ में आने का सपना पूरा हो गया और देश को मिल गया कश्मीर घाटी से एक असिस्टेन्ट कमांडर।
           ये एक बहुत बड़ी बात है किसी भी युवा के लिए की जहाँ उसके उम्र के लोग हिंसा की राह पर अग्रसर है तो उन्ही के बीच से एक देश का गौरव बन गया। हम सबको नबील वानी की तरह सोचना है , सिर्फ बोल कर देश की सेवा नहीं होती उसके लिए पूरी तरह से समर्पित होना जरुरी है।

Sunday, 18 September 2016

अब तेज़ाब के बदले तेज़ाब..

हम रोजाना एसिड अटैक की ख़ौफ़नाक घटनाएं सुनते है, कहीं बदले की आग में ये कांड किया जाता है तो कहीं एक तरफ़ा प्यार के चलते। आज एसिड अटैक की बहुत सारे मामले सामने आ रहे है , इस घिनोनी वारदात को अंजाम देने वालों को ना कानून का दर सताता है ना ही खुदा का। सरकार से तेज़ाब यानि "एसिड" की बिक्री पर प्रतिबंध तो जरूर लगाया है लेकिन आज भी हमारे देश में तेज़ाब खरीदा-बेचा जाता है। 


         ये बेहद संवेदनसील मामला है क्योंकि एसिड अटैक से जान तक चली जाती है। एसिड अटैक यानि किसी के चेहरे पे तेज़ाब फेंकना। तेज़ाब एक बेहद खतरनाक तरल पदार्थ होता है जो की किसी लावे से कम नहीं होता, हमारे शरीर या कपड़ों में तेज़ाब का एक बूंद भी पड़ जाये, तो वो चीज बुरी तरह जल जाती है। तो जरा सोचिए कि उन लड़कियों और महिलाओं को कितना दर्द सहन करना पड़ता होगा जो इस तरह के वारदात से होकर गुजरे हो। एसिड चेहरे पे गिर जाने से चेहरा बुरी तरह झुलाज़ जाता है। बड़े शर्म की बात है कि हमारे देश में कानून के सख्ती के बावजूद हर महीने बहुत से केस एसिड अटैक के सामने आते है, बात करे 2012 से अभी तक तो पिछले 5 सालों में 4700 मामले एसिड अटैक के सामने आ चुके है जिनमे अधिकतर केस में पीड़ित की मौत हुई है। ज्यादातर मामले उत्तरप्रदेश , बिहार और दिल्ही से आते है। एसिड अटैक ज्यादातर महिलायों और लड़कियों पर फेंका जाता है, जिसके पीछे बहुत से कारण होते है। आज भी दहेज़ के लिए महिलाओं पर अत्याचार होते आ रहे है, बहुत बार तो ससुराल वालों की तरफ से बहु पर एसिड तक डाला जाता है। दूसरा एहम कारण होता है एक तरफ़ा प्यार। प्यार करना बिलकुल भी गलत नहीं है, लेकिन किसी से जबरदस्ती प्यार करना कहाँ की महोब्बत है? अक्सर देखा जाता है कि जब किसी आशिक को उनकी मनपसंद लड़की प्यार करने से इंकार करती है तो वो उसपे एसिड अटैक कर देता है, एक तरफ़ा प्यार में एसिड अटैक के हर महीने 20 से 25 केस सामने आते है। कभी कभी कुछ मनचले सड़क पर चलती महिलाओं पर बदले की भावने में एसिड फेकते है। जो दरिंदे ऐसी हरकतें करते है उन्हें बिलकुल भी कानून का डर नहीं होता, ना ही वो कभी सोचते है कि एसिड चेहरे पे लगने से उस महिला या उस लड़की का क्या होगा? उन्हें ये सोचना चाहिए की अगर कोई उनकी बहन या माँ पर एसिड अटैक करे तो उनके कैसा लगेगा? एसिड अटैक एक बेहद बड़ा जुर्म है, किसी के ऊपर एसिड से अटैक करना कहाँ की इंसानियत है? मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को वही सज़ा मिलनी चाहिए जो ये कर रहे है, सीधी बात बोलू तो एसिड के बदले एसिड।
           आज सरकार लड़कियों की सुरक्षा के हजारों दावे करती है, हर तरह की सुविधा देने की बात कर रही है लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इतना बोलने,सुनने और देखने के बावजूद आज भी कानून इस तरह की वारदातों को रोकने में असमर्थ है। एसिड अटैक की घटनाओं के खिलाफ हम सभी को आवाज़ उठाने की जरूरत है और सरकार से गुजारिश है कि दोषियों के साथ भी वही किया जाये जो उन्होंने किया है , ताकि हमारे देश में एसिड अटैक की वारदात करने की कोई हिम्मत तो दूर कोई सोच भी ना सके।

ईमानदारी की सज़ा यहाँ मौत..

"Honesty is the best policy" इस कहावत को हम बचपन से स्कूलों में, किताबों में पढ़ते आ रहे है लेकिन क्या कभी इसपे गौर किया है? आज ईमानदारी कहाँ बची है? आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसको ईमानदारी का पाठ पड़ोगे और किसपे इतना समय है कि वो ईमानदारी सीखेगा क्योंकि आज तो हमको हर काम के लिए शॉर्टकट चाहिए। आज हमारे देश में ईमानदारी दिखाना अपनी मौत को दावत देने के बराबर हो गया है। 
      अभी कुछ दिन पहले कर्नाटक में एक सरकारी कर्मचारी को ईमानदारी से काम करने की सजा अपने हाथ कटवाके चुकानी पड़ी। बेहद शर्म की बात है कि हमारे देश में ईमानदारी बस किताबों तक ही सिमट कर रह गयी है।आज ईमानदारी से काम करना जान पर भरी पड़ रहा है, ना सरकार कुछ कर रही है और ना ही प्रशाशन। वर्ष 2011 में भी एक मनरेगा के अधिकारी को ईमानदारी की सजा मौत मिली, उन्होंने कुछ भ्रस्ट ठेकेदारों के खिलाफ आवाज उठाई तो उनकी आवाज को हमेसा के लिए बंद कर दिया गया। ऐसे ही हजारों किस्से है हमारे देश में जो बताते है कि यहाँ अभी भी ईमानदार लोग है जो बड़ी ईमानदारी से अपना काम कर रहे है लेकिन भ्रस्ट लोगों द्वारा उनको काफी दिक्कतों से गुजरना पड़ता है। आज भारत 165 देशों की लिस्ट है 67वें नंबर पर सबसे भ्रस्ट देश में शुमार है। हर साल भ्रस्टाचार की वजय से हमारे देश को GDP में 6.5 प्रतिशत का नुक्सान उठाना पड़ता है। आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी की हमारे देश में आज भ्रस्टाचार का ही बोलबाला है, भारत में जन्म सर्टिफिकेट से लेकर डैथ सर्टिफिकेट तक बनवाने के लिए घूस देनी पड़ती है, स्कूल में एडमिशन से लेकर सरकारी नौकरी के लिए 25 हजार से लेकर 1 लाख रुपए तक की घूस देनी पड़ती है। आज घूस देना जरूरत बन चुका है क्योंकि बिना रिशवत दिए तो यहाँ बच्चा जन्म भी नहीं ले सकता। एक सर्वे के हिसाब से हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा भ्रस्ट नेता है, फिर पुलिसकर्मी उनके बाद सांसद और फिर सरकारी कर्मचारियों का नंबर आता है।आज इस देश में हर दूसरे व्यक्ति भ्रस्ट है लेकिन कोई इसे गलत नहीं समझता, समझे भी क्यों, अगर कुछ रुपए देने से काम आसानी से हो रहा हो तो क्या प्रॉब्लम? आज भारत में हर परिवार एक साल में 30000 रुपए घूस के तौर पे देता है,मतलब हर व्यक्ति 3700 रुपए घूस हर साल इधर उधर देता है।
    ईमानदारी की बातें हर सरकार करती है लेकिन कुर्सी मिलने के बाद सबसे पहले वो इसी मुद्दे को भूल जाते है। हमे आज ये सोचना चाहिए की हमे बस वो काम करना है जिससे किसी एक इंसान को खुशी मिल सके, अगर ईमानदारी से काम नहीं कर सकते तो बेईमानी भी नहीं करनी चाहिए।

Friday, 16 September 2016

भारत-पाक में कब होगी दोस्ती?

हम सबने हमेसा हिंदुस्तान-पाकिस्तान की लड़ाई या टांगखिचाई के बारे में सुना है। आज से नहीं इनके रिश्तों में कड़वाहट काफी समय से है जिसका नतीजा ये है कि हर साल दोनों देशों के हजारों जवानों को अपनी जान खोनी पड़ती है। पाकिस्तान कभी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो हिंदुस्तान भी हर बार उन्हें मुँह तोड़ जवाब देने में पीछे नहीं रहता। मगर हम सिर्फ पाकिस्तान को दोष नहीं दे सकते, क्योंकि आज जो भी हालात है उनके जिम्मेदार दोनों देश है। 
         आज हर इंसान इस धरती पे अमन-चेन की दुआ मांग रहा है, कोई अपने भगवन से मांग रहा है तो कोई अपने अल्लाह से। जबकि हम सबको पता है कि भगवन,अल्लाह,खुदा एक ही है। आज पाकिस्तान भारत पे लगातार हमले कर रहा है , कभी कश्मीर का मुद्दा बनाकर तो कभी जातिवाद को लेकर। भारत ने कभी पाक के साथ दुश्मनी नहीं करी बल्कि भारत का हर एक नागरिक चाहता है कि जल्द से जल्द हिंदुस्तान और पाकिस्तान में गहरी दोस्ती हो, दोनों देशों के लोग खुश रहे। पठानकोट धमाका हो या 26/11 का आंतकी हमला, इन हादसों को कौन भूल सकता है लेकिन बावजूद इसके हम ये जानते कि पूरा पाकिस्तान बुरा नहीं है, सिर्फ कुछ लोगों के कारण पूरा पाकिस्तान बदनाम होता जा रहा है। दुश्मनी से किसका भला हुआ है आज तक? दुश्मनी से सिर्फ इंसानियत गुम होती है और लोग कम होते है। आज सबसे ज्यादा आतंकवाद को पाक बढ़ावा देता है ये बिलकुल गलत है, 2-4 लोग मिलकर क्या पाकिस्तान को भारत के खिलाफ खड़ा कर पाएंगे? नहीं बिल्किल भी नहीं क्योंकि पाकिस्तान की आवाम को अच्छे-बुरे का पता है। 130 करोड भारतीय सिर्फ ये चाहते है कि पाक और भारत में दोस्ती का रिश्ता रहे , ऐसा रिश्ता जो विश्व के सामने हमेसा अमर हो जाये। लेकिन क्या ये हो पायेगा?और अगर हो भी पायेगा तो कब होगा? क्योंकि आज जिस तरह पाकिस्तान की हरक़तें है उससे तो ऐसा होना मुश्किल ही लग रहा है। आज पाकिस्तान की हरकतों से तंग आकर बलूचिस्तान भी भारत का साथ दे रहा है अब ये बात हमारे पडोसी पाकिस्तान को जच नहीं रही है। ISIS,IS और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को सहारा देने कोई धर्म नहीं है, कोई मानवता का काम नहीं है।
         हम ये नहीं बोल रहे है कि पाकिस्तान को अपनी बात या अपनी सोच रखने का हक़ नहीं है लेकिन ये कैसी सोच जिससे इंसान ही इंसान के खून का प्यासा बन जाये? दोनों मुल्कों में एक जैसे लोग रहते है, तो फिर सोच में इतना बदलाव क्यों? आज कश्मीर के युवा बहकावे में आकर हातों में पत्थर उठा रहे है तो वहीँ एक कश्मीर का ही युवा पत्थर की जगह पेन उतार BSF की परिक्षा में भारत टॉप कर रहा है, ये है सोच का अंतर। आज भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर नहीं है, हमे इसे बेहतर करना है। इस दुश्मनी से किसी को कुछ नहीं मिलेगा, ये हम सब पिछले कई दशक से देखते आये है, तो ऐसी दुश्मनी का क्या फायदा? दुश्मनी को साइड में रखकर एक बार सोचिये की हिंदुस्तान-पाकिस्तान की दुश्मनी अच्छी, या दोस्ती।

Thursday, 15 September 2016

पैरालंपिक से नाराजगी क्यों?

रियो ओलंपिक में इस साल भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, करोड़ो रुपए खर्च करने के बावजूद हमारी झोली में सिर्फ 3 ही मैडल आये। लेकिन रियो ओलंपिक के बाद अब बारी थी पैरालंपिक की जिसमे भारत का प्रदर्शन बेहद खास दिख रहा है, अभी तक भारत को दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉउन्ज़ मैडल मिल चुका है। एक तरफ रियो के समय में पूरा भारत हमारे एथलीटों का हौसला बड़ा रहा था तो वहीँ पैरालंपिक में खिलाड़ियों के प्रदर्शन की तरफ कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है, आखिर क्यों पैरालंपिक से हम नाराज है?
           पैरालंपिक में हर देश के दिव्यांग एथलीट हिस्सा लेते है, जिसमे सारे ओलंपिक के खेलों का आयोजन होता है। रियो ओलंपिक में तो भारत कुछ ख़ास नहीं कर सका लेकिन हर बार की तरह पैरालंपिक में भारत का जोरदार प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। चाहे मारियप्पन हो या वरुण भाटी, या फिर गोल्डमैन झाझरिया इनके बेहतरीन प्रदर्शन के बदौलत एक बार फिर पैरालंपिक में भारत का झंडा लहराया है। इन पैराएथलीटों को उस हद तक बेहतर सुविधा नहीं मिल सकी जितनी एक एथलीट को मिलती है, बावजूद इसके आज इनका जज्बा हर कोई देख रहा है। बड़े शर्म की बात है कि हमारे देश में इन एथलीट को उस भावना से नहीं देखा जाता जैसा आम एथलीट को देखा जाता है , कारण शायद ये है कि ये दिव्यांग है। क्या दिव्यांग होना पाप है? अरे इन्होंने तो वो कर दिखाया जो अच्छे-खासे लोग नहीं कर सकते। हमारे देश का सिस्टम और स्पोर्ट्स अथॉरिटी इनकी तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं देता, शायद उन्हें ये लगता है कि ये लोग कुछ नहीं कर सकते इसलिए इनपे क्या मेहनत करना। हमारे देश में एक एथलीट पर सरकार 15 से20 करोड रुपए खर्च करती है लेकिन पैराएथलीट और सिर्फ 10 लाख रुपए ही खर्च होते है। अकेले अभिनव बिंद्रा पर ओलंपिक की तैयारियों में 18 करोड रुपए खर्च हुए थी, तो वहीँ शूटिंग पैराएथलीट पर सिर्फ 12 लाख रुपए खर्च हुए। जबकि सच्चाई ये है कि एक पैराएथलीट को ज्यादा सुविधायों की जरूरत पड़ती है लेकिन कोई इनकी सुध लेने वाला नहीं।
          रियो ओलंपिक में जाने वाले 118 खिलाड़ियों को फिल्म स्टार्स ने लाखों रुपए दिए, लेकिन अभी तक किसी भी सेलेब्रेटी द्वारा पैराएथलीटों को किसी भी तरह की मदद नहीं दी गयी है। सचिन तेंदुलकर ने रियो ओलंपिक में जीतेंगे वाले खिलाड़ियों को एक एक BMW गाड़ी दी, अब देखना होगा की क्या भारत का नाम रोशन करने वाले इन पैराएथलीटों को इनाम मिलता है या नहीं। कोई इनाम दे न दे, ये बड़ी बात नहीं है , हम चाहते है कि 130 करोड भारतवासी और हमारी सरकार इन खिलाड़ियों की तरफ ध्यान दे क्योंकि ये सिर्फ खिलाडी नहीं है ये हम सबका गौरव है।

Wednesday, 14 September 2016

कावेरी नदी पर भड़कती हिंसा..

हमेसा सुना था कि वक़्त आएगा जब इंसान आपस में पानी को लेकर लड़ेंगे लेकिन आज हमे जो तस्वीर बेंगलोर, तमिलनाडु और कर्नाटक में देखने को मिल रही है उससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि, हमारे देश में एक नदी के लिए किस हद तक आक्रोश दिख सकता है। आज आधा भारत अग्नि की भेंट चढ़ा हुआ है, कावेरी नदी के बटवारे की बजय से। कावेरी नदी तमिलनाडु, कर्नाटक और केरला से होकर बहती है, फिर सागर में समां जाती है। कावेरी नदी के पानी का ज्यादातर हिस्सा कर्णाटक और तमिलनाडु में ही रहता है, ऐसे में कावेरी नदी के पानी के बटवारे को लेकर अब हिंसा ओर उग्र हो चुकी है।
                कावेरी विवाद 1910 से शुरू हुआ जब दोनों राज्यों ने नदी पर बाँध बनाने की योजना बनाई थी। 1924 में अंग्रेजों की अनुमति में दोनों राज्यों के कृषि छेत्र को लेकर समझौता हुआ जो की अगले 50 सालों तक के लिए था। इस समझौते के हिसाब से कावेरी का 75 प्रतिशत पानी तमिलनाडु को और 25 फीसदी पानी कर्णाटक को मिलना था। बाद में इस विवाद में केरल और पॉन्डिचेरी भी शामिल हो गए। आज विवाद बेहद बाद चूका है जिसके चलते यहाँ धारा144 लगा दी गयी है , बावजूद इसके पुरे राज्यों में हिंसा की दिल दहलाने वाली तसवीरें सामने आ रही है। प्रदर्शनकारियों द्वारा हिंसा के चलते कर्णाटक में 35 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया और कई होटल्स और रेस्टुरेंट में तोड़ फोड़ की गयी। वैसे पूरा विवाद सिर्फ कावेरी नदी के बटवारे को लेकर नहीं हुआ, दरसल सोशल मीडिया पर एक 22 वर्षिय युवक द्वारा कन्न्ड़ फिल्म अभिनेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी किये जाने पर बंगलूरू में कुछ युवकों ने उसे बुरी तरह पीटा, जिसका वीडियो वायरल हो गया और उसके बाद हिंसक प्रदर्शन का दौर तेज हो गया। अब इसे कावेरी नदी के लिए प्रदर्शन कहे या फिर उस युवक की पिटाई का नतीजा , बात चाहे जो भी हो लेकिन सच्चाई ये है कि आज हमारे देश के 4 राज्यों में हालात बेहद खतरनाक बने हुए है, और हिंसक प्रदर्शन लगातार जारी है। बेंगलुरु से कर्नाटक जाने वाली सारी गाड़ियों को रोक दिया गया है,साथ ही लोकल रेल सेवाएं भी बाधित हो रही है जिससे लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार आपातकाल मीटिंग करने पर मजबूर हो गयी है क्योंकि अब इस विवाद को कैसे रोका जाए ये ही सबके मन में चल रहा है।
       कावेरी नदी का विवाद काफी समय से चल रहा है, लेकिन आज इस विवाद ने हिंसक रूप ले लिया है जिसका खामियाजा पूरे देश को उठाना पड़ सकता है। नदी के पानी के लिए आग का सहारा लेने की कोई जरूरत नही है। इस तरफ हिंसक प्रदर्शन करने से सिर्फ राज्य की, देश की छवि खराब होती है।

हिंदी से परहेज क्यों?

आज हम सब 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मना रहे है, लेकिन सिर्फ 14 सितम्बर को ही क्यों? साल के 365 दिनों को ही हिंदी दिवस के रूप में मनाने की जरूरत है क्योंकि हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है ये हम भारतियों की पहचान है। विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषायों में से एक हिन्दी भी है, जो की विश्व की चौथे नंबर की सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है।
       भारत एक ऐसा देश में जिसमे हर 50 कीमी पर एक नयी बोली सुनने और देखने को मिलती है। यहाँ हजारों बोलियां है लेकिन उन सबको जोड़कर भारत कहलाने वाली भाषा है हिंदी। आज हम सब पष्चिमी संस्कृति की ओर बड़ रहे है, कहीं न कहीं बाहरी संस्कृति के चक्कर में हम अपनी खुद की संस्कृति को भूल रहे है, अपनी पहचान को भूल रहे है। खुद को समाज में प्रबल और पढ़ा-लिखा दिखाने के लिए हम अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ज्यादा करने लगे है। क्योंकि हमें लगता है कि हिंदी बोलने से शायद हमारे स्टेटस को हानि पहुँच सकती है। आज बच्चों को स्कूलों में पहली कक्षा से ही इंग्लिश बोलने के लिए कहा जाता है और हिंदी बोलने पर सजा भी दी जाती है क्योंकि आज माना जाता है कि जिंदगी में कामयाब होने के लिए इंग्लिश भाषा अच्छे से आनी चाहिए भले ही हिंदी में डब्बा गुल हो। पष्चिमी संस्कृति की चाका चोंग देखते हुए हर कोई आज हिंदी से पल्ला झाड़ रहा है और दूसरी संस्कृति को अपना रहा है। ना जाने लोगों को इस बात से आपत्ति है कि हिंदी ही तो हमारी राष्ट्र भाषा है तो इसे बोलने में क्या शर्म? ज़रा सोचिए हिंदी न होती तो क्या हिंदुस्तान की कोई पहचान होती? क्या हमारे देश का अस्तिव आज उजागर होता? आज 100 से भी ज्यादा देश ऐसे है जहाँ सिर्फ इंग्लिश भाषा बोली जाती है, लेकिन पूरे विश्व में सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा हिंदी बोली जाती है। तो ये हमारे लिए बेहद गर्व की बात है कि हम अपनी संस्कृति को पकड़े हुए है लेकिन धीरे धीरे ये हमारे हातों से छूटती जा रही है क्योंकि अब लोगों को हिंदी बोलने में जरा शर्म महसूस हो रही है। भाषा-वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में लगभग 7,100 भासाएं है, जिनमे से सिर्फ 23 भाषाएं बोलने वाले लोगों की संख्या 5 करोड से अधिक है। हिंदी हमारे देश की मातृभाषा है जिसे यहाँ लगभग 80 फीसदी लोग बोल सकते है और समझते है।
        मेरा मानना है कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा के साथ साथ हमारे देश की पहचान भी है, हमे इसे हर कीमत पर बचाना है। हिंदी बोलने हमारे लिए गर्व की बात होनी चाहिए क्योंकि हम भारतीय है। सारी भाषाएं बोलिये लेकिन अपनी हिंदी से परहेज मत करिये, जो हमारी पहचान है उससे परहेज क्यों?

Tuesday, 13 September 2016

मीडिया है तो क्या डरना..

हमारा समाज, हमारा देश मीडिया के बिना संभव नहीं है शायद यही कारण है कि इसे हमारे देश का चौथा स्थंब माना जाता है। हम बिना मीडिया के लिएअपने देश की कल्पना भी नहीं कर सकते। आज से 50-60 साल पहले तक मीडिया का हमारा समाज में इतना बोलबाला नहीं हुआ करता था क्योंकि उस वक़्त सिर्फ चुनिंदा अखबार ही देखने को मिलते थे, लेकिन आज हर तरफ मीडिया के कारनामे देखने को मिलते है। अखबार हो या टेलीवीज़न या फिर ऑनलाइन पोर्टल आज मीडिया ही खबरों के आदान प्रदान का मुख्य जरिया बन गयी है।
        कहते है कि मीडिया हर देश का आईना होता है क्योंकि वो हमारे देश की सच्चाई और हमारे समाज की तस्वीर दुनिया को दिखाता है। मीडिया के आने से हमारे देश में भी बड़े बड़े बदलाव आये है। आज हर एक व्यक्ति ताकतवर है क्योंकि आज मीडिया आम जनता के साथ उनके हित के लिए खड़ा है। आज किसी को भी सच्चाई से डर नहीं लगता क्योंकि आज मीडिया सच्चाई के साथ हर पल खड़ा दिखता है, तभी कहा जाता है कि", मीडिया है तो डरना क्या?"। आज मीडिया न होता तो सरकार के कारनामे आम जनता को पता ही नहीं चल पाता, उन्हें ये बात कौन बताता की जिस सरकार को उन्होंने अपने कीमती वोट देकर चुना है वो उनके लिए क्या क्या कर रही है। बड़े बड़े सरकारी अधिकारियों की रोजाना मनमानी होती अगर मीडिया ना होता। आम जनता हर दिन धोखा खाने को मजबूर होती अगर मीडिया ना होता। आज मीडिया है तो अब दूध का दूध और पानी का पानी है। ना कोई झूठ का पर्दा रहा है ना ही किसी तरह का धोखा, मीडिया के आने से समाज की सच्चाई हर कोई घर बैठे देख सकता है। हमारी सरकार का सुस्त सिस्टम हो या अलग अलग पार्टियों के नेता, हर किसी की पूरी खबर रखने वाला मीडिया आज आम जनता की ताकत बनके उभरा है। समाज में हो रहे अन्याय को साफ़ तौर पे दिखने वाला मीडिया आज उस इंसान की ताकत बन चुका है जो सिस्टम के आगे थक गया है। मीडिया में बहुत ताक़त होती है , एक पल में ये किसी की जिंदगी बनाती है तो अगले ही पल किसी की जिंदगी को झटका देती है। मीडिया की ताकत से हर कोई वाकिफ है शायद तभी आज युवायों में मीडिया की तरफ आकर्षण देखा जा रहा है। ये पत्रकारिता के छेत्र में अच्छी खबर है क्योंकि हमारे देश के सुस्त सिस्टम को रिफ्रेश करने के लिए युवायों का इस तरफ बढ़ना जरूरी है। मीडिया ने तब भी हमारे देश का साथ दिया था जब हम आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे और आज 70 साल बाद भी मीडिया उसी तरह हमारे देश को आगे लेकर जाने में साथ दे रहा है।

Monday, 12 September 2016

राम तेरी गंगा मैली हो गयी...

किसी ने क्या खूब कहा है कि," राम तेरी गंगा मैली हो गयी, पापियों के पाप धोते धोते" क्योंकि आज सच में गंगा पूरी तरह मैली हो गयी है। गंगा को इस धरती की सबसे पावन नदी माना जाता है क्योंकि ये सिर्फ एक नदी नहीं है, ये प्रतीक है करोड़ों हिन्दुयों के आस्था की, ये जीवनदायनी नदी है जिसके किनारे हमारे देश के 40 प्रमुख शहर बसे है। गंगा हिमालय से निकलती है और हजारों मिलो का सफर तय करके ये शांति से बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसका सफर बेहद खास माना जाता है क्योंकि ये हमारे देश की सबसे प्रमुख नदी है।
            गंगा भारत की सबसे प्रमुख नदी है क्योंकि मान्यता है कि गंगा धरती पर सिर्फ लोगों के पाप धोने के लिए जन्मी थी। लेकिन तब उसे क्या पता था कि जिन इंसानों के लिए उसे धरती पर आना पड़ा, वही इंसान एक दिन उसे मेला कर देंगे। आज गंगा लगभग 70% गंदी हो चुकी है , सिर्फ हमारी गलतियों की वजय से। आज हम सब देखते है कि वो गंगा जिसे हम माँ कहते है आज कितनी मैली हो गयी है, रोजाना उसमे कूड़ा-करकट, सीवेज का गंदा पानी, पॉलिथीन जैसे चेजों के मिलने से आज गंगा का स्वरूप ही खराब हो गया है। आज से 20 साल पहले तक गंगा की हालत बिलकुल सही थी लेकिन पिछले कुछ सालों से स्तिथि बेहद खराब होती दिख रही है। हम भी गंगा के किनारे बसे शहर में रहते है, रोज अपनी आँखों से देखते है गंगा को मैली होते हुए लेकिन रोक नहीं पाते। आज गंगा में लाखों लीटर गंगा पानी मिल रहा है लेकिन उसे कोई नहीं रोक पा रहा। गंगा में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार को 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करके नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुवात करनी पड़ रही है। अगर आज हम गंगा को दूषित नहीं करते तो इतने रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती। हमारे गंगा घाटों की हालत देख लीजिए या फिर ड्रेनेज सिस्टम की दोनों की दुर्दशा खराब है। आज गंगा का पानी आचमन के लायक भी नहीं रहा है क्योंकि आज हम गंगा में कपड़े तक धो डालते है, तो कुछ लोग तो अपने जानवरों को भी इसे गंगा में नहलाते है ऐसे में गंगा कैसे निर्मल रह पायेगी? सरकार तो अपना काम कर रही है, हर बार एक नया प्रोजेक्ट पेश होता है लेकिन अब हम सबकी बारी है कि गंगा को एक बार फिर से निर्मल बनाया जाये।
        गंगा हमारे लिए सिर्फ एक नदी नहीं है, ये एक जीवनदायनी धारा है जो करोड़ों लोगों को पानी देती है। हमारी पूरी जनसँख्या से 45% लोगों को पानी इसी नदी से मिलता है जिससे उसका जीवन चलता है। त्योहारों के समय पर एक-एक दिन में लाखों लोग इसमें आस्था की डुपकि लगाते है, उसने फूल, कपड़े,प्लास्टिक आदि चीजें फेंकते है लेकिन सिर्फ इतना नहीं सोचते की इसका क्या परिणाम होगा? हमारी माँ गंगा से बहुत आस्था है, हम गंगा को भगवान मानते है लेकिन उसे बहुत गंदा कर रहे है। अगर माँ गंगा को हम भगवान मानते है तो चलिए आज ये सोचले की अब से, आज से ही हम गंगा को प्रदुषण मुक्त बनाके रहेंगे। आस्था अपनी जगह ठीक है लेकिन हमे अपनी माँ गंगा को एक बार फिर निर्मल और स्वच्छ बनाने है।

Friday, 9 September 2016

एक ट्वीट पे फसे कपिल..

आज कपिल शर्मा को कौन नहीं जानता? चंडीगढ़ के छोटे से शहर से निकलकर आज ये नाम भारत के हर घर पे सुनाई देता है, और भारत में ही क्यों बल्कि आज ये नाम पूरे विश्व में पहचाना जाता है। कपिल शर्मा आज दुनिया के सबसे बेहतरीन कॉमिडीयनों में शुमार है। लॉफ्टर चेलेंज से शुरू हुआ सफर और आज कॉमेडी नाईट विद कपिल तक आ पहुँचा है। वैसे तो कपिल शर्मा का नाम हमेसा सुर्ख़ियों में रहता है लेकिन इस बार उनके एक ट्वीट से वो सुर्ख़ियों में आये है। 
              कपिल शर्मा को हमेसा हमने चुटकुले सुनाते हुए देखा है, कॉमेडी करते हुए देखा है लेकिन आज कपिल शर्मा अपने एक ट्वीट पे फसते हुए दिख रहे है। उन्होंने ट्वीट में सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पे तंग कसते हुए लिखा की", में पिछले 5 सालों में 15 करोड टैक्स जमा कर चुका है लेकिन आज मुझे ऑफिस खोलने के लिए BMC को 5 लाख की घूस देनी पड़ी रही है। क्या यही है आपके अच्छे दिन? " कपिल के इस ट्वीट से पूरे देश में हड़कंप मच गया है। अगर BMC ने घूस मांगी है तो ये बिलकुल गलत है , और इसका जवाब उन्हें तो देना ही पड़ेगा। लेकन ऐसा न हो जाये की अपने ट्वीट से कपिल शर्मा को मुसीबतों का सामना करना पड़े। मुझे ऐसा लगता है कि शायद वो अपने ट्वीट में खुद फस रहे है क्योंकि 5 साल में 15 करोड का टैक्स उनके लिए बेहद छोटी बात है क्योंकि उनकी कमाई आज किसी मेगा स्टार से कम नहीं है। कपिल शर्मा आज एक एपिसोड के 60-70 लाख रुपए लेते है यानि की हर महीने उनकी कमाई होती है लगभग 6 करोड की। ये तो सिर्फ एपिसोड से कमाई की बात है इसके अलावा विज्ञापन और स्टेज शो के रुपए अलग है और अब तो फिल्मे भी कर रहे है, ऐसे है उनका ये ट्वीट कहिं उनपे ही भारी न हो जाये। क्योंकि इतनी कमाई के बाद भी अगर आप सीधे प्रधान मंत्री को बोल रहे है तो ये कहीं न कहीं गलत हो सकता है।अब कपिल शर्मा के लिए ये ट्वीट क्या रंग लेकर आएगा ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा लेकिन अभी तो सबको अपने पसंदीदा कॉमेडियन कपिल शर्मा के जवाब का इन्तजार है कि आपकी उनसे रिशवत मांगी किसने? भले ही इस वक्त कपिल अपने ट्वीट से विवाद में घिर गए हो लेकिन पूरे भारत में फैले उनके प्रशंसकों को उनके अगले एपिसोड का इन्तजार है क्योंकि जिंदगी में उतार चढ़ाव तो आते रहते है लेकिन कपिल शर्मा जैसा स्टार बार बार नहीं मिलता। 

Saturday, 3 September 2016

तुम जियो हज़ारों साल..

आजकल हर किसी के जुबां पर जियो का ही नाम है, और हो भी क्यों ना, आखिर इतनी मेहंगाई में रिलायंस जियो किसी वरदान से कम नहीं है। वैसे तो देश में कई प्राइवेट और गवर्नमेंट टेलिकॉम कंपनियां है लेकिन सब मेहंगाई से ग्रस्त है ऐसे में रिलाइंस द्वारा जियो सिम पुरे देश वासियों के लिए अब तक का सबसे बड़ा तोफा साबित हुआ है। 
         मुकेश अंबानी की रिलाइंस कंपनी ने इस साल जियो सिम की सुविधा लॉन्च करदी है। ये अब तक का सबसे बेहतरीन सेवा वाला सिम है जिसमे पहले तीन महीनो तक सारी सेवाओं को मुफ़्त रखा गया है। मतलब की सुरुवाती तीन महीनों के लिए फ्री 4जी इंटरनेट, कालिंग और वीडियो कालिंग जैसे सुविधाओं को ग्राहकों के लिए मुफ़्त रखा गया है। यकीन करना जरा मुश्किल है लेकिन रिलायंस ने ये खास तोफा आखिरकार देशवासियों को दे ही दिया है। आजकल हर कोई 4 जी के लिए दौड़ रहा है लेकिन 4 जी बेहद महंगा है, मगर रिलाइंस ने 4 जी को फ्री कर दिया है और उसके बार मात्र 50 रुपए में 1 जीबी 4जी डेटा यूज़र्स को मिल जायेगा। मतलब जिस देश में दाल, सब्जी 200 रुपए किलो है वहां अब 4जी सिर्फ 50 रुपए में मिल रहा है। रिलाइंस कंपनी के इस ऑफर्स से बाकी टेलिकॉम कंपनियां बड़े घाटे में आ गयी है, बताया जा रहा है की सिर्फ 2 दिनों में ऐयरटेल और आईडिया को 12 हजार करोड़ का नुक्सान हुआ है जियो की वजय से। भले ही बाकि कंपिनियों के रंग उड़ रहे है लेकिन आम जनता के लिए किसी सौगात से कम नहीं। जियो का सबसे ज्यादा फायदा अब यंग जनरेशन को हो रहा है, खासकर स्कूली बच्चों को और कॉलज वाले छात्रो को क्योंकि नेट का इस्तमाल को यही करते है। वैसे ही बच्चे इंटरनेट से चिपके रहते है,अब तो भगवान ही बचाये इन्हें। प्रधानमंत्री मोदी जी का सपना है डिजिटल इंडिया बनाने का, तो जियो कहीं न कहीं इस सपने की तरह पहला कदम हो सकती है। लेकिन उनका क्या जिनके पास 4जी हैंडसेट नहीं है? अंबानी जी इनके बारे में भी सोच लेते तो और मज़ा आ जाता, लेकिन चलो इतना भी किया बहुत बड़ी बात है। अब तो फेसबुक और व्हाट्सअप के यूज़र्स और भी बड़ सकते है क्योंकि इस बार 4 जी है गुरु। लेकिन अभी भी करोड़ों भारतियों को उम्मीद है की रिलायंस वालों से सबक लेकर शायद बाकि कंपनियां भी अपने दामों में कुछ गिरावट लेकर आये, वरना वो दिन दूर नहीं होगा जब हर घर से आवाज निकलेगी तुम "जियो' हजारों साल...

ग़लत रस्ते पर युवा..

कहते है युवा ही आने वाले कल में देश को आगे लेकर जाते है, उनके कंधों पर देश की जिम्मेदारियां आ जाती है लेकिन आज युवा गलत रास्ते पर जाता दिख रहा है। आज नशे की लत, दारू,सिगरेट छेड़ छाड़ जैसे कामों में युवा ही आगे दिखते है। जिस ऊम्र में इंसान को सही गलत समझ लेना चाहिए और अपना, अपने परिवार और समाज का भला सोचना चाहिए उस उम्र में आजकल युवा नशे की और आकर्षित हो रहे है। 
        हर देश में युवाओं का बेहद ख़ास योगदान रहता है क्योंकि इस उम्र में युवाओं में जोश और जुनून दोनों ही सातवें आसमान में रहती है उन्हें ये जूनून और जोश समाज के लिए दिखाना चाहिए न की दारू, सिगरेट पीने में। रोजाना अख़बारों और टेलीविज़न में हम देखते है की 18-19 साल के युवा बच्चे चोरी करते हुए पकड़े गए, या छेड़छाड़ में फसे है ये सब देखके बड़ा दुःख होता है। उनके माँ बाप पे क्या बीतती होगी जब इस उम्र में उनका लाडला क्राइम के राह पे चलता दिखाई देता है। डेल्ही का निर्भया कांड हो या बुलन्द्शेहर गैंगरेप या JNU जैसे विश्व प्रख्यात विश्वविधालय का कांड हर बुरे काम में आज युवा अपनी भागेदारी साबित कर रहा है। और इसका असर सिर्फ उनकी जिंदगी में नहीं पड़ रहा बल्कि उनके जैसे हजारों, लाखों युवाओं की सोच में भी पड़ रहा है। पिछले 5 सालों में हमारे देश में जितने भी बलात्कार हुये है उनमे 65 % कांड में युवा शामिल है। मतलब प्रगति की बातें करने वाला युवा, देश को सुनहरे सपने दिखने वाला युवा आज गलत कामों की वजय से देश का नाम शर्म से निचे करने पे तुला है। में खुद ही बहुत बार देखता हूँ की 14-15 साल के बच्चे झाड़ियों में छिपकर सिगरेट पीते है, और नशे में दुबे रहते है। न उन्हें किसी बड़े का डर रहता है न ही घरवालों का। ना जाने कहाँ से उनके पास इन सब चीजों के लिए पैसे कहाँ से आते है? और न जाने कैसे उनके घरवालों को उनके काम के बारे में मालूम नहीं चल पता।
         अमेरिका, चीन जैसे देशों में युवा 18-20 साल की उम्र में काबिल इंसान बन जाता है, अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है लेकिन हमारे देश में युवा इन उम्र में जेल जाने को बेताब हो रखे है। हर देश का भविष्य होते है वहां के युवा, अगर युवाओं का सही साथ और सही सोच हमारे समाज को मिले तो देश में कोई भी बीमारी नाजी रहेगी। न कभी देश किसी रेस में अन्य देशो से पीछे रहेगा।

Friday, 2 September 2016

अब कैसे जाओगे पंजाब?

कहते है राजनीती एक गंदा दलदल है जिसमे कोई एक बार फस जाए तो निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है। एक तो हमारे देश में युवा वैसे ही राजनीती की तरफ नहीं बढ़ते, ऊपर से रोजाना राज नेताओं के घिनोने काम सामने आजाने से बची कुची कसर भी खत्म हो जाती है। राजनीती के बिना हमारा देश अधूरा है क्योंकि यहाँ राजनेता ही समाज और देश का चेहरा कहलाते है लेकिन अब ये चेहरे आम जनता से नजरें मिलाने लायक नहीं रहे है। आजकल राजनेताओं को देश के लिए कुछ करने में कोई फायदा नजर नहीं आता, न ही वो इसे अपना कर्तव्य मान रहे है। उन्हें बस पैसों से मतलब है और किसी भी तरह फिर जीतने की आस। बात करे आजकल के नेताओं की तो टीवी और अख़बारों में तो पूरी दुनिया ने ही देख लिया है की आज कल नेताओं को क्या चाहिए, और वो किस चीज़ का शौक़ रखते है। आप के मंत्री का नया नया सेक्स स्कैंडल इस बात को बताता है की नेतागीरी की आड़ में क्या क्या होता है। ये पहली बार नहीं है की किसी नेता का यूं सेक्स सीडी बनी हो, इससे पहले भी कई बार अलग अलग पार्टियों से जुड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगे है। धोखाधड़ी, बलात्कार, उत्पीड़न और सेक्स स्कैंडल तो नेताओं के लिए आम हो चुका है। अगर आप के इस मंत्री का ये आपत्तिजनक वीडियो सामने नहीं आता तो आम जनता की नजरों में वो हमेसा जी अच्छी मंत्री रहता, जनता को क्या पता की जिस इंसान को वो वोट दे रहे है एक दिन वो उन्हें ये खबर देंगे। लेकिन इसमें सारा कसूर जनता का नहीं है, उन्हें क्या पता की किसका चरित्र ठीक है किसका गलत? लेकिन वो पार्टी के मुखिया है उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वो किस मंत्री को जनता की जिम्मेदारी सौंप रहे है। सिर्फ मंत्री बनाना ही मकसद नहीं होना चाहिए, मंत्री बनने के बाद भी मुखिया का फर्ज है की अपने सभी मंत्रियों और नेताओं के कामकाज पर ध्यान दे। 
      राजनीती को शर्मशार करने वाली ये घटना से आज देल्ही की जनता सदमे में है की उन्होंने किसे वोट देकर जीत दिला दी। हमारे देश में राजनीती हमेसा ही उछल कूद करती रही है, कभी नेता भ्रष्टाचार में फसे है तो कभी गंदे कारनामो में। आप नेता संदीप कुमार के सीडी कांड से केजरीवाल सरकार के लिए मुसीबतों का पहाड़ टूटा है तो बीजेपी और कंग्रेस के लिए ये मौके पर चौके मारने का समय है। और वो चौके-छक्के मार भी रहे है। पूरे देश में इस वक़्त सेक्स स्कैंडल में फसे आप नेता और केजरीवाल सरकार के खिलाफ जंग शुरू हो चुकी है। अरविन्द केजरीवाल के सामने पहाड़ समान एक सवाल खड़ा हो गया है कि इस कांड के बाद पंजाब में जीत के बारे में सोचा जाये या नहीं।