Saturday, 22 April 2017

जल्लीकट्टू अत्याचार..तो गौहत्या क्यों नहीं?

बड़ा अजीब देश है हमारा, एक तरफ जल्लीकट्टू को जानवरों पर अत्याचार मानते हुए इसे सरकार ने प्रतिबंदित कर दिया है, तो इसी देश में आज भी गौहत्या पर सरकार खामोश हो जाती है। गौहत्या के लिए न सरकार कुछ बोलती है न ही कुछ सख्ती दिखती है। जल्लीकट्टू पर हर कोई राजनीती कर रहा है, हर मुँह अपनी बात रख रहा है तो दूसरी तरफ गौहत्या पर सब ख़ामोशी से मुँह ढकते फिरते है। जल्लीकट्टू के लिए लाखों लोग एक जुट है तो फिर गौहत्या के विरोध में एक क्यों नहीं होते?
         जल्लीकट्टू 2000 वर्ष पुरानी परंपरा है, जिसमे बेलों को सींग या पूंछ से पकड़कर काबू में किया जाता है, इस दौरान बहुत से बेल घायल हो जाते है और दौड़ते हुए लोगों को भी घायल कर देते है, लेकिन फिर भी जल्लीकट्टू को एक परंपरा के रूप में देखा जाता है इसलिए हजारों लोग आज सरकार से इसपे लगे प्रतिबंद को हटाने की मांग कर रहे है। साउथ में हजारों लोग प्रदर्शन में जुड़ चुके है जिसमे बड़े-बड़े उद्योगपति, तमिल सुपरस्टार्स और आम लोग शामिल है। जरा सोचिए कि जल्लीकट्टू के लिए दक्षिण भारत में हर कोई एक साथ खड़ा है तो गौहत्या को रोकने के लिए सब ऐसे ही साथ खड़े क्यों नहीं होते? एक बड़ा सवाल मन में आता है कि अगर जल्लीकट्टू अत्याचार है तो गौहत्या अत्याचार में क्यों नहीं आता? भारत एक ऐसा देश है जहाँ गाय को भगवन का दर्जा दिया जाता है, उसकी पूजा की जाती है,उसे गौमाता कहा जाता है लेकिन बड़े शर्म की बात है कि इसी भारत देश में गौहत्या भी सबसे ज्यादा की जाती है। सिर्फ भाषणों में गाय को सम्मान दिया जाता है, हक़ीक़त तो बेहद शर्मशार करने वाली है। इस देश में नेता लोग सिर्फ वोटबैंक भरने के चक्कर में भागते है, ये अब साफ़ देखा जा रहा है क्योंकि जल्लीकट्टू के लिए कोई भी नेता अपने वोटबैंक को नाराज नहीं करना चाहता इसलिए नेता लोग भी जल्लीकट्टू के लिए हाँ में हाँ मिला रहे है। बड़े-बड़े धर्मगुरु और साधू-संत भी ये मानते है कि गौहत्या बड़े शर्म की बात है, खासकर भारतीय संस्कृति में तो गौहत्या को महापाप माना जाता है लेकिन यहाँ फिर भी ये घिनोना पाप रोजाना होता है। गाय में सबको भगवान दिखता है लेकिन सड़क पर आवारा घूमती गाय किसी को नहीं दिखती,न कोई खाना देता है न ही रहने के कुछ इंतजाम करता है। हम रोज कहीं न कहीं देखते है कि बहुत सी गाय सड़क पर आवारा घूमती है इनके लिए किसी एक के भी कदम आगे नहीे बढ़ते लेकिन हाँ गौहत्या को पाप मानने वाले करोड़ों लोग है। अब गौहत्या के लिए भी एक ऐसे ही एक्शन की जरूरत है क्योंकि सिर्फ भाषणों से कुछ नहीं हो पायेगा। जल्लीकट्टू पर सरकार ने जो सख्ती दिखाई है यही सख्ती सरकार को गौहत्या के लिए भी दिखने की जरूरत है।
राहुल नेगी,ऋषिकेश

इस महँगाई का क्या होगा?


हमारे देश भारत में जितनी भाषाएँ है उससे ज्यादा यहाँ समस्याएं है। यहाँ करोड़ों की आबादी रहती है, जिसमे अमीर ,सामान्य और गरीब ये तीन तरह के लोग रहते है। पैसे वाले तो ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करते है लेकिन सामान्य और गरीबी में जी रहे लोगों का जीवन इस बढ़ती महँगाई की वजय से बहुत संगर्ष भरा हो जाता है। आज की तारीख में आम जनता के लिए जो सबसे ज्यादा सरदर्द बना है वो है लगातार बढ़ती मेहंगाई, कुछ दिन सब सामान्य चलता है फिर अचानक से कुछ न कुछ महंगा हो जाता है, अब घरेलू स्लेंडर की कीमत को ही देख लो 200 से शुरू हुई थी आज की तारिख में 740 रुपए हो गयी है। देश आगे बड़े न बड़े, मेहंगाई तो मानो दिन दुगनी रात चौगुनी की गति से बड़ रही है और ये जनता भ्रस्ट सरकार से उम्मीद लगाई बेठी है की उनकी सरकार मेहंगाई कम करेगी।        भारत में करोड़ों लोग इस मेहंगाई के कारण बेहद परेशान रहते है,इस मेहंगाई में 2 वक़्त की रोटी भी मानो चुनोती लगने लगी है। आज मेहंगाई आसमान छू रही है। रोटी, दाल, सब्जी,पेट्रोल, घर और यहाँ तक की पढ़ाई भी अब हर किसीके बसके बात नहीं रही। पिछले 10 सालों में दाल, सब्जी और तेल की कीमतों ने सबको रुलाया है और आज तक रुला रही है और अब तो घर में उपयोग में आने वाली रसोई गैस भी 700 से ज्यादा रुपए की हो चुकी है अब गरीब के घर चुल्हा कैसे जलेगा इस बारे में कोई नहीं सोचता। हम सरकार बरोसे बेठे है और वो भगवान बरोसे। जब नयी सरकार आती है तो वादे तो ऐसे करती है की मानो मेहंगाई बस इनके आने से ही भाग जायेगी, लेकिन कुछ सालों में मेहंगाई भागे या ना भागे सरकार जरूर भाग जाती है। आज बढ़ती मेहंगाई से गरीब लोगों को खाना तक नसीब नहीं हो पता, शिक्षा को तो भूल ही जाओ तो बेहतर है। आज बाजार में एक रोटी की कीमत 8 रुपए हो गयी है, बच्चों को स्कूल कैसे भेजे वहां तो हर क्लास में हजारों रुपए लग जाते है। मेहंगाई की असल वजय है भ्रस्टाचार और हमारी सरकार। रोजाना टीवी और अख़बारों में हम देखते है की सरकारी गोदान में लाखों क्विंटल गेंहू, चीनी,प्याज,आलू रखे रखे ख़राब हो जाते है तो कभी बरसात या ठण्ड की वजय से सड़ जाते है। सरकार इन चेजों पे बिलकुल ध्यान नहीं देती वरना लाखों का अन्न यूं ही बर्बाद नहीं होता। ये तो रही सरकार की अनदेखी अब बात करे अगर कुछ अधिकारीयों की तो मेहंगाई को आसमान तक पहुचाने में इनका बेहद खास योगदान रहा है। अधिकारीयों की अनदेखी और सुस्ती की वजय से ही घोटाले होते रहे है जिनका असर आम लोगों पे पड़ता है।आज मेहंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित निचले क्रम के लोग हो रहे है,क्योंकि अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब ओर ज्यादा गरीब । इस बात का असर सरकार या ऊपर बेठे अधिकारीयों को बिलकुल नहीं होता क्योंकि उनकी जेबों में इतना ज्यादा पैसा होता है की मेहंगाई नाम की बीमारी उनके पास भी नी भटकती। सरकार का काम ही होता है जनता के लिए सोचना, उनकी तकलीफों को दूर करना। अरे!हम कौन सा सारी चीजों को जनता के लिए फ्री करने के लिए बोल रहे है, बस इतनी की आस है सरकार से की इस बढ़ती मेहंगाई को रोके क्योंकि जिस गति से मेहंगाई बड़ रही है उससे आने वाले सालों में आम जनता को दो वक़्त की रोटी के लिए भी बहुत मसक्कत करनी पड़ेगी।

भारतीय फिल्मों का होली से गहरा नाता...

होली का त्यौहार रंगों और खुशियों का ऐसा त्यौहार है जिसमे हर कोई अपने गम भुलाकर इसमें खोने को मजबूर हो जाता है। रंगों के इस त्यौहार का रंग सिर्फ हमारी जिंदगी में ही नहीं है बल्कि भारतीय फिल्मों में इसका रंग हमेसा से पड़ता आया है। भारतीय फिल्मों का होली से बेहद पुराना रिश्ता है। होली ऐसा त्योहार है, जो भारतीय सिनेमा के कई महत्वपूर्ण दृश्यों और चरित्र के निर्माण में मददगार रहा है, देश का मुख्य त्योहार होने की वजह से हिंदी सिनेमा में इसे समय-समय पर महत्वपूर्ण स्थान मिला है.हिंदी फिल्मों में होली गीतों का तड़का सिनेमा के बेहद शुरुआती दौर से लगता रहा है. यह रिश्ता भारत की आजादी से पहले का है.
                70 दशक की मशहूर फिल्म, कटी पतंग का वो गीत कौन भूल सकता है," आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेंलेंगे हम होली" जिसने भारतीय सिनेमा में इस त्यौहार का स्थान पक्का कर दिया था उसके बाद तो मानो 'होली' के बिना हिंदी फिल्मों को सोचना मुमकिन न था। हिंदी फिल्मी जगत में 80 के दशक को होली के लिए महावर्ष कहा जा सकता है. इस दशक में हिंदी सिनेमा ने होली का जमकर इस्तेमाल किया. साल 1981 मेें फिल्म सिलसिला का गीत 'रंग बरसे भींगे चुनर वाली रंग बरसे' लगभग हर ऊंचाई हासिल कर चुका था और इस होली के तड़के के बाद से ही रेखा और अमिताभ की जोड़ी भी भारतीय सिनेमा जगत में मानो एक मिसाल बनती दिखी। उसके बाद आई भारतीय सिनेमा की सबसे हिट फिल्म शोले, इस फिल्म में भी होली का तड़का इस तरह इस्तमाल किया गया कि फिल्म को आज तक याद किया जाता है। होली के त्यौहार को सिनेमा में फिल्माना एक तरह से फिल्म का एहम हिस्सा बनता चला गया जो की आज भी अपनी एक खास पहचान रखता है, तीन घंटे की फिल्म अगर होली के रंग का तड़का न दिखे तो फिल्म ढीली और अधूरी सी लगती है, यही कारण है कि पिछले कई दशकों से रंगों के इस त्यौहार को सिनेमा में अच्छे से इस्तमाल किया जाता रहा है, ये सिलसिला तो तबसे शुरू हुआ है जब फिल्म ब्लैक एंड वाइट में आती थी। साल 2013 में आई फिल्म 'ये जवानी है दिवानी' में ",बलम पिचकारी जो तुने मुझे मारी, तो सीधी साधी छोरी शराबी हो गई", आज-कल के नौजवानों की पहली पसंद बना हुआ है और हो भी क्यों न क्योंकि होली में हर दिन नौजवां हो जाता है। हाल ही में सुपरहिट हुई फिल्म जॉली एल.एल.बी 2, में भी होली को विशेष स्थान दिया गया है। मतलब साफ है कि होली के त्यौहार को हर निर्देशक हर लेखक अपनी फिल्मों में जगह देना पसंद करता है क्योंकि इस त्यौहार का हमारी हिंदी सिनेमा से बहुत गहरा रिश्ता है, ऐसा रिश्ता जिसे 50 से ज्यादा साल हो गए है लेकिन उसकी महत्वता आज भी वैसी ही है। 

Monday, 20 March 2017

जीवनदायनी नदी को जीवित मानव के अधिकार..


धरती की सबसे पावन नदी गंगा जिसके एक आचमन से ही जन्मों-जन्मों के पाप धुल जाते है आज खुद बेहद मैली हो चुकी है। जिनके लिए इस पावन नदी को धरती पर आना पड़ा उन्ही ने इसकी कदर नहीं की जिसके चलते आज गंगा अपने ही घर में मैली हो चुकी है।
    गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने में जहाँ सरकार नाकाम दिखती आई है तो वहीँ अब उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने गंगा के लिए बेहद खास कदम उठाया है। नैनीताल कोर्ट ने गंगा और युमना नदी को भारत की पहली जीवित मानव की संज्ञा दी है यानि की गंगा और युमना नदी को जीवित मानव के समान अधिकार दिए जाने को कहा गया है। फैसला स्वागत योग्य है लेकिन सवाल ये उठता है कि लगातार मैली होती गंगा क्या इस फैसले से साफ़ और स्वच्छ हो पायेगी? गंगा के प्रति हर कोई जागरूकता की बातें करता दीखता है लेकिन हम ही उसे गंदा करते है। देश में पहली बार किसी अदालत ने गंगा और युमना नदी के लिए ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार को 8 सप्ताह में गंगा मैनेजमेंट बोर्ड बनाने के निर्देश दिए है और जल्द से जल्द इसपर काम करने को कहा गया है। अगर ये फैसला सही ढंग से काम करता है तो आने वाले सालों में गंगा पूरी तरह से साफ़ हो जायेगी। विश्व में अभी तक सिर्फ न्यूजीलैंड की वानकुई नदी को ही जीवित मनुष्य के समान अधिकार दिए गए है ऐसे में नैनीताल हाई कोर्ट का गंगा-युमना के प्रति लिया गया ये फैसला काफी सराहनीय है। मुझे ऐसा लगता है कि वक़्त आ गया है कि इस फैसले में हर व्यक्ति को जोड़ देना चाहिए क्योंकि गंगा को स्वच्छ रखने के लिए सबका साथ चाहिए। अभी तक हमारी सरकार ने गंगा और युमना नदी  की निर्मलता और स्वच्छता को बचाए रखने के लिए तमाम घोषणाएं करती आई है लेकिन आज तक ये नदियां पूर्ण तरह से साफ़ नहीं हो सकी है ऐसे में अब उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय का ये ऐतिहासिक कदम क्या परिणाम दिखायेगा ये जल्द पता लग जायेगा।
-- राहुल नेगी,ऋषिकेश

Sunday, 12 March 2017

मोदी मैजिक के सामने सब फ़ैल..

कहते है वक़्त और क़िस्मत भी उसी का साथ देती है जिसके इरादे नेक होते है। सेर्ज़िकल स्ट्राइक और नोटबंदी जैसे बेहद बड़े कदम उठाने वाले देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अब विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला, जहाँ बीजेपी ने उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश और मणिपुर में कमल खिलाने में कामयाब रही। लोक सभा चुनाव में जो मोदी मैजिक देखने को मिला था, ठीक वैसा ही कारनामा 2017 विधानसभा चुनाव में भी दिखा, बीजेपी एक तरफ़ा जीत के साथ सत्ता पर आ चुकी है। इस जीत से एक बात तो साफ़ हुयी की करोड़ों भारतीयों ने नोटबंदी के फैसले का साथ दिया है।
 उज्व्वला योजना,जन-धन योजना,नोटबंदी ये सब नरेंद्र मोदी के काम है जिन्हें आज लोगों ने पसंद किया है। उत्तर प्रदेश में पिछले 27 सालों से समाजवादी पार्टी का राज था तो वहां बीजेपी का कमल खिलना बेहद मुश्किल दिख रहा था लेकिन मोदी मैजिक वहां भी खूब चला और सबसे बड़े राज्य में जीत का परचम लहराया गया। मुझे तो ऐसा लगा की ये चुनाव सिर्फ मोदी जी के लिए था क्योंकि हर सीट पर बीजेपी का कब्ज़ा रहा जिसके पीछे सर्फ मोदी मैजिक काम आया और मोदी सुनामी के सामने हर कोई साफ़ होता दिखा। करोड़ों भारतीयों ने मोदी पर भरोसा किया है सब हर कोई यही उम्मीद कर रहा है कि मोदी को देश की नईया पर लगाएंगे और हर तरह से आम लोगों के लिए मोदी जी काम करेंगे। मेरा मानना है कि बीजेपी की इस जीत के पीछे  का कारण मोदी की छवि और अमित शाह की रणनीति रही जिसका फ़ायदा इस चुनाव में बीजेपी को मिला और ये भी मानना गलत नहीं कि हर किसी ने बीजेपी को नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी को वोट दिया है। कांग्रेस,समाजवादी पार्टी, आप और बीएसपी जैसे बड़ी-बड़ी पार्टियां मोदी के सामने कहीं नहीं दिखे। उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने जो हासिल किया है वो शब्दों में बयां नहीं हो सकती, इतने बड़े राज्य में हर धर्म और हर जाती के लोग है ऐसे में हर किसी की मानसिकता के साथ चलना सिर्फ मोदी जी को आता है जिसका परिणाम सामने भी आ चुका है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी नेता को लोग दिल से पसंद करते है और कई बार लोगों ने इसका परिमाण दिया है क्योंकि नोटबंदी के दौरान कहीं न कहीं लोगों को दिक्केतें हुयी थी लेकिन अच्छी सोच के सामने हर कोई मोदी के साथ चलने को मजबूर हो गया। नरेंद्र मोदी का जादू आज हर तरफ देखने को मिला लेकिन ये चुनाव भी बड़ी उथल-पुथल वाला रहा, कई मुद्दे उठे चाहे मुद्दा राम मंदिर का रहा हो, या जातियों का मुद्दा या फिर कब्रिस्तान लेकिन आम जनता के अपना फैसला तो पहले ही कर दिया था फिर भले ही विवाद कुछ भी हो। उत्तर प्रदेश में दो दिन पहले तक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का साथ जीत का रस्ता बनाते दिख रहे थे तो वहीँ होली से ठीक पहले आये रिजल्ट ने सब कुछ बता दिया। त्यौहार के समय पर बीजेपी ने जीत का गुलाल उड़ाया है और हर तरफ मोदी मोदी की गूंज सुनाई दे रही है। अब बस यही उम्मीद है कि मोदी सरकार हर राज्य की तस्वीर बदले, ताकि करोड़ों लोगों का भरोसा कभी नहीं टूटे।

Wednesday, 8 March 2017

त्योहारों के साथ मिलावटी बाजार तैयार..


त्योहारों के सीजन में मिलावटी बाजार भी पूरी तरह से सह जाते है, ख़ासकर होली के समय पर मिलावटी मिठाईंयां, मिलावटी रंग और गुलाल का बड़ी मात्रा में इस्तमाल होता है जो की हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार है, खुशियों का त्यौहार है लेकिन इन खुशियों में रूकावट का काम करती है मिलावटी मिठाईंयां और रंग। हर साल देखा जाता है कि होली आते ही दुकानों में मिठाईंयां और रंग सजने लगते है लेकिन इसपर कोई ध्यान नहीं देता की वो मिठाईंयां खाने लायक है या नहीं? खासकर मावा से बनी हुई मिठाइयों में नकली मावा और रंग तक मिलाये जाते है, बेचने वालों को तो सिर्फ अपने मुनाफे की फ़िक्र है इसलिए उनका काम सिर्फ बेचना होता है लेकिन हमें अपनी जिंदगी प्यारी है तो हमे ही इस बात का ध्यान देना होगा की हम जो मिठाईंयां ले रहे है क्या वो मिलावटी तो नहीं? ये तो बात हुई मिठाइयों की अब बात करते है उसकी जिसके बिना होली संभव ही नहीं यानि हम बात कर रहे है रंगों की, मिठाईंयां तो मिलावटी आती ही है लेकिन अब तो होली में बिकने वाले रंगों का भी गलत तरीके से उपयोग हुआ जा रहा है। ज्यादा रंग बेचने के लालच में बहुत से लोग मिलावटी रंग बाजार में लाते है, ऐसे रंग जिनमें कांच, बजरी तक मिले होते है जो हमारे स्किन के लिए बेहद खतरनाक होते है। अक्सर देखा जाता है कि होली से पहले ही बाजारों में इस तरह के मिलावटी सामान लोगों के लिए परोसने के लिए सजा दिते जाते है और इनकी फैक्टरियां भी लगाई जाती है, पुलिस और प्रसाशन के हर छापे पर नकली मिठाईंयां और रंग बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है लेकिन फिर भी ये नकली और मिलावटी बाजार बंद होने का नाम नहीं लेता। प्रशाशन को इस तरफ अच्छे से काम करने की जरूरत है, क्योंकि साल दर साल मिलावटी बाजार बढ़ता ही जा रहा है जिससे हम सब खुद को  खतरे में महसूस कर रहे है।

Friday, 3 March 2017

स्मार्टफोन पर रोक की जरूरत नहीं..

हाल ही में बीएसएफ के जवान तेज़ बहादुर का एक वीडियो सामने आया था जिसमे उन्होंने बीएसएफ द्वारा जवानों को दिए जा रहे खाने पर सवाल किए थे, उन्होंने आरोप लगया था कि जवानों को सही तरीके से खान-पान मुहैया नहीं कराया जाता। इन आरोपों का हल तो फिलहाल हुआ नहीं लेकिन नतीजा ये रहा की अब सेना के जवानों को स्मार्टफोन रखने की अनुमति नहीं दी जायेगी। इसके साथ साथ पेन ड्राइव और सभी मल्टीमीडिया डिवाइस रखने पर भी सेना ने रोक लगा दी है। सवाल ये है कि इस तरह से प्रतिबंध लगाया सही है या नहीं?
सेना की सुरक्षा की दृष्टि से देखे तो ये सही कदम लगता है क्योंकि अगर खाने का वीडियो वायरल हो सकता है तो क्या पता कल कोई सेना से जुडी सीक्रेट बात भी वायरल हो जाये। लेकिन ये भी देखा जाता है कि आज के समय पर स्मार्टफोन से दूरी जवान और उनके परिवार की दुरी काम हो जाती है, व्हाट्सअप, सोशल साइट्स की मदद आज जवान दूर बैठे अपने परिवार से मेसेज के जरिये बात कर सकता है। मेरे ख्याल से ये जल्दबाजी में लिया गया फैसला है क्योंकि हमें अपने जवानों पर पूरा भरोसा है,जो देश के लिए मर सकते है वो देश का बुरा कभी नहीं सोचेंगे। ये बात भी सबको पता है कि सेना में किसी भी सैनिक या अधिकारी को अपनी समस्या बताने का पूरा हक है और इसके लिए सेना में प्रक्रिया भी है। लेकिन कभी-कभी उस प्रक्रिया से निपटते- निपटते ही बहुत समय लग जाता है और जवान की शिकायत ऊपरी अधिकारियों तक नहीं पहुँच पाती, तेज़ बहादुर के साथ भी शायद यही हुआ हो जिसके बाद मज़बूरी में उन्हें वीडियो बनांकर सोशल साइट्स पर डालना पड़ा। देखा जाये तो गलती उस जवान की भी नहीं है क्योंकि उन्होंने तो अपने हालात का जिक्र किया था अब सेना इसे दूसरी दृष्टि से देखती है तो कोई क्या करे। 

Sunday, 12 February 2017

मौसम न बन जाए रोड़ा..

देश में इस वक़्त चुनावी मौसम बना हुआ है,चुनावी सरगर्मियां भी तेज़ हो चुकी है लेकिन उत्तराखंड,मणिपुर जैसे राज्यों में लगातार बारिश और बर्फ़बारी हो रही है ऐसे में यहाँ का मौसम चुनाव में दिक्कत पैदा कर सकता है। ख़ासकर उत्तराखंड में 12 से 16 फरबरी तक जबरदस्त हिमपात होता है, बहुत से मतदान केंद्र ऐसे जगह बने है जहाँ बर्फ़बारी लोगों और प्रशाशन को मुसीबत में डाल सकती है। मतलब साफ है कि मौसम की वजय से मतदान की डगर कठिन हो सकती है।
                     फरबरी का माह भले भी बाकि राज्यों के लिए खुशनुमा मौसम लेकर आये लेकिन उत्तराखंड में स्तिथि कुछ और देखने को मिलती है। उत्तराखंड में आगामी दिनों में मौसम करवट बदल सकता है, मैदानी इलाकों में बारिश तो पहाड़ी इलाकों में बर्फ़बारी हो सकती है ऐसे में मतदान केंद्रों पर प्रशाशन ने अपनी नजऱ पैनी कर दी है। प्रशाशन भी इस बात से अवगत है कि कुछ छेत्रों में भारी बर्फ़बारी से लोगों को मतदान केंद्रों तक पहुँचने में काफी दिक्कत आ सकती है ऐसे में प्रशाशन ने भी अपनी तरफ से कमर कस ली है लेकिन वो इन परिस्थितियों से कैसे निपटेंगे ये तो वक्त आने पर ही पता चल सकेगा।मौसम का मिज़ाज  देखा जाये तो इस साल शुरुवात से ही उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में जमकर बर्फ़बारी हुई है जो की पर्यटन के लिहाज़ से अच्छी खबर है लेकिन चुनाव को देखते हुए बर्फ़बारी प्रशाशन के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। कुछ मतदान केंद जहाँ स्तिथ है वहां 4 से 6 फ़ीट तक बर्फ गिरती है और इस वक़्त भी बहुत जगहों पर बर्फ़बारी हो रही है। पंजाब और गोवा में तो इलेक्शन शांतिपूर्ण तरीके से हो गए अब उत्तराखंड,यूपी, मणिपुर की बारी है। मौसम मेहरबान हुआ तो उत्तराखंड और मणिपुर में भी चुनाव सही ढंग से खत्म हो जायेंगे।

Wednesday, 8 February 2017

कितने तैयार है हम..?


6 फरबरी रात 10:35 जब पूरा देश सोने की तैयारी कर रहा था, तभी उत्तरभारत में धरती डोलती महसूस हुई। हिमांचल प्रदेश से लेकर पंजाब तक अफरा-तफरी मच उठी, लोग सड़कों पर उतर आये। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग बताया गया जिसकी तीव्रता 5.7 मापी गई। माना जाता है कि इस रेक्टर स्केल के भूकंप विनाशकारी नहीं होते लेकिन जब धरती डोलती है तो उस वक़्त वो सब कुछ तबाह कर देती है, इसके लिए प्रशाशन के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होने कु जरूरत है।भूकंप बड़ा हो या हल्का, बड़ा सवाल ये उठता है कि हम इसके लिए कितने तैयार है?भविष्य में अगर कभी बड़ा भूकंप आता है तो क्या हम नुक्सान से खुद को और अपने परिवार को बचा सकते है?
           ये पहली बार नहीं हुआ की हिमालय छेत्र में धरती काँपी हो, इससे पहले भी बहुत बार हिमालय छेत्र भूकंप की वजय से प्रभावित होता आया है जिसका असर 300 किमी दूर दिल्ली तक देखा गया है। कुछ लोग मानते है कि भूकंप जमीनी सतह हिलने की वजय से आते है जबकि कुछ लोग बढ़ते प्रदूषण और मौसम के बदलाव को इसकी वजय बताते है, कारण जो भी हो असल बात ये है कि हम भूकंप से निपटने के लिए  कितने तैयार है क्योंकि हम लोग तभी हरकत में आते है जब नुक्सान हो चूका होता है। हमारे पडोसी देश नेपाल ने पिछले सालों जो भूकंप से दर्द सहा है वो सबने महसूस किया, पलक झपकते ही नेपाल की तस्वीर बदल गई थी, तेज भूकंप के झटकों से नेपाल इस तरह हिला की वहां सब कुछ तबाह हो गया, न प्रशाशन को कुछ समझ में आया न आम लोगो को। ऐसे ही बहुत बार देखने को मिला जब - जब धरती आक्रोश दिखती है तब-तब इंसान परित्थितियों के सामने झुकता है। आज हमारे पास बहुत से भू वैज्ञानिक है लेकिन वो भी आने वाली इस तबाही के बारे में नहीं बता पाते साथ में SDRF, NDRF की टीम है लेकिन वो तबाही के बाद हरकत में आती है। सबसे पहले हम लोगों को ही एतियात बरतने की जरूरत है, भूकंप जैसी स्तिथि में घबराने की जगह शांति से खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित बनाये और कोशिश करें की जल्द से जल्द खुले मैदान में पहुँचे,आपातकालीन नंबर हमेसा अपने पास रखे और भगदड़ न मचाए।

Saturday, 4 February 2017

ईवीएम में कैद होती किस्मत..


पंजाब और गोवा के बाद अब बारी है यूपी,उत्तराखंड की। जहाँ यूपी में 404 सीटों के लिए मतदान होने है तो वहीँ उत्तराखंड में 70 सीटों के लिए जंग जारी है। रणभूमि तैयार है, सारे प्रतिनिधि चुनावी जंग में कूद चुके है, हर कोई जानता से वादे करता और उन्हें अपने भरोसे में लेने की कोशिश में जुटा है। लेकिन पाँच सालों का हिसाब-किताब अब जनता के हाथों पर है कि वो किसको चुनते है और किससे बदला लेते है, जितने उम्मीदवार है उनकी किस्मत ईवीएम में कैद होने वाली है जिसका ख़ुलासा परिणाम आते ही हो जायेगा।
           फरबरी और मार्च का माह इस बार चुनाव लेकर आया है, विधानसभा चुनाव की शुरुवात पंजाब और गोवा से हो चुकी है वहां 80 प्रतिशत वोट पड़े है, लोगों ने अपने मत का इस्तमाल करके समाज और अपने देश के लिए काम किया है। आज से 2 दशक पहले की बात करे तो तब ईवीएम जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन कहते है वो नहीं हुआ करता था, तब जनता मुहर और अंघुठे से अपना प्रतिनिधि चुनती थी लेकिन वक़्त के साथ-साथ ये परंपरा भी बदली और ईवीएम से चुनाव को जोड़ा गया।ईवीएम के आने से मतदातायों को वोट देने में काफी आसानी हुयी है, अब तो सिर्फ मतदान केंद्र में जाना है तो अपने पसंदीदा प्रतिनिधि के चुनाव चिन्ह वाले बटन को दबाना है, इससे प्रतिनिधियों की किस्मत का फैसला उस ईवीएम में कैद होती है।

Tuesday, 24 January 2017

जनता सब कुछ जानती है साहेब...

इलेक्शन का समय नजदीक आ गया है और हर तरफ चुनावी माहौल बना हुआ है ऐसे में हर राजनेता और राजनीतिक पार्टी आम लोगों से अपने लिए वोट मानती नजर आ रही है, हर बार की तरह जानता से वादें किये जा रहे है, विकास की लंबी लंबी घोषणाएं कर रहे है, नेताजी सोच रहे है कि जनता तो सिर्फ घोषणयों से ही बेहल जाती है, नहीं साहब..! अब जनता की बारी है हर चीज़ का हिसाब लेगी। पब्लिक को सब कुछ पता होता है कि कौन क्या करता है और क्या बोलता है। नेता लोग सिर्फ अपनी जेब भरने के लिए राजनीती में आते है लेकिन दिखाते ऐसे है कि वो सिर्फ जनता के लिए ही इस छेत्र में आये है।    
  विधानसभा चुनाव की डेटशीट आ गयी है, बात करे उत्तराखंड की तो यहाँ मतदान 15 फरबरी को होने है, यानि की 15 फरबरी को आम जनता एक एक झूठे वादे का हिसाब लेगी। लेकिन एक बात बहुत चुभती है कि क्या राजनीती में यही सब होता है, यानि की झूठे वादे, घोषणाएं और सीट के लिए उथल-पुथल , अरे साबह.. लोगों की आपसे बहुत उम्मीदें होती है कि आप उनके लिए दिन-रात काम करोगे, जहाँ तक विकास नहीं पहुँचा, वहां विकास लेकर आओगे लेकिन हर बार जनता को सिर्फ धोख़ा ही मिलता है क्योंकि जीतने के बाद तो नेता लोग आम पब्लिक को अपने आस-पास भी नहीं भटकने देते। मतलब की अपना काम बनते ही जनता को भूल जाना कोई इन नेतायों से सीखे, ये गुण हर किसी के पास नहीं होता ये सिर्फ नेताओं के पास होता है। कहीं-कहीं ये भी देखने को मिलता है कि नेता जी सिर्फ तभी चेहरा दिखाते है जब वोट माँगने के लिए आते है, उसके बाद तो कौन नेताजी?कहाँ है नेताजी? ये स्तिथि इस वक़्त हमारे ही देश में है जहाँ विकास नेताओं के भरोसे होता है और नेता सरकार भरोसे। अब सवाल उठता है कि अब पब्लिक क्या करे? सही बात ये है पब्लिक किसको चुने क्योंकि आज तो हर कोई इन्ही नेताओं की तरह है, जब अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता। चलिए एक बार फिर देखते है की इस बार जनता किसपे भरोसा करती है, वैसे ये तो वो भी जानते है कि उनके भरोसे पर उतरना किसी नेता के बसके नहीं है लेकिन अधिकार है वोट डालना तो डालना तो पड़ेगा ही।


Tuesday, 17 January 2017

वाह रे हिंदुस्तान,भूखा सोये जवान

पिछले कुछ दिनों से सोशल साइट्स पर बीएसएफ के जवान तेज बहादुर सिंहका वीडियो बड़ी तेजी से वायरल होता दिखा, उस वीडियो में बीएसएफ के जवान ने जवानों को मिल रहे खाने को लेकर कई सवाल खड़े किये है,वीडियोमें बाकायदा दिखाया गया कि सेना के जवानों को किस तरह का खाना दिया जाता है। एक तरफ भारतीय सरकार सेना के लिए तमाम काम करने के दावे करती है तो दूसरी तरफ इस जवान का दर्द भी बहुत सी सच्चाइयां बयां करती है।बीएसएफ जिसे बॉर्डर सिक्योरिटी फाॅर्स के नाम से भी जाना जाता है, भारत की पहली बॉर्डर फ़ोर्स है जो की 1964 में बनी थी, इस वक़्त बीएसएफ के पास ढाई लाख से ज्यादा जवान है जो दिन-रात हमारे देश की सुरक्षा करते है।
 बीएसएफ के जवान दक्षिण भारत से लेकर कश्मीर और कारगिल तक तैनात रहते है, बेहद संवेदनशील और दुर्गम परिस्थितियों में बीएसएफ के जवान दुश्मनों को मुह तोड़ जवाब देने के लिए खड़े रहते है,एक तरफ ये जवान इतनी मुश्किल भरी जिंदगी जीते है और बदले में उन्हें अच्छा खाना तक नसीब नहीं होता। ये हम सबके लिए बड़े शर्म की बात है,की आज एक जवान ने प्रधानमंत्री से दर्द भरी अपील की है कि उन्हें दो वक्त का अच्छा खाना भी नहीं मिलता, नाश्ते में एक परांठा मिलता है वो भी जला हुआ और दिन-रात में सिर्फ हल्दी वाली दाल। सुननेमें ही शर्मिंदगी महसूस होती है कि कैसा देश है हमारा,जो हमारे दुश्मनों की गोलियां तक झेलते है उनके लिए हमारा देश कुछ नहीं कर पा रहा। एक तरफ सरकार ने सेना के जवानों को नाईट डिवीजन डिवाइस दे रखा है, लेकिन जब बारी सुविधायों की आयी तो जवानों की अनदेखी की जाती है। आज उस जवान के एक वीडियो ने हर किसीको ये सोचने पर मजबूर कर दिया की जवानों के लिए करोड़ों रुपए आखिर जा कहाँ रहे? ताज्जुब की बात ये है कि ये कोई पहला घोटाला नहीं है इससे पहले भी मीट घोटाला,शराब घोटाला और अंडा घोटाले ने सेना और उच्च अधिकारियों पर सवाल खड़े किये है।वायरल होते वीडियो की सच्चाई क्या है ये तो छानबीन में पता चल जायेगा, लेकिन जवान के इस वीडियो ने देश की सच्चाई बयां की है। देश की सुरक्षा के लिए खड़े जवान किस हालात में जीने को मजबूर है ये एक बार फिर सामने आ चुका है।

Tuesday, 10 January 2017

मीडिया पर है बड़ी जिम्मेदारी

2017 का आगाज हो चूका है अब वक्त है चुनाव का, ऐसे में हर तरफ चुनावी माहौल दिखाई दे रहा है, सुबह अखबार से लेकर शाम तक टीवी में हम चुनाव से जुडी खबरें देख रहे है। जहाँ एक तरफ आम लोगो के पास अच्छी सरकार चुनने का सुनहरा मौका है तो वहीँ अब चौथे स्थम्ब के रूप में देखी जाने वाली मीडिया की भी जिम्मेदारी बहुत बड़ चुकी है क्योंकि चुनावी माहौल के बारे में हर अपडेट सिर्फ मीडिया ही लोगों तक पहुँचने का काम करती है ऐसे में मीडिया को अब लोगों तक सही और सटीक जानकारी पहुँचाने की जरूरत है।
        "मीडिया तो रोजाना ही आम लोगों के लिए काम करता है, देश-दुनिया में क्या चल रहा है सिर्फ मीडिया ही जानती है और लोगों तक पहुँचाती है, लेकिन बहुत बार देखा गया है कि कुछ डिज़ाइनर पत्रकार पूरी जानकारी नहीं देते या यूँ कहे की सही जानकारी भी छुपाने का काम करते है ऐसे में लोग गुमराह होते है। आम लोग वाही मानते है जो मीडिया उन्हें दिखती है या सुनाती है, इसका मतलब ये है कि मीडिया लोगों के लिए किसी सच्चाई से कम नहीं है, जो मीडिया दिखाये वही सब सच्चाई मानते है तो अब चुनाव के समय पर भी मीडिया को बिलकुल साफ़ और सही बात दिखने की जरूरत है। लोगों का काम है कि अपनी बुद्धि से सही उम्मीदवार को वोट देना इसके बाद तो काम शुरू होता है वो होता है मीडिया का, की सही बात को उजागर करें न की लोगों की सोच के साथ खेलें। बहुत लोगों को लगता है कि कुछ पत्रकार सिर्फ नेताओं के लिए काम करते है, उनका सोचना बिलकुल जाएज़ है क्योंकि हमारे देश में सबसे पहले पैसा है फिर कुछ और। लेकिन कुछ समय के लिए ही सही लेकिन ये वक़्त ऐसा है जब एक गलती की वजय से पूरा समाज और राज्य प्रभावित हो सकता है इसलिए इस समय आम लोगों से लेकर मीडिया तक सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है। फरवरी-मार्च तक पाँचों राज्यों में चुनाव हो जायेंगे उसके बाद से मीडिया ही सारी जानकारी के बारे में दिखाएगी, लोग भी वही मानेंगे जो मीडिया दिखायेगी इसलिए मीडिया के कंधों पर अब जिम्मेदारी और बड़ चुकी है और उम्मीद की जा रही है कि हर कोई अपना काम ईमानदारी से करे।

Tuesday, 3 January 2017

वोट का करे सही इस्तमाल..



नए साल के बाद अब वक्त है इलेक्शन का, एक तरफ जनवरी में पारा बिलकुल नीचे है तो वहीँ राजनीती पारा गरमाया हुआ है क्योंकि ये समय है इलेक्शन का, अलग-अलग पार्टियों का। हम स्कूल से पढ़ते आये है कि वोट देना हमारा अधिकार है और इसका सही तरीके से इस्तमाल करना चाहिए वरना नुक्सान हमेसा आम लोगों का ही होगा, अब फिर से इलेक्शन आने वाले है, हमारे पास एक मौका आ गया है सरकार को बदलने का। अपने वोट का सही तरह से इस्तमाल करके हम काम करने वाली सरकार को विजय बना सकते है न की उन पार्टियों को जो सिर्फ सत्ता की सीट पर राजनीती की रोटियां सेखे।
        लेकिन हम अपने वोट का सही इस्तमाल कैसे करें? हमारे देश में एक चीज की बहुत चलती है वो है पैसा। पैसा है तो मान लो की सब कुछ है, इसी बात का फायदा उठाकर बहुत से राजनेता गरीब लोगों से वोट खरीद लेती है और सरकार बना देती है। हमे ये बात समझ लेनी चाहिए की एक-दो हजार रुपए के लिए हम अपने 5 साल बर्बाद न करे क्योंकि हमारे एक गलत वोट से हमारे साथ साथ देश का भी विनाश हो सकता है। एक पहलु ये भी है कि जिन लोगों के पास बिलकुल रुपए नहीं है उन्हें अगर कोई दो हजार रुपए देदे तो वो क्यों न ले? बात भी ठीक है। लेकिन जरा सोचिए कि अगर कोई गलत पार्टी जीत जाती है तो क्या वो आपको पूछेगी? आपके हित में काम करेगी शायद नहीं क्योंकि उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करना है और उसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकती है, आप अपना वोट ऐसे लोगों के लिए बर्बाद न करे। यही सही समय है जरा सोचिए और सोच समझकर अपना वोट दीजिये, बहुत बात देखा गया है कि कुछ लोग वोट ही नहीं डालते, ये बेहद गलत बात है क्योंकि आप अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर रहे है, फिर बाद में आप लोग ही नेताओं के पुतले फूंकते है, उनके खिलाफ नारेबाज़ी करते है, ऐसा कुछ न करना पड़े इसके लिए आपको सही उम्मीदवार को वोट देना होगा न की उसे जो आपको खरीदना चाहता हो। याद रखिये देश का विकास सिर्फ तब होगा जब आप उसमे भागेदारी देंगे क्योंकि ये देश हमारा है हम सबका है।