
70 दशक की मशहूर फिल्म, कटी पतंग का वो गीत कौन भूल सकता है," आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेंलेंगे हम होली" जिसने भारतीय सिनेमा में इस त्यौहार का स्थान पक्का कर दिया था उसके बाद तो मानो 'होली' के बिना हिंदी फिल्मों को सोचना मुमकिन न था। हिंदी फिल्मी जगत में 80 के दशक को होली के लिए महावर्ष कहा जा सकता है. इस दशक में हिंदी सिनेमा ने होली का जमकर इस्तेमाल किया. साल 1981 मेें फिल्म सिलसिला का गीत 'रंग बरसे भींगे चुनर वाली रंग बरसे' लगभग हर ऊंचाई हासिल कर चुका था और इस होली के तड़के के बाद से ही रेखा और अमिताभ की जोड़ी भी भारतीय सिनेमा जगत में मानो एक मिसाल बनती दिखी। उसके बाद आई भारतीय सिनेमा की सबसे हिट फिल्म शोले, इस फिल्म में भी होली का तड़का इस तरह इस्तमाल किया गया कि फिल्म को आज तक याद किया जाता है। होली के त्यौहार को सिनेमा में फिल्माना एक तरह से फिल्म का एहम हिस्सा बनता चला गया जो की आज भी अपनी एक खास पहचान रखता है, तीन घंटे की फिल्म अगर होली के रंग का तड़का न दिखे तो फिल्म ढीली और अधूरी सी लगती है, यही कारण है कि पिछले कई दशकों से रंगों के इस त्यौहार को सिनेमा में अच्छे से इस्तमाल किया जाता रहा है, ये सिलसिला तो तबसे शुरू हुआ है जब फिल्म ब्लैक एंड वाइट में आती थी। साल 2013 में आई फिल्म 'ये जवानी है दिवानी' में ",बलम पिचकारी जो तुने मुझे मारी, तो सीधी साधी छोरी शराबी हो गई", आज-कल के नौजवानों की पहली पसंद बना हुआ है और हो भी क्यों न क्योंकि होली में हर दिन नौजवां हो जाता है। हाल ही में सुपरहिट हुई फिल्म जॉली एल.एल.बी 2, में भी होली को विशेष स्थान दिया गया है। मतलब साफ है कि होली के त्यौहार को हर निर्देशक हर लेखक अपनी फिल्मों में जगह देना पसंद करता है क्योंकि इस त्यौहार का हमारी हिंदी सिनेमा से बहुत गहरा रिश्ता है, ऐसा रिश्ता जिसे 50 से ज्यादा साल हो गए है लेकिन उसकी महत्वता आज भी वैसी ही है।
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