Tuesday, 29 November 2016

कैशलेस इंडिया की जरूरत...

कालेधन को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का अहम फैसला लिया तो देश भर में हड़कंप मच गया,काले धन वालों के खिलाफ ये एक ऐतिहासिक कदम है लेकिन क्या इससे देश का सारा काला धन बाहर आ पायेगा? शायद नहीं क्योंकि ये एक टेम्पररी ईलाज है जबकि देश को इसके लिए एक परमानेंट ईलाज की जरूरत है, और वो इलाज का नाम है कैशलेस सेवा, स्वीडन, चीन,रूस जैसे देशों में काला धन न के बराबर है क्योंकि वहां सब कुछ कैशलेस चलता है. 
                                               
  कैशलेस मतलब कोई भी चीज़ या समान खरीदने के लिए आपको जेब से केश नहीं देना होगा सिर्फ डेविड कार्ड या शॉपिंग कार्ड की मदद से सारी पेमेंट हो जायेगी, इससे न किसीको छुट्टे की जरूरत पड़ेगी न ही जेब में नोट रखने की। अगर बाकि देशों में कैशलेस सुविधा मुहैया हो सकती है तो हमारे भारत देश में क्यों नहीं? आज नोटबंदी से पूरा देश एटीएम के बाहर खड़ा है वहीँ अगर आज लोग कैशलेस सुविधा की तरफ बढ़ते तो किसीको एटीएम या बैंक के बाहर खड़े होने की जरूरत न होती. बहुत से देश ऐसे है जहाँ के 90प्रतिशत बैंकों में एक भी कैश नहीं है वहां की आधे से ज्यादा आबादी कार्ड के जरिये ही पेमेंट करते है। हमारे देश का कैशलेस होना बेहद जरूरी है क्योंकि आज नहीं तो कल नए 2000 के नोट के भी नकली रूप बाजार में आ जायेंगे, कुछ समय बाद फिर से करोड़ों का कालाधन जमा हो जायेगा, इसलिए इसका एक ही इलाज है वो है कैशलेस इंडिया को बनाना। अगर नोट ही नहीं रहेंगे तो कालाधन और नकली नोट का कारोबार पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। लेकिन कैशलेस देश का निर्माण करना भी आसान काम नहीं क्योंकि 125 करोड की आबादी वाले भारत में करोड़ों लोग ऐसे है जो पढ़े-लिखे नहीं है, हजारों गाऊं ऐसे है जहाँ एटीएम तो क्या एक डाक घर भी नहीं है तो ऐसे देश को कैशलेस बनाना अपने आप में बेहद मुश्किल है, लेकिन सरकार ने एक कदम तो उठाया है अभी बहुत कुछ करना बाकी है। भारतीय सरकार को ये समझना होगा की नोटबंदी से कुछ ज़्यादा असर नहीं होगा, कालेधन को खत्म करने के लिए सिर्फ एक ही तरीका है, वो है कैशलेस इंडिया का निर्माण।

Friday, 25 November 2016

50 दिन का इंतजार पीड़ाजनक...

केंद्र सरकार के ऐतिहासिक फैसले के बाद से ही अलग-अलग तस्वीरें देखने को मिल रही है, कहीं लोग एटीएम के बाहर लंबी लाइनों में खड़े दिख रहे है तो कहीं शादी वाले घर में खोमोसी पसरी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 125 करोड़ भारतीयों से माहौल सामान्य करने के लिए 50 दिनों का समय मांगा है लेकिन जिस तरह लोगों को नोटबंदी से लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उससे ये 50 दिन बहुत ज़्यादा लग रहा है क्योंकि अब एटीएम और बैंक के बाहर खड़े लोगों पर लाठियाँ बरसायी जा रही है क्योंकि अब लोगों को पैसों की दिक्कत हो रही है. 
           अब ये 50 दिन पीड़ाजनक लग रहे है क्योंकि लोगों को पैसों की जरूरत आज है तो वो कैसे 50 दिनों का इंतजार करें ? अपने ही रुपए के लिए उन्हें घंटों लाइनों में लगना पड़ रहा है जिससे अब लोगों में आक्रोश साफ़ देखा जा रहा है और ये गुस्सा जाएज़ भी है क्योंकि सरकार ने अचानक फैसला तो ले लिया लेकिन कहीं न कहीं होमवर्क नहीं किया जिससे अब छोटे नोटों की क़िल्लत पड़ रही है, सरकार को कुछ समय पहले से ही बाजार में छोटे नोट लेकर आ जाने चाहिए थे जिससे एटीएम में आसानी से 100 रुपए के नोट लोगों को मिल जाते, इससे लोगों को पुलिस की लाठियाँ भी नहीं खानी पड़ती। चलिये कोई नहीं अब मोदी साहब ने जनता से 50 दिनों का समय मांगा है इन 50 दिनों में सरकार हर वो मुमकिन काम करना चाहेगी जिससे लोगों को नोटबंदी के कारण हो रही परेशानियों से कुछ राहत मिल सके, लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें एक-एक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा है यही कारण है कि अभी तक 50 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर आ चुकी है, कुछ दिन पहले ही पंजाब के एक आदमी ने आत्महत्या कर दी क्योंकि उनकी बेटी की शादी के लिए उन्हें 5 लाख रुपए चाहिए थे, उनके अकॉउंट में 5 लाख रूपये थे लेकिन वो रुपए समय से नहीं मिल पाने के कारण उन्होंने मौत को गले लगा दिया, बताया जा रहा था कि बैंक में कैश खत्म होने के कारण उन्हें बैंक से खाली हाथ लौटना पड़ा और मायूस होकर उन्होंने ये कदम उठाया, ये कहीं न कहीं सरकार की लापरवाही है जिससे लोगों को अपने ही रुपए के लिए परेशान होना पड़ रहा है, ये अगर शरुवात है तो सोचा जा सकता है कि आने वाले 50 दिन और क्या-क्या लेकर आएंगे? ये 50 दिन लोगों के लिए काफी पीड़ाजनक होते दिख रहे है।

Wednesday, 23 November 2016

ये पाकिस्तान है..कभी नहीं सुधरेगा

किसी ने बिलकुल सही कहा है कि पाकिस्तान अब एक मुल्क नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा देश बन चूका है जो सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देता है और आतंकवाद का ही गुण-गान करता है. ये अब इंसानियत का पाठ भूल चुका है और हैवानों की सेना तैयार कर रहा है. पाकिस्तान सेना ने एक बार फिर भारतीय जवान के शव के साथ बर्बरता करके ये साबित कर दिया की उनके अंदर का इंसान मर चुका है.
           भारत-पाकिस्तान की लड़ाई काफी सालों से चलती आ रही है जिसमे अभी तक दोनों देशों के हजारों-लाखों जवानों ने अपनी जान खोई है लेकिन इन दोनों मुल्कों में फिलहाल दोस्ती दूर दूर तक नहीं दिख रही है. पाकिस्तान को आज हम आतंकवादियों का मुल्क कहे तो ये बिलकुल भी गलत नहीं होगा क्योंकि पाकिस्तान आतंकवाद का सहारा लेकर कश्मीर को जीतने की जत्तोजहत कर रहा है. जैसे हम पाकिस्तानी सेना को गलत बता रहे है वैसे ही पाकिस्तान में लोग भारतीय सेना को गलत बात रहे होंगे लेकिन सच्चाई ये है कि ये दोनों सेना एक दूसरे से बेहद अलग है. आज एक बार फिर पाकिस्तानी सेना द्वारा एक भारतीय शहीद जवान जिसका नाम प्रभु सिंह था, उनके शव के साथ अमानवता की गई ये पुरे पाकिस्तान के लिए बहुत शर्म की बात है क्योंकि किसी जवान के शव के साथ बर्बरता करना कहाँ सही है? ऐसे घिनोने काम सिर्फ पाकिस्तान ही कर सकती है, ये पहला मामला नहीं है इससे पहले 2013 में भी दो भारतीय जवानों के साथ बर्बरता की गई, पाकितानी सेना द्वारा इन दो जवानों के सर को काट कर अलग कर दिया गया, बात करे 2011, 2004 में भी पाकिस्तान ने ये घिनोना काम किया, इतने सालों में तो एक हैवान भी शायद इंसानियत समझ जाता है लेकिन पाकिस्तान ने तो कसम खा रही है कि वो नहीं बदलेगा. पाकिस्तान कहता है कि उनकी सेना हमेसा अपने मुल्क के लिए काम करती है और शांति फैलाना जानती है लेकिन सच्चाई ये है कि पाकिस्तान तो खुद कभी अपने जवानों का नहीं हुआ तो वो दूसरों की तकलीफ़ क्या समझेगा. भारत-पाकितान युद्ध के दौरान जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के जवानों को मार गिराया था तब पाकिस्तान ने अपने ही जवानों के शव को नहीं उठाया, उन्हें अपने ही जवानों के शव उठाने में शर्म आ रही थी, तब हिंदुस्तानी सेना ने पूरे सम्मान के साथ पाकिस्तानी जवानों के शव को पाकिस्तान पहुँचाया. ये है भारतीय सेना जो अपनों के साथ साथ दूसरों के दर्द को भी महसूस करना जानती है इर पाकिस्तान सिर्फ आतंकवाद फैलाना जानता है उन्हें बाकि कुछ और नहीं चाहिए.
        जब से भारतीय सेना ने सर्जीकल स्ट्राइक की है तब से   पाकिस्तान बौखलाया हुआ है, यही कारण है कि पाकिस्तान ने BAT(बॉर्डर एक्शन टीम) नाम की एक स्पेशल फाॅर्स तैयार की है जो सिर्फ पेट्रोलियम करते भारतीय सेना तो अपना निशाना बनाते है और उन्हें शव के साथ बर्बरता करते है. इस समय पाकिस्तान ने उस फाॅर्स में 700 नए कमांडो और आतंकवादीयों को शामिल किया है. पाकिस्तान हर तरह से भारतीय सेना को नुक्सान पहुँचाना चाहता है यही कारण है कि वो अपनी हरकतों से बाज़ आता नहीं दिख रहा, मगर हिंदुस्तानी फ़ौज ये अच्छे से जानती है कि इन आतंकवादियों का सफाया कैसे किया जाता है. भारतीय सेना पाकिस्तान के सुधरने का इन्तजार नहीं कर रही है क्योंकि सबको पता है कि ये पाकिस्तान है..कभी नहीं सुधरेगा।

Monday, 21 November 2016

हादसों से कब सीखेगा भारत?

हम रोजाना हादसों की खबर सुनते है, कहीं सड़क हादसा तो कहीं रेल हादसा लेकिन इन्हें रोकने के लिए कोई कदम उठाये गये है..ये हम कभी नहीं सुनते। हमारे देश में रोजाना बहुत से सड़क हादसे होते है , हर साल लगभग 10 लाख लोग अलग-अलग हादसों में अपनी जिंदगियां खो देते है, सरकार मरहम के रूप में कुछ मुआवजा दे देती है लेकिन इन हादसों को हर बार रोकने में असमर्थ दिखती है। 
         ताज़ा मामला इंदौर-पटना रेल हादसे का है जिसमे लगभग 70 जिंदगियां एक पल में खत्म हो गयी, बताया गया कि रेल की 14 बोगियां पटरी से उतर गयी और ये भयानक हादसा हो गया. इतना बड़ा हादसा ऐसे कैसे हो सकता है जबकि सरकार ये दावा रहता है कि देश की हालत बिलकुल आधुनिक है, यानि की ट्रेन से लेकर पटरी तक सब कुछ सही है तो फिर ऐसे हादसे क्यों होते है? ये पहली बार नहीं हुआ इससे पहले भी कई बार ऐसे हादसों से लोग का सामना हुआ है जिसमे बहुत जान-माल का नुक्सान हुआ है, लेकिन फिर भी हम ऐसे हादसों से सबक नहीं लेते क्योंकि इस देश में आधे से ज्यादा काम भगवन भरोसे रखे जाते है। रोजाना सड़क हादसों में भी हजारों लोग मौत के आगे दम तोड़ देते है, सड़क हादसों का असली करण यहाँ की सड़कों की हालत है, जैसी सड़के हमारे देश में है ऐसे शायद भी और देश में कहीं हो. लेकिन ऐसा नहीं है कि यहाँ का प्रशाशन चुस्त नाजी है, हमेसा देखा होगा की जब कोई नामी मंत्री किसी शहर के दौरे पर जाता है तो मंत्री के आने से कई हफ्ते पहले से ही सड़कों को चमकाना शुरू कर देते है. जिस सड़क पर गड्डों का मेला हुआ करता था वो सड़क नई-नवेली दुल्हन की तरह सज जाती है और जिस दिन मंत्री साहेब पहुँचते है उस दिन सड़क नए रूप में दिखाई देती है. लेकिन ये चमत्कार सिर्फ वहां होता है जहाँ कोई बड़ा नेता आने वाला हो वरना छोटे-मोटे नेताओं के लिए सिर्फ तालियाँ ही बहुत होती है। ये हमारे देश का दुर्भायग है कि आज़ादी के इतने साल बाद भी यहाँ की असल तस्वीर नहीं बदल सकी है, कुछ दिन पहले जापान के एक शहर में 50 मीटर हाईवे 15 फ़ीट तक धस गया था लेकिन वहां के प्रशाशन और लोगों ने उस 50 मीटर गड्ढे को सिर्फ 48 घण्टों में भर दिया और 7 दिनों में वो सड़क पहले से भी मजबूत और सूंदर बना दी गई. ऐसा ही एक मामला हमारे देश की राजधानी दिल्ली में कुछ महीने पहले हुआ जहाँ पर एक सड़क 20 मीटर धस गयी थी लेकिन वो सड़क अभी तक नहीं बन सकी, ये बहुत बड़ा फर्क है जापान के प्रशाशन में और हमारे देश की सरकार में, वो लोग हादसों से सबक लेना जानते है इसलिए वो परमाणु बम और सुनामी जैसे त्रासदियों से उभर पाया है उसकी जगह भारत होता तो अभी न जाने यहाँ की क्या तस्वीर होती.
        भारत एक ऐसा देश है जो लगातार प्रगति कर रहा है लेकिन लगातार हो रहे हादसों से देश पीछे खिसकता है, इसलिए सरकार और प्रशाशन को चाहिए की इन हादसों को गंभीरता से ले, इनसे सबक ले ताकि फिर से कोई सड़क हादसा न हो, न ही कोई ट्रैन पटरी से उतरे ।

                     

Saturday, 19 November 2016

इंसान ही इंसान का नहीं...

इस दुनिया को बनाने वाले उस परमात्मा ने जब हम इंसानों को बनाया तो हमारे अंदर बहुत सी भावनाएं भी डाली ताकि हम इंसान कहलाये। गुस्सा,हँसना, रोना और अच्छे-बुरे की पहचान दी उसने, उसे ये लगा की इतना मॉडिफाई करके शायद ये इंसान अपने अंदर छुपे इंसानियत की महत्वता जान सके, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, आज इंसान जा सबसे बड़ा दुश्मन खुद एक इंसान है. गलत राह पर चलने वाला एक इंसान है और दुनिया में आतंकवाद को फैलाने वाला भी एक इंसान ही है . मतलब आज इंसान ही इंसान का नहीं है तो हम भगवन, किस्मत या कुदरत के भरोसे क्यों है?
             कभी सड़क किनारे एक छोटे बच्चे को भीख मांगते हुए देखा है, उसे 1 रुपए मिल जाये तो उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होती है वो कोई बयां नहीं कर सकता और उसकी जगह अगर किसी आम इंसान को हजारों रुपए मिले तो वो लाखों पाने के सपने देखता है, लाखों मिल जाये तो करोड़ों के लिए तड़पता है। आज ये दुनिया बहुत बुरी हो चुकी है यहाँ सिर्फ आपका बैंक बैलेंस की इज्जत है न की आपके स्वभाव की, अगर आपके पास लाखों-करोड़ों है तो दुनिया आपको सलाम करेगी, आपके पीछे रहेगी लेकिन आपके पास कुछ नहीं तो "चल साइड में होजा".. किसी के लिए अच्छा करो तो खुद का ही नुक्सान होता है ये बात तो शायद हर किसी को पता होगी, एक इंसान जो गुरु के रूप में कुछ सिखाता है, हमे काबिल बनाता है उसी का विरोध करने पर आज हमारे हाथ नहीं कांपते, ये हमारे लिए छोटी सी बात है लेकिन उस इंसान से पूछिये की उसे कैसा लगा जब उसी के शिष्य उनके खिलाफ खड़े हो. उनकी सालों की मेहनत पर एक पल में पानी फिर गया लेकिन नुक्सान कभी गुरु न नहीं होता. इसी तरह आज एक भाई अपने ही भाई का नहीं हो पा रहा है क्योंकि मन में लालच और गलत फेमियां ने अच्छी-खासी जग़ह बना रखी है. हम सबको बनने वाला ईश्वर बहुत ही दिमागदार है, हम सबसे तेज़ और भुद्दिमान , उसे पता था कि अगर मैं सबको एक समान बनाऊंगा तो कोई मुझे नहीं पूछेगा न ही इस धरती पर किसी को किसी की फ़िक्र होगी इसलिए उसने सबको दो आँखे,दो कान,एक नाक,दो हाथ, एक दिल दिए लेकिन फिर भी सबको एक दूसरे से बहुत अलग बनाया. मेरा तो अब ये मानना है कि सिर्फ उनकी मदद करनी चाहिए जिन्हें सच में मदद की जरूरत है वरना यहाँ ढोंगी लोग बहुत है, एक दिन में 5 बार बड़ों के पैर छूते है लेकिन पीठ पीछे उन्ही के पैर पर कील बिछाते है. लेकिन ऐसे लोगों को कुछ हासिल नहीं होता वक़्त सब हिसाब बराबर करता है.

Wednesday, 16 November 2016

ये कदम भी जरुरी था..

भारत सरकार के एक कदम से हर तरफ काले धन रखने वालों के बुरे दिन नज़र आने लगे है, ये एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला साबित हो रहा है जिसके आने वाले दिनों में बड़े फायदे आम लोगों को मिलेंगे क्योंकि जिस तरह लगातार देश में काला धन बड़ रहा था उससे हमारे ही देश को परेशानी झेलनी पड़ रही थी लेकिन 500 और 1000 के नोट बंद होने के बाद कालेधन वाली बीमारी को खत्म किया जा रहा है, और लोगों की माने तो ये कदम बेहद जरुरी था।
              केंद्र सरकार का ये फैसला काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है क्योंकि अब देखा जा रहा है कि जिन लोगों के पास गलत कमाई से जुटाया गया धन है अब वो उस रूपये को जला रहे है, कहीं कहीं तो लाखों रुपए नालों में बहते नजर आने लगे है क्योंकि अब काला धन रखने वालों के पास कोई और रास्ता नहीं बचा जिससे वो इन रुपए को बचा सके. न वो ये लाखों-करोड़ों रुपए बैंक में जमा कर सकते है न ही इनको खर्च कर सकते है क्योंकि अब ये नोट मात्र एक कागज का टुकड़ा रह गया है. इस ऐतिहासिक कदम के और भी बहुत फायदे नजर आ रहे है, बड़े ताज्जुब की बात है कि 8 नवम्बर से अभी तक घाटी में पत्थरबाज़ी की एक भी घटनाएं सामने नहीं आई है क्योंकि जिन कश्मीरी युवकों को 500-1000 के नोट देकर सेना पर पत्थर मारने को कहा जाता था वो नोट तो अब बंद हो चुके है इससे अब आतंकवादियों के पास भी रुपए नहीं बचे है जो की भारत की नजर से बहुत अच्छी खबर है, मतलब एक बात तो साफ़ हुई है कि मोदी सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसकी हमारे देश सख्त जरूरत थी, और उस कदम के परिणाम अब हमें दिखाई देने लगे है. लेकिन इस फैसले को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए क्योंकि ये कदम हमारे देश के लिए है और देश सिर्फ एक पार्टी का नहीं है, चाहे कांग्रेस हो या आप ,या फिर सपा, इन सबको मिलाकर ही भारत बनता है तो हर किसी को इस फैसले का स्वागत करना चाहिए. काले धन के मामले में हमारा देश की स्तिथि काफी अच्छी-ख़ासी है ये बड़े शर्म की बात है, एक तरफ हम चाहते है कि हमारा देश हर छेत्र में आगे रहे लेकिन काले धन को छुपा छुपा कर देश का बंटा धार करने पर तुले है.

Friday, 11 November 2016

सरकार के फैसले में फंसा आम आदमी...

मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले से बाद से ही पूरे देश में 500 और 1000 के नोट बदलवाने की होड़ मची हुई है, और जिस 100 के नोट को कल तक छोटा समझा जाता था आज उसके लिए हर कोई 5-5 घंटे बैंक और एटीएम के दर पे खड़ा होता दिखाई दे रहा है. आज हर किसीको छोटे नोट की कीमत समझ आने लगी है क्योंकि बड़े नोट अब मात्र एक कागज़ का टुकड़ा रह गए है. 
          भारत सरकार के अचानक लिए इस फ़ैसले ने पिछले 2-3 दिनों में आम जनता को बहुत परेशानियों का सामना करने पर मजबूर कर दिया है, और बहुत कुछ सिखा भी दिया है, पहली बात जिस किसी के पास भी गलत कमाई का पैसा है अब उस पे आयकर विभाग की नज़र जमी हुई है और दूसरी बात लोगों को ये समझ में आई है कि कोई भी नोट छोटा-बड़ा नहीं होता। भारत से काला धन को हटाने के लिए ये कदम बेहद आवश्यक था,और इस फैसले से जल्द ही काली कमाई एक- एक कर के बाहर निकलेगी लेकिन कहीं न कहीं अचानक लिए इस फैसले से आम जनता को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है ख़ासकर उन लोगों का ज्यादा दिक्केतें हो रही है जिनके घर शादी या किसी तरह का कार्यक्रम है क्योंकि इस वक़्त न उनके पास नगद रुपए है न ही एटीएम से ज्यादा रुपए निकल पा रहे है ऐसे में शादी जैसे कार्यक्रम में कुछ काम नहीं हो पा रहा है. सिर्फ दिल्ली में ही आगामी 7 दिनों में 34 हज़ार शादियां है लेकिन अभी तक किसी भी कार्यक्रम की तैयारी शुरू नहीं हो पा रही है. लाखों रुपए होने के बावजूद जेब में एक रुपए तक नहीं है, शादी की तैयारी हो चुकी है लेकिन शहनाई नहीं बज रही है, इसके अलावा रोज़ाना देखा जा रहा है कि सुबह से ही बैंकों के बाहर लोगों की लंबी लम्बी लाइने लगनी शुरू हो जाती है, लगातार इस तरह की भीड़ से लोगों को तो परेशानी हो ही रही है साथ ही साथ बहुत से जगहों पर जाम की स्तिथि बनती नजऱ आ रही है. हमने कुछ लोगों से इस बारे में बात की तो लोगों का जवाब सुनकर काफी अच्छा लगा, लोगों की माने तो वो मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे है और सरकार का ये कदम काफी सराहनीय माना जा रहा है. लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई ये भी दिख रही है कि आम जनता के लिए सरकार ने कोई ऐसी तैयारियां नहीं की जिससे आम लोगों को कम से कम दिक्कत हो, ऐतिहासिक फैसला हो सुना डाला लेकिन फंस गया आम आदमी.
        ये काफी अच्छी बात है कि जिस व्यक्ति ने देश के हित में एक कदम उठाया है तो आम लोग भी उनके फैसले से खुश है लेकिन लाखों लोगों को सुबह से शाम तक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है , कहीं शादी रुकी हुई है तो कहीं लोग दो वक़्त का खाना भी नहीं खा पा रहे है, इसके लिए सरकार को पहले से सोचना चाहिए था..

Tuesday, 8 November 2016

उत्तराखंड के 16 साल,नही दिखा कोई कमाल..

उत्तराखंड राज्य को बने हुये 16 साल पूरे हो चुके है, आज वो 17वें साल के प्रवेश कर रहा है, बीते 16 सालों में उत्तराखंड ने बहुत कुछ देखा, कुछ विकास तो कुछ तबाही, लेकिन इन सबके बीच में एक सवाल खड़ा होता है कि क्या इन 16 सालों में उत्तराखंड का विकास हुआ? शायद नहीं..! क्योंकि अभी तक उत्तराखंड में विकास के नाम पर सिर्फ फाइलें बनाई गई है।
     उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, फिर लोगों ने यहाँ के विकास और रोजगार के लिए उसे अलग राज्य बनाने की मांग उठाई, बहुत से आंदोलन हुए और फिर 9 नवम्बर,2000 में उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित कर दिया गया। उत्तराखंड राज्य को बनाने का बहुत फायदा यहाँ के लोगों को मिलना चाहिए था,रोजगार,उज्जवल भविष्य और पूर्ण विकास के सपनो के साथ इसका गठन तो किया गया लेकिन अफ़सोस की बात है कि जैसा उत्तराखंड 16 साल पहले था आज भी वैसा का वैसा ही है. न अभी तक यहाँ लोगों को पूरा रोज़गार मिल सका, न ही पहाड़ों तक मुलभुत सुविधाएं पहुँच सकी. उत्तराखंड की पहचान हमेसा से यहाँ के पहाड़ रहे है तो सरकार का पहला कर्तव्य पहाड़ों तक सुविधाएं पहुँचाना होना चाहिए था लेकिन आज भी यहाँ के पहाड़ वीरान होते जा रहे है, पहाड़ों पर न बिजली पहुँच रही है न शिक्षा, न ही रोजगार ऐसे में पहाड़ पे रह रहे लोग शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हो रहे है और हमारे पहाड़ वीरान होने को मजबूर है. जहाँ तक विकास की बात है तो विकास तो शहरों का भी नहीं हुआ है, यही तो सच्चाई है कि कहने को तो यहाँ बहुत से शहर है लेकिन उनकी हालत किसी गाऊं से कम नहीं है, न सड़के ठीक है न शिक्षा व्यवस्था और न ही इंड्रस्ट्रीयल विकास ऐसे में भला उत्तराखंड कैसे विकास के रथ पे सवार हो सकता है? 2013 की आपदा को कौन भूल सकता है, लगातार अतिक्रमण और प्रकर्ति से खिलवाड़ का नतीजा आपदा की रूप लेकर जब आया तब उत्तराखंड की तस्वीर ही बदल के रख दी थी, केदारनाथ छेत्र पूरी तरह से छतिग्रस्त हो गया था उस आपदा ने उत्तराखंड को कई साल पीछे कर दिया. सरकार तो हर बार बदलती है लेकिन 16 सालो में अभी तक उत्तराखंड की तस्वीर नहीं बदल सकी।
          उत्तराखंड की आबादी लगभग 1 करोड है, जिनमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या रोजगार,बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से कोसो मील दूर है. कहने को यहाँ AIIMS स्थापित हो चुका है लेकिन अभी तक पहाड़ पर मेडिकल सुविधा के नाम पर सिर्फ कुछ चिकित्सक ही है. उत्तराखंड हमे ऐसे ही नहीं मिला इसके लिये बहुत से आंदोलन किये गये, आंदोलनकारियों की कड़ी मेहनत और बलिदान के बाद ये प्रदेश हमे मिला लेकिन सोचिये कि क्या उनके बलिदान का फ़ायदा हुआ?

Sunday, 6 November 2016

अब पछताए होवत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत...

" ये मेरे शहर को ये हुआ क्या, कहीं राख़ है तो कहीं धुंआ ही धुंआ.." आज दिल्ही से लेकर पंजाब तक जहरीली धुंध ने अपने पैर पसारे हुये है. दिल्ही वालों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की हज़ार रुपये के पटाखे के बदले उन्हें ये दिन देखना पड़ सकता है, दिवाली को बड़ी मात्रा में पटाखे जलाने से दिल्ही समेत पंजाब,हरियाणा और गाजियाबाद की हवा इस कदर खराब हुयी की पोल्लुशन की मात्रा समान्य से 20 गुना ज्यादा जहरीली हो गयी जिसका असर अब आधा हिन्दुस्तान झेल रहा है। 
       दिवाली की रात हर कोई आतिशबाजी करने में व्यस्त था, न किसीने पर्यावरण के बारे में सोचा न ही पशु-पक्षियों की जिंदगी के बारे में और उसके बाद पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने से प्रदुषण की मात्रा और ज्यादा बड़ गयी जिसका नतीजा ये रहा की अब दिल्ली और आस पास के राज्यों में साँस लेने लायक हवा नहीं बची है, हर कोई मुँह पर मास्क लगाके घर से बाहर निकलने को मजबूर हो चूका है। दिवाली से पहले तमाम तरह के प्रचार-प्रसार किये गए थे की इस दिवाली पटाखों का कम से कम प्रयोग करे लेकिन किसी भी अभियान का कोई असर नहीं दिखा और लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, और अब लोग अपने कर्मों पर अफ़सोस कर रहे है, लेकन "अब पछताए होवत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"। प्रदुषण की मात्रा इस कदर बढ़ चुकी है कि छोटे बच्चों के स्कूल तक बंद करवाने पड़ गए है। दीपावली में पटाखे जलाने से हवा में कार्बन,कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाईओक्ससीडे की मात्रा बेहद ज्यादा हो चुकी है जो की हमारे सेहत के लिए काफी खतरनाक होती है और पशु-पक्षियों के लिए भी हानिकारक होती है. लगातार बढ़ रहे प्रदुषण ने दिल्ली सरकार की नींद खराब हो चुकी है और दिल्ली में हाई अलर्ट घोषित हो चूका है लेकिन इनका क्या फायदा जो नुक्सान होना था वो हो चूका है. अगर सावधानी पहले से बरती होती तो आज देश की राजधानी का दिल यूँ नहीं तड़पता.
          हर साल यही तस्वीर सामने आती है, न कोई इनके लिए पहले से तैयारी करता है न बचने के समाधान निकाल पाता है बस एक दूसरे के ऊपर गलतियां थोपते रहते है. इस दूषित पर्यावरण के लिए कौन जिम्मेदार है? हम सब, क्योंकि हमारे द्वारा ही प्रदुषण को बढ़ाया जाता है और हमारे द्वारा की सवाल खड़े किये जाते है.

Thursday, 3 November 2016

शहीदों के परिवार के लिए एक कदम...

हमारे देश की रक्षा करना हमारे सैनिकों का काम है, ये बात हम सब जानते है लेकिन वही सैनिक जब बॉर्डर पे आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो जाता है तो उसके परिवार की रक्षा करना, उनका साथ देना ये किसका काम है? हम सब अपनी अपनी जिंदगियों में मस्त है इसलिए हमें उनके परिवार का ख्याल तक नहीं आता जिन्होंने अपनों को देश के लिए कुर्बान कर दिया. इस वक़्त पूरा देश त्योहारों को मना रहा है, धनतेरस, दीवाली और फिर नया साल लेकिन कभी मन में ख्याल आया है कि वो परिवार किस स्तिथि से गुजर रहा होगा जिनका बेटा, पिता या भाई देश की सुरक्षा करते करते देश पे मर मिटा है. क्या उनके लिए अब कोई त्यौहार मायने रखेगा? कोई खुशियां उनके घर की देहलीज़ तक पहुचेंगी? शायद ये ख्याल कभी मन में पैदा ही न हुआ हो. 
                आज देश में आतंकी गतिविधियां बेहद बड़ चुकी है, सैनिकों के ठिकानों पर हमले हुए जा रहे है जिसमे हमारे वीर जवान उनकी गोलियों को झेल रहे है. आज मीडिया भी उन जवानों के शौर्य की कहानियाँ टेलीविज़न पर दिखा रही है ताकि उन शहीदों के परिवार तक हमारी सरकार का ध्यान पहुँचे लेकिन सच्चाई ये है कि जब तक अख़बारों और टेलीविज़न में जवानों के बारे में बताया जाता है सिर्फ तब तक ही कोई इनके लिए सोचता है क्योंकि दो दिन बाद तो हर कोई भूल जाता है कि कोई जवान हमारे लिए, हमारे देश के लिए शहीद हुआ है. जिनके घर का बेटा या पिता,भाई कोई भी देश के लिए शहीद होता है उनके परिवार के लिए कोई सामने नहीं आता, कुछ परिवारों को छोड़ दे तो लगभग हर बार ऐसा ही देखा गया है कि शहीदों के परिवार को बहुत मुश्किल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यहाँ तक की उनके हर छोटी छोटी चीजों के लिए जूझना पड़ता है. जब जवान शहीद होता है तो सरकार वादे कर देती है, कुछ समाज सेवा से जुड़े संगठन भी सामने आते है लेकिन कुछ समय बाद ही सब कुछ ठंडा पड़ जाता है. ऐसा आखिर हमारे ही देश में क्यों होता है कि जो हमारे देश के लिए शहीद हुआ हम उसी के परिवार को सहारा नहीं दे सकते, इस वक़्त हमारे देश की जन संख्या 130 करोड़ है, अगर हर व्यक्ति सिर्फ एक - एक रुपए भी दे तो कुल 130 करोड़ रुपए हम शहीदों के परिवार के लिए खर्च कर सकते है, लेकिन हमसे इतना भी नहीं होता. हम सिर्फ एक दो दिन तक उन्हें याद करते है उसके बाद अपने अपने काम-धंदे पर लग जाते है, मेरा मानना है कि गलती सरकार और हमारे सिस्टम के साथ साथ हम लोगों की भी है जो उनके दर्द को महसूस नहीं कर पाते, हमारे समाज में ही हजारों ऐसे लोग है जिनके पास पैसों की कोई कमी नहीं है, अरे..! थोड़ी मदद उनके परिवारों की आप लोग ही कर दो क्योंकि हमारे देश का सिस्टम तो पूरा ही खराब है लेकिन आप तो अच्छे है, लोगों का दुःख-दर्द समझ सकते हो . आप लोग जैसे कुछ लोग अगर सामने आ जाये तो शहीदों के परिवार को कभी किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े. वैसे भी ये हमारा कर्तव्य होना चाहिए की शहीदों के परिवार की सहायता कर क्योंकि वो शहीद हुए है हमारे लिए, हम सबके लिए. आज बहुत से ऐसे परिवार है जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है सिर्फ हमारे देश के लिए तो अब हमारी बारी है उनके लिए कुछ करने की, ज्यादा नहीं थोड़ा-थोड़ा हर कोई साथ दे तो शहीद का परिवार शायद कठिन परिस्थियों से बाहर निकल सके।