
आज बाज़ारों में अलग अलग तरह की लड़ियाँ,चमकीले बल्ब और सजावट के तमाम समान आ चुके है ऐसे में लोगों के सामने बहुत से विकल्प है तो उनका ध्यान मिट्टी के दियो की तरफ़ जाता ही नहीं क्योंकि वक़्त के साथ साथ अब सजावट के तरीके भी बदल रहे है. लेकिन कभी सोचा है कि उन लोगों के लिए दीपावली कैसे रहेगी जो मिट्टी के दीये बेचकर अपनी दीपावली मनाते है? शायद हमारी वजय से उनकी दीपावली में रोनक नहीं होती, होगी भी कैसे क्योंकि हम उनकी मेहनत को नजरअंदाज करके महँगी और चमकदार लड़ियाँ को खरीद रहे है. हमे ये नहीं भूलना चाहिए की दीपावली का मतलब घर को रोशन करना नहीं बल्कि जरूरतमंद लोगों की जिंदगी में ख़ुशी देना है या यूँ कहे की किसी इंसान के घर पे आपकी वजय से ख़ुशी आये तो मतलब आपकी दीपावली सफल रही है. आज पूरा देश चीनी लड़ियों और पटाखों का बहिष्कार कर रहा है हर तरफ इन समानो पे रोक लगायी जा रही है लेकिन कोई ये नहीं बोल रहा है कि इस दीपावली में मिट्टी के दियो का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करे. यही तो हमारी कमी है कि हम हर बात को सिर्फ एक तरफ से सोचते है , मेरा मानना है कि इस दीपावली उन लाखों लोगों को खुश करते है जो मिट्टी के दिये बेचते है , हमारी ख़रीदारी से उनकी दीपावली बहुत अच्छी गुज़रेगी और उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होगी वो आपको जिंदगी भर याद रहेगी और जब भी आप उन्हें याद करोगे खुद पर गर्व महसूस करने पर मजबूर हो जाओगे। मिट्टी से दीये को बनाना भी एक कला है इस कला की इज्जत करनी चाहिए, इस दीपावली हम चीनी समानों से तौबा कर रहे है, तो हमे एक कदम और उठाना चाहिए की लुप्त हो रही दिये की प्रथा को फिर से उठाया जाये।
दीपावली खुशियों का त्यौहार है सिर्फ अपने घर की ख़ुशी या अपनों की ख़ुशी के लिए इसे मनाने से अच्छा है कि हम सब दूसरों के चहरे पर खुशी लेकर आए, इस दीपावली मिट्टी के दीये घर लायें।
दीपावली खुशियों का त्यौहार है सिर्फ अपने घर की ख़ुशी या अपनों की ख़ुशी के लिए इसे मनाने से अच्छा है कि हम सब दूसरों के चहरे पर खुशी लेकर आए, इस दीपावली मिट्टी के दीये घर लायें।