Saturday, 24 December 2016

जनता को लुभाने की तैयारी...


उत्तराखंड,यूपी, गोवा समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है ऐसे में अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां अभी से जनता को लुभाने की तैयारी में डटी हुयी है। क्या सड़क,क्या पुल,क्या स्टेडियम जो भी मिल रहा है उसका शिलान्यास हो रहा है ऐसा लग रहा है मानो साल भर का काम इन 2-4 दिनों में पूरा करना है। मतलब पार्टियाँ अब हर कीमत पर जनता को लुभाना चाहती है चाहे इसके किये उन्हें कुछ भी करना पड़े। अब जो भी करना है आम लोगों को करना है, इस बात पे ध्यान देना चाहिए की खोखली बातों पर न आएं वरना अपने ही नेता आपके लिए मुसीबत बन जाएंगे।               
                                  हर कोई यही चाहता है कि उसके छेत्र का विकास हो, उसके राज्य का नाम भी देश भर में घूंजे, लेकिन इसके लिए कोई काम नहीं करता। मतलब सब सोचते है लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं करता नतीजा ये रहता है कि राज्य कभी विकास रथ पर सवार नहीं होता और ज्यों का त्यों ही रहता है। आज अगर बात उत्तराखंड की करें तो इस राज्य को बने हुए 16 साल हो चुके है तबसे यहाँ 16 अच्छे अस्पताल तक नहीं है,16 उच्च शिक्षा संस्थान तक नहीं है ऐसे में यही तो माना जायेगा की 16 साल में यहाँ कुछ नहीं हुआ बस सरकार बदली है नेता लोग बदले है। वादें सबके एक ही थे, भाषण सबके एक ही थे और घोषणाएं भी लगभग एक ही थी लेकिन किसी एक ने भी कुछ काम नहीं किया लेकिन अब चुनाव नजदीक है तो फिर से उद्धघाटनों का सिलसिला शुरू हो चूका है, जो फ्लाई ओवर 2-3 साल से जमे हुए थे वो एक महीने में बनकर तैयार हो गए है, जिस स्टेडियम को बनने में सालों लग गए उसके बदले दो स्टेडियम टेगार हो गए वो भी कुछ महीनों में। विकास का हक़ हर किसी का है लेकिन सिर्फ सत्ता पे आने के लिए वोट मांगना भीख मांगने जैसा है, मंत्री बनकर लोगों की सेवा करो तो जिंदगी भर लोग तम्हे याद रखेंगे लेकिन सिर्फ नेतागिरी करोगे तो जिस गली से गुजरोगे वहां गलियां पड़ेगी। उम्मीद है कि इस चुनाव में जनता दिमाग खर्च करके कुछ अच्छे लोगों को राज्य की जिम्मेदारी देगी।

Thursday, 22 December 2016

टूटने लगा है सब्र का बांध..



नोटबंदी को 50 दिन होने वाले है, पिछले डेढ़ महीनों से आम जनता एटीएम और बैंक के बाहर कतारों में खड़ी है, कोई अपनी इच्छा से तो कोई मज़बूरी है लेकिन अब वो वक़्त आ चूका है जब लोगों कुछ रुपयों के लिए कई घंटों तक लाइन में खड़े रहे, अब लोगों में सब्र का बांध डगमगाने लगा है और वो आक्रोशित होते दिख रहे है और हो भी क्यों न क्योंकि वो भी देख रहे है कि कहीं चायवाले के पास से करोड़ों रुपए निकल रहे है तो कहीं बैंक अधिकारी ही नई करेंसी को ठिकाने के लिए हाथ काले कर रहे है। नोटबंदी का फैसला अभी बहुत कुछ दिखाएगा..
     
               मोदी सरकार ने देशवाशियों से  50 दिनों का समय माँगा ताकि वो इन 50 दिनों में स्तिथि को सामान्य बना सके और आम लोगों को थोड़ी रहत दे सके लेकिन ये 50 दिन सरकार और आम जनता दोनों के लिए किसी चुनोती से काम नहीं दिख रही है। आम लोगों के लिए रोज-रोज बैंक और एटीएम के बहार खड़ा होना अब मुश्किल होता जा रहा है और ऊपर से सरकार अभी तक नियम पे नियम बदल रहे है जिससे लोगों में सरकार को लेके और ज्यादा गुस्सा है और हो भी क्यों न एक तो सरकार का इतना बड़ा फैसला ले लिया और ऊपर से नियम पे नियम खोजे जा रहे है ऐसे में आम जनता जाये तो जाये कहाँ ?लोगों की माने तो फैसला अच्छा है लेकिन नियम एक ही होना चाइये था बार बार नियम में बदलाव करने से सिर्फ आम लोगों को दिक़्कतें हो रही है। सरकार अपने फैसले से खुद को बचती भी दिख रही है तो वहीँ विपक्षी किसी भी मौके का फ़ायदा छोड़ना नही चाहते। अब इस घडी में भी पक्ष-विपक्ष करना कहीं की समझदारी नहीं लेकिन यही तो नियम है हमारे देश का।  अभी नोटबंदी ने जन्म लिया है , 50 दिन होने में समय है तो अंदाजा लगाया जा सकता है की नोटबंदी भी बहुत कुछ नया दिखाएगी..... 

Saturday, 17 December 2016

हर तरफ पिंक घोटाला..


बड़ा अजीब देश है हमारा, एक तरफ यहाँ लोगों से देश के विकास की बात बोली जाती है तो दूसरी तरफ कुछ लोग अंदर ही अंदर देश को खोखला करने पे तुले हुए है. जिस बैंक को आम जनता सुरक्षा के लिहाज से अपना समझती है आज वही बैंक में बैठे अधिकारी आम लोगों को धोका दे रहे है. नोटबंदी के बाद से ही आम लोग बैंक के बाहर लंबी लंबी कतारों में लगे है ताकि उन्हें घर चलाने के लिए 2-4 हज़ार रुपये मिल जाये तो वहीँ दूसरी तरफ बैंक के अंदर बैठे अधिकारी आम जनता की रुपए का सौदा कर रहे है.
       इसे नोटबंदी का असर कहें या बैंकों की गलती की आज कालेधन को बढ़ावा देने में जो सबसे आगे खड़ा दिख रहा है वो है बैंक, सुनकर अजीब लगेगा लेकिन ये एक घिनोनी सच्चाई है हमारे देश की जहाँ कालेधन को सफ़ेद करने का सारा दामोदर बैंकों के कंधों पर है. आम लोग सुबह से शाम तक बैंक के बाहर खड़े है तो कुछ बैंक के कर्मचारी और अधिकारी बड़े लोगों के लाखों-करोड़ों रुपए को वाइट करने का काम कर रहे है. नोटबंदी के बाद से अभी तक 12 राज्यों से 400 करोड़ से ज्यादा की ब्लैकमनी पकड़ी जा चुकी है, अकेले चेन्नई से 150 करोड़ के कालेधन का पर्दाफाश हुआ है, मतलब वो लोग पागल है जो कहते थे,"की भारत एक गरीब देश है"। अरे..! हमारा देश बिलकुल भी गरीब नहीं है, यहाँ के बाथरूम से 50 करोड़ रुपए निकलते है और ऑफिस,घरों से 100 करोड़। नोटबंदी के बाद हर तरफ आयकर विभाग की छापेमारी जारी है, कहीं नए करेंसी के करोड़ों नोट मिल रहे है तो कहीं करोड़ों का सोना, एक सवाल तो सबके मन में है कि जब सरकार दावा कर रही है कि बैंकों और एटीएम में कैश नहीं है तो ये करोड़ों नए नोट कहाँ से आ रहे है? आम जनता को तो 2000 रुपए भी मुश्किल से नसीब हो रहे है तो कुछ लोगों के पास नए करेंसी की भरमार है। मतलब साफ है कि कुछ बैंक के अधिकारी भी ऐसे लोगों का साथ दे रहे है जो भ्रस्ट है, कुछ परसेंट का कमीशन लेकर बैंक अधिकारी करोड़ों की ब्लैकमनी को सफ़ेद करने में मदद कर रहे है, ऐसे में वो आम लोगों को धोका दे रहे है, ये कैसा देश में हरा, अभी तो नए नोटों को आए एक ही महीना हुआ है और अभी से नए नोटों की काला बाजारी आसमान छू रही है।

Friday, 9 December 2016

अम्मा जैसा कोई नहीं...

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जिन्हें पूरा देश अम्मा के नाम से भी जानता था, आज देश उनके लिए आसूं बहा रहा है उनके निधन से मानो हर कोई सदमे में है, उनकी लोकप्रियता पूरा देश देख रहा है, तमिलनाडु में जयललिता की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यहां 'अम्मा' या मां का दर्जा मिला हुआ था। एक ऐसा नाम जिसके सामने हर कोई अपना सर झुकता था और झुकाये भी क्यों नहीं क्योंकि जयललिता ने हमेसा गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है, उन्होंने न सिर्फ तमिलनाडु की राजनीती में राज किया बल्कि वहां के हर एक जनता के दिल में भी राज किया और नतीजा ये रहा कि "अम्मा" तमिलनाडु में सिर्फ एक नाम नहीं रहा बल्कि ये एक ब्रांड बन गया। 

           तमिलनाडु की राजनीती में जयललिता का नाम हमेसा याद रखा जायेगा, तीन बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया और हर बार वहां की आम जनता के लिए अपने आप को समर्पित किया। हम सब ने इंद्रा अम्मा भोजनालय का नाम सुना है, ये नाम जयललिता से ही आया है क्योंकि उन्होंने ही गरीब लोगों के लिए एक ऐसे भोजनालय की शुरुवात करी जिसमे मात्र पाँच रुपए में भर पेट खाना मिल सके, इतनी महँगाई में अगर कोई पाँच रुपए में भर पेट खाना खिला दे तो आप उसे जिंदगी भर याद तो रखोगे ही, इसके अलावा उन्होंने अम्मा फार्मेसी की भी शुरुवात की ताकि गरीब लोगों को बेहद सस्ते रुपए में जरुरी दवाईयां मिल सके। उन्होंने हमेसा ही जरूरतमंद लोगों की सहायता की, हमेसा इस बात पे ज्यादा ध्यान दिया की उनके राज्य में हर कोई खुश हाली से जीवन बिता पाये और इसके लिए उन्होंने बहुत से ऐसे कदम भी उठाये जो कोई और सोच भी नहीं सकता. अम्मा नाम तमिलनाडु में इतना ज्यादा लोकप्रिय है कि इस नाम से वहां 80 प्रतिशत मार्केट चलता आया है, अम्मा भोजनालय से लेकर अम्मा लैपटॉप तक हर तरफ़ सिर्फ एक ही नाम,अम्मा। उनके निधन की खबर मिलते है पूरा तमिलनाडु मानो थम सा गया, लाखों लोगों के लिए ये खबर किसी झटके से कम नहीं थी और भी क्यों न क्योंकि जयललिता सिर्फ एक मुख्यमंत्री नहीं थी बल्कि वो तो लाखों-करोड़ों लोगों के लिए अम्मा थी। सच में..! उनके जैसा कोई नहीं हो सकता, उनके जाने का सबको दुःख है क्योंकि वो एक ऐसी सख्सियत थी जिसे हर कोई भगवान मानता था।

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी का एक महीना...

केंद्र सरकार के नोटबंदी फैसले को एक महीने का समय हो चूका है, 8 नवंबर को अचानक जब ये फैसला सामने आया तब पुरे देश में रुपए को लेकर हाहाकार मच उठा, इस एक महीने में हमारे देश में बहुत सी नई तसवीरें सामने आई, कहीं बैंकों में लंबी-लंबी लाईने लगी तो कहीं एटीएम के बाहर लोग कैश के लिए संघर्ष करते दिखे.लड़ते भी दिखे. कुछ नजरें तो सच में अलग ही मिले, कहीं नालों में 500-1000 के नोट तैरते मिले तो कहीं जंगलों में लाखों रुपये से भरे बैग मिले, ये सब तस्वीरें पिछले एक महीने में हमारे देश में देखने को मिली.

        एक तरफ नोटबंदी के फैसले से आम लोग खुश दिखे तो विपक्षी पार्टियों में इसके ख़िलाफ़ आक्रोश दिखा, लेकिन सच्चाई ये भी है कि जनता के हित में लिया गया ये फैसला कहीं न कहीं जनता को ही भारी पड़ रहा है क्योंकि पिछले एक महीने से हिन्दुस्तान एटीएम और बैंक के बाहर खड़ी दिख रही है। केंद्र सरकार ने कालेधन को खत्म करने के लिए ये कदम तो उठाया लेकिन जो होमवर्क उन्हें करना चाहिए था वो उन्होंने नहीं किया और नतीजा हम सब देख रहे है कि आज आम जनता छोटे नोट के लिए इधर-उधर भटक रही है. नवंबर का महीना देश भर में कालाधन रखने वालों के लिए बुरा वक़्त लेकर आया, सही मायनों में तो दिवाली इस महीने हुई है, कालेधन वालों के ऊपर मोदी सरकार ने जो पटाखा फोड़ा है उसकी गूँज हमेसा उनके कानों पर रहेगी। लेकिन एक बात बड़ी अजीब सी लगी कि कुछ समय पहले तो हर कोई मोदी सरकार को कालेधन को खत्म करने के लिए गुज़ारिश कर रहा था, और जब इसके लिए मोदी सरकार ने ठोस कदम उठाया तो हर कोई इसपे टिप्पणी करने लग गया, इस तरह का कदम उठाना हमारे देश के लिए बहुत जरुरी हो चूका था क्योंकि कालेधन रखने वाले एक दीमक की तरह देश को अंदर से खोकला कर रहे थे ऐसे में नोटबंदी से उनपर कुछ लगाम को ज़रूर लगेगी। इस फैसले का हम सब स्वागत करते है क्योंकि देश के आने वाले बेहतर कल के लिए ये फैसला बिल्कल सही है।

Monday, 5 December 2016

श्रद्धांजलि नहीं सुरक्षा चाहिए...

बहुत बर्दाश कर लिया..बहुत आसूं बहा लिए..बस अब आर-पार की लड़ाई चाहिए..!! ये बात पूरा हिंदुस्तान बोल रहा है, 125 करोड़ भारतियों की एक ही तम्मना की पाकिस्तान के साथ भी वैसा ही किया जाये जैसा हमारे साथ होता रहा है, पाकिस्तान की तरफ से आतंकी हमला और गोलाबारी अब भारतीय सेना के लिए आम बात हो चुकी है, पाकिस्तान ने एक मुल्क होने का हक़ खो दिया है, रोज़ाना वो हमारे वीर सपूतों पर गोलियां बरसा रहे है और हम अपने जवानों को खो रहे है. आज वीर जवानों की शाहदत पर सब गर्व कर रहे है और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे है लेकिन सच कहूँ तो हमारे जवानों को श्रद्धांजलि नहीं बल्कि सुरक्षा चाहिए. 
        कभी सोचा है कि सिर्फ हिंदुस्तानी फ़ौज ही हमेसा हमलों की शिकार क्यों बनती है?इतने बड़े देश की सुरक्षा करने वालों को हम इतने जल्दी कैसे खो देते है?क्या हमारी सरकार इतनी कमज़ोर है कि वो हमारे जवानों की सुरक्षा तक नहीं कर सकती? बड़ा अफ़सोस होता है देखकर कि हम शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दे देते है, उनके लिए कैंडल मार्च करते है लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाते. करोड़ों-अरबों रुपए है हमारी सरकार के पास,आधुनिक टेक्नोलॉजी भी है लेकिन बावजूद इसके हमारे जवानों के पास कुछ ऐसी सुरक्षा नहीं है जिससे वो अपनी जिंदगी को सुरक्षित कर सके, न जवानों को बुलेट प्रूफ कवच दिया गया है न ही आधुनिक हतियार ऐसे में सिर्फ ऐके-47 से कैसे लड़ेंगे हमारे जवान, जरा सी चूक और आतंकी हमला..पहले पठानकोट हमला, फिर उड़ी में सेन्य आतंकी हमला और उनके बाद अब नगरोटा में आतंकी हमला, आतंकवादी हमला तो मानो पाकिस्तान के लिए बहुत छोटी बात है जिसे वो आये दिन अंजाम देते है और हिंदुस्तान आये दिन झेलता है लेकिन कब तक? उनके बलिदान को व्यर्थ क्यों जाने दे, वक़्त आ गया है कि हमारे जवानों को आधुनिक हथियार दिए जाये और उनकी सुरक्षा को बढ़ाया जाए क्योंकि वो सुरक्षित रहेंगे तो हमारा देश सुरक्षित रहेगा।

Friday, 2 December 2016

हम किसी से कम नहीं...


आज विश्व दिव्यांग दिवस है, दिव्यांग लोगों के लिए ये दिन बेहद ख़ास माना जाता है क्योंकि इस दिन शारीरिक रूप से कमज़ोर लोगों को बढ़ावा दिया जाता है और कोशिश की जाती है कि उन लोगों की जिंदगी में थोड़ी ख़ुशी लाई जाये, दिव्यांग लोगों को हमारे समाज में क्रूरता की नज़र से देखा जाता है, उनके शारीरिक क्षमता का भी मज़ाक बनाया जाता है जो की बहुत गलत बात है क्योंकि वो भी इंसान ही है, ईश्वर में सबको एक समान बनाया है तो उस ईश्वय के इन इंसानों से दूरी क्यों?
              आज दिव्यांग बच्चे हो या युवा हर कोई अब इस समाज को समझ रहा है और हर छेत्र में आम युवायों की तरह आगे बढ़ रहा है, ऋषिकेश में एक स्पेशल स्कूल है जिसमे बहुत सारे दिव्यांग बच्चे पढ़ाई करते है और उन्हें वहां आम बच्चों की तरह सिखाया जाता है और समाज में खड़े होने के काबिल बनाया जाता है, यहाँ से बच्चे पढ़-लिखकर अब आम जिंदगी गुजार रहे है. ऐसे ही बहुत से स्कूल हमारे देश में हैं, जो शारीरिक रूप से कमज़ोर बच्चों को नई जिंदगी देने का काम कर रहे है, हम सबने इस साल रियो पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन देखा, रिओ पेरालंपिक में भारतीय एथलीट ने कमाल का प्रदर्शन करके ये साबित कर दिया की हम किसी से कम नहीं..हमारे देश में अजीब सी परंपरा है यहाँ सिर्फ उन्हीं लोगों को पूछा जाता है जो बिलकुल ठीक-ठाक होते है क्योंकि हमारी सोच है कि जो शारीरिक रूप से कमजोर है तो वो और क्या कर सकते है। यही सोच को बदलने की जरूरत है, अगर हम थोड़ी सोच को बढ़ाकर दिव्यगों के लिए थोड़ा आगे आए तो इनको नई जिंदगी मिल सकती है और हमारे देश का विकास भी होगा. एक अच्छी बात ये भी है कि सरकार अब इनकी तरह ध्यान दे रही है और इनके लिए अनेकों कदम उठाये जा रहे है, इससे इनका बहुत भला होगा बस अब जरुरत है आम लोगों को इनके साथ देने की, लेकिन एक बात याद रखने लायक है कि इनको दया नहीं साथ चाहिए, आपका साथ..हम सब का साथ..