Sunday, 12 February 2017

मौसम न बन जाए रोड़ा..

देश में इस वक़्त चुनावी मौसम बना हुआ है,चुनावी सरगर्मियां भी तेज़ हो चुकी है लेकिन उत्तराखंड,मणिपुर जैसे राज्यों में लगातार बारिश और बर्फ़बारी हो रही है ऐसे में यहाँ का मौसम चुनाव में दिक्कत पैदा कर सकता है। ख़ासकर उत्तराखंड में 12 से 16 फरबरी तक जबरदस्त हिमपात होता है, बहुत से मतदान केंद्र ऐसे जगह बने है जहाँ बर्फ़बारी लोगों और प्रशाशन को मुसीबत में डाल सकती है। मतलब साफ है कि मौसम की वजय से मतदान की डगर कठिन हो सकती है।
                     फरबरी का माह भले भी बाकि राज्यों के लिए खुशनुमा मौसम लेकर आये लेकिन उत्तराखंड में स्तिथि कुछ और देखने को मिलती है। उत्तराखंड में आगामी दिनों में मौसम करवट बदल सकता है, मैदानी इलाकों में बारिश तो पहाड़ी इलाकों में बर्फ़बारी हो सकती है ऐसे में मतदान केंद्रों पर प्रशाशन ने अपनी नजऱ पैनी कर दी है। प्रशाशन भी इस बात से अवगत है कि कुछ छेत्रों में भारी बर्फ़बारी से लोगों को मतदान केंद्रों तक पहुँचने में काफी दिक्कत आ सकती है ऐसे में प्रशाशन ने भी अपनी तरफ से कमर कस ली है लेकिन वो इन परिस्थितियों से कैसे निपटेंगे ये तो वक्त आने पर ही पता चल सकेगा।मौसम का मिज़ाज  देखा जाये तो इस साल शुरुवात से ही उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में जमकर बर्फ़बारी हुई है जो की पर्यटन के लिहाज़ से अच्छी खबर है लेकिन चुनाव को देखते हुए बर्फ़बारी प्रशाशन के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। कुछ मतदान केंद जहाँ स्तिथ है वहां 4 से 6 फ़ीट तक बर्फ गिरती है और इस वक़्त भी बहुत जगहों पर बर्फ़बारी हो रही है। पंजाब और गोवा में तो इलेक्शन शांतिपूर्ण तरीके से हो गए अब उत्तराखंड,यूपी, मणिपुर की बारी है। मौसम मेहरबान हुआ तो उत्तराखंड और मणिपुर में भी चुनाव सही ढंग से खत्म हो जायेंगे।

Wednesday, 8 February 2017

कितने तैयार है हम..?


6 फरबरी रात 10:35 जब पूरा देश सोने की तैयारी कर रहा था, तभी उत्तरभारत में धरती डोलती महसूस हुई। हिमांचल प्रदेश से लेकर पंजाब तक अफरा-तफरी मच उठी, लोग सड़कों पर उतर आये। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग बताया गया जिसकी तीव्रता 5.7 मापी गई। माना जाता है कि इस रेक्टर स्केल के भूकंप विनाशकारी नहीं होते लेकिन जब धरती डोलती है तो उस वक़्त वो सब कुछ तबाह कर देती है, इसके लिए प्रशाशन के साथ-साथ आम लोगों को भी जागरूक होने कु जरूरत है।भूकंप बड़ा हो या हल्का, बड़ा सवाल ये उठता है कि हम इसके लिए कितने तैयार है?भविष्य में अगर कभी बड़ा भूकंप आता है तो क्या हम नुक्सान से खुद को और अपने परिवार को बचा सकते है?
           ये पहली बार नहीं हुआ की हिमालय छेत्र में धरती काँपी हो, इससे पहले भी बहुत बार हिमालय छेत्र भूकंप की वजय से प्रभावित होता आया है जिसका असर 300 किमी दूर दिल्ली तक देखा गया है। कुछ लोग मानते है कि भूकंप जमीनी सतह हिलने की वजय से आते है जबकि कुछ लोग बढ़ते प्रदूषण और मौसम के बदलाव को इसकी वजय बताते है, कारण जो भी हो असल बात ये है कि हम भूकंप से निपटने के लिए  कितने तैयार है क्योंकि हम लोग तभी हरकत में आते है जब नुक्सान हो चूका होता है। हमारे पडोसी देश नेपाल ने पिछले सालों जो भूकंप से दर्द सहा है वो सबने महसूस किया, पलक झपकते ही नेपाल की तस्वीर बदल गई थी, तेज भूकंप के झटकों से नेपाल इस तरह हिला की वहां सब कुछ तबाह हो गया, न प्रशाशन को कुछ समझ में आया न आम लोगो को। ऐसे ही बहुत बार देखने को मिला जब - जब धरती आक्रोश दिखती है तब-तब इंसान परित्थितियों के सामने झुकता है। आज हमारे पास बहुत से भू वैज्ञानिक है लेकिन वो भी आने वाली इस तबाही के बारे में नहीं बता पाते साथ में SDRF, NDRF की टीम है लेकिन वो तबाही के बाद हरकत में आती है। सबसे पहले हम लोगों को ही एतियात बरतने की जरूरत है, भूकंप जैसी स्तिथि में घबराने की जगह शांति से खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित बनाये और कोशिश करें की जल्द से जल्द खुले मैदान में पहुँचे,आपातकालीन नंबर हमेसा अपने पास रखे और भगदड़ न मचाए।

Saturday, 4 February 2017

ईवीएम में कैद होती किस्मत..


पंजाब और गोवा के बाद अब बारी है यूपी,उत्तराखंड की। जहाँ यूपी में 404 सीटों के लिए मतदान होने है तो वहीँ उत्तराखंड में 70 सीटों के लिए जंग जारी है। रणभूमि तैयार है, सारे प्रतिनिधि चुनावी जंग में कूद चुके है, हर कोई जानता से वादे करता और उन्हें अपने भरोसे में लेने की कोशिश में जुटा है। लेकिन पाँच सालों का हिसाब-किताब अब जनता के हाथों पर है कि वो किसको चुनते है और किससे बदला लेते है, जितने उम्मीदवार है उनकी किस्मत ईवीएम में कैद होने वाली है जिसका ख़ुलासा परिणाम आते ही हो जायेगा।
           फरबरी और मार्च का माह इस बार चुनाव लेकर आया है, विधानसभा चुनाव की शुरुवात पंजाब और गोवा से हो चुकी है वहां 80 प्रतिशत वोट पड़े है, लोगों ने अपने मत का इस्तमाल करके समाज और अपने देश के लिए काम किया है। आज से 2 दशक पहले की बात करे तो तब ईवीएम जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन कहते है वो नहीं हुआ करता था, तब जनता मुहर और अंघुठे से अपना प्रतिनिधि चुनती थी लेकिन वक़्त के साथ-साथ ये परंपरा भी बदली और ईवीएम से चुनाव को जोड़ा गया।ईवीएम के आने से मतदातायों को वोट देने में काफी आसानी हुयी है, अब तो सिर्फ मतदान केंद्र में जाना है तो अपने पसंदीदा प्रतिनिधि के चुनाव चिन्ह वाले बटन को दबाना है, इससे प्रतिनिधियों की किस्मत का फैसला उस ईवीएम में कैद होती है।