Saturday, 30 July 2016

कुछ तो लोग कहेंगे,लोगों का काम है कहना...


बचपन से हम ये सीखते है की हमेसा अकेले ही आगे बढ़ना चाहिए, लोगों की क्या सुननी वो तो हमेसा ही बोलते है, जिंदगी में जब कोई इंसान कामयाब होता है उसके चरित्र पे तभी सवाल उठते है,वरना लोगों को कोई मतलब नहीं, लोगों को तो बस बातें बनाने के लिए चाहिए। सीधी बात है अगर आप सामान्य व्यक्ति है तो ठीक,लेकिन अगर आपका समाज में नाम, रुतबा, इज्जत है तभी आपके ऊपर लोग सवाल खड़े करते है, कुछ झूठ बोलते है तो कुछ, तो कुछ दूसरों का सुना हुआ,लेकिन हमे उन सबकी कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि लोग तो बोलेंगे ही लोगों का काम है बोलना।
                    किसी ने सही कहा है", अगर आपका कोई दुश्मन नहीं है या कोई आपसे जले नहीं तो आप जिंदगी में कुछ ख़ास नहीं कर रहे हो"। कुछ अच्छा काम करो तो बस कुछ ही लोग पूछते है लेकिन कुछ गलत काम में नाम आ जाए तो पुरे मोहल्ले में आग की तरह बात को फैलाया जाता है,और ऊपर से कुछ लोग अपनी मर्जी से दो बातें जोड़ देते है। हम हमेशा काम करते हुए खुद की नहीं बल्कि दूसरों की सोचते है, की लोग क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे? हम इसी सोच के साथ काम करते है। ये प्रथा काफी समय से चली आ रही है, हमारे समाज के लोग, पडोसी, रिश्तेदार सब सुझाव देने में आगे रहते रहते है इसका ये मतलब नहीं की वो हमारा भला सोचते है, या हमारी खुशि से खुश होते है।अकसर देखा जाता है की हम कुछ काम करने की सोचते तो है मगर लोग क्या कहेंगे ये सोचकर उस काम को मन में ही मार देते है, क्योंकि हम अपने काम से ज्यादा दूसरों की बातों को महत्वता देते है। लोग क्या कहेंगे क्या सोचेंगे? इसे उन पर ही छोड़ देना चाहिए, सच्चाई ये है की 2 दिन तक सब में जोश रहता है सब बोलते है उसके बाद सब अपनी-अपनी जिंदगी की भागदौड़ में व्यस्त हो जाते है और सब कुछ भूल जाते है। जिंदगी में हम बहुत बार ऐसे मोड़ पे आ जाते है जब हमे बड़ा कदम उठाना पड़ता है, ऐसे वक़्त पे बस अपनी मंजिल के बारे में सोचना चाहिए दुनिया वाले क्या सोचेंगे ये उन्हें ही सोचने दो।

Wednesday, 27 July 2016

पढ़ाई पूरी..पर कहाँ है नौकरी ?



एक जमाना था जब हाई स्कूल को उच्च शिक्षा समझा जाता था, जो 10वीं पास होते उन्हें अच्छी जॉब भी आसानी से मिल जाती थी । फिर समय आया जब ग्रेजुएशन के तुरंत बाद नौकरी मिलना आम बात हुआ करती थी लेकिन अब ऐसा समय आ चुका है की ग्रेजुएशन पूरा करने के बावजूद युवाओं को नौकरी नहीं मिल पा रही है। हर कोई सरकारी या उच्च प्राइवेट विभाग में घुसना चाहता है,चाहे उनके लिए कैसा भी रास्ता अपनाना पड़े। हालात कुछ ऐसे है की वो मुहावरा याद आ जाये " एक अनार सौ बीमार" क्योंकि जगह कम है और उन्हें भरने वाले बहुत  ज्यादा। अगर कोई विभाग 1 पोस्ट के लिए नौकरी निकलता है तो उस एक पोस्ट के लिए हजारों की संख्या में आवेदन पात्र जमा हो जाते है।जिस तरह बेरोजगारी एक बीमारी की तरह फ़ैल रही है उससे आने वाले सालों में हमारे देश में युवाओं की स्तिथि क्या होगी इस बात का अंदाज लगाया जा सकता है। लगातार बढ़ती जनसँख्या के चलते आज पढ़ाई पूरी करने के बावजूद भी नौकरी के लिए पापड़ बेलने पड़ते है, दिन रात काम की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ रहे है।
        नौकरी की तालाश में बहुत से लोग अपने घर से दूर होने को मजबूर हो रहे है लेकिन हमारी सरकार और उसका सिस्टम दोनों को शयद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।आजकल हालात यूँ है कि इंजीनियरिंग करने के बावजूद युवाओं को किसी दुकान जैसे ऑफिस में 7-8 हजार की नौकरी करनी पद फाई है। सिर्फ 7-8 हजार ,अरे पूरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने में घरवालो के 5-6 लाख रुपए लग जाते है और बदले में नौकरी मिलती है 7-8 हजार की, इतनी बढ़ती महँगाई में ये सैलरी मानो ऊँठ के मुँह में जीरा.. इसी के चलते हमे रोजाना खबरें भी देखने को मिलती है कि बेरोजगार युवाओं ने किया धरना प्रदर्शन । वो इसलिए क्योंकि जब इतनी महंगी पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी नहीं तो पढ़ाई इतनी महंगी क्यों? फिर धरना के साथ सरकार से नौकरी की मांग। मांग भी किस से सरकार से? सचाई तो ये है की सरकार भी इसमें क्या करे वो तो अपने नेताओं को ही नहीं संभाल पा रही है वो इतने बेरोजगारों की जिंदगी क्या सभालेंगे। लेकिन सरकार से मदद मानते ही सरकार सबसे पहले आस्वासन देती है फिर 2-3 घोसनाएं करती है, उसके कुछ समय बाद वो घोसनाएं एक कोल्ड कॉफी की तरह ठंडी हो जाती है। 

     हमारे देश का सिस्टम ही अलग है। माननीय मोदी जी कहते है सब पड़ेंगे तभी भारत आगे बढेगा। मगर हालात ऐसे ही रहे तो कैसे भारत का विकास होगा। सुस्त सिस्टम, ढीली सरकार और उसके ऊपर आरक्षण नाम का बम । देश को आगे लेकर जाने के लिए हर किसीका विकास होना जरूरी है, सिर्फ नयी स्कीम, प्रोजेक्ट और सिस्टम से कुछ नहीं होगा। हमारे देश में युवाओं की संख्या करोड़ों है, सरकार को इनके उज्जवल भविष्य के लिए कुछ न कुछ ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

इम्तहां हो गयी इंतजार की...

आज से 80-90 साल पहले अंग्रेजों द्वारा पहाड़ों को रेल सुविधा से जोड़ने की बात कही गयी थी, मगर इतने सालों के इंतजार के बाद भी आज तक ये काम महज फ़ाइलों में ही सिमटा हुआ है। इतने साल बीत गए, इतनी सरकारें आके चली गयी मगर उत्तराखंड के पहाड़ों पर रेलगाड़ी का सपना आज भी सपना ही है। चाय की ठेल्ली लगाने वाले से लेकर सरकार के सबसे बड़े अधिकारी तक सब इस बात को भलीभांति जानते है की पहाड़ों पर रेल सुविधा का आना हर तरह से राज्य के आर्थिक, और पर्यटन के लिए कितना लाभदायक है, लेकिन सुस्त सिस्टम के चलते पहाड़ अभी तक रेल सुविधा से अछूते है। बात करे अगर उत्तराखंड की तो ऋषिकेश से कर्णप्रयाग और टनकपुर से बागेश्वर तक का रेल सुविधा का काम शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अगर उत्तराखंड को ये रेल सुविधा मिल जाये तो यहाँ की आर्थिक वयवस्था से लेकर पर्यटन कारोबार तक सब में चार चाँद लग सकता है। उत्तराखंड में हर साल करोड़ों पर्यटक पहाड़ों की तरफ आते है क्योंकि यहाँ की खूबसूरती किसी से छुपी नहीं है ऐसे में पर्यटकों को रोड से आना पड़ता है, जिसमे हादसे होने का डर भी रहता है, क्योंकि मानसून के समय में पहाड़ों की हालात बद से बदतर हो जाती है और सड़को का तो क्या कहना। ऐसे में रेल सुविधा होने से पर्यटक पहाड़ों की खूबसूरती का अच्छे से दीदार कर सकेंगे, आखिर उन्हें भी अपने पूरे पैसे वसूल करने होते है। उत्तराखंड सिर्फ खूबसूरत पहाड़ों से भरा नहीं है, इसके साथ साथ यहाँ का शांत वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा से ही पर्यटकों को भाता है यही कारण है की यहाँ पयर्टकों के आने का सिलसला सालभर लगा रहता है। रेल सुविधा आजाने से यहाँ पर्यटकों की संख्या में इजाफ़ा तो होगा ही साथ ही यहाँ के लोगों को आर्थिक मदद भी मिलेगी।एक तो वैसे ही सरकार पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने में असमर्थ साबित होती आ रही है, ऊपर से पहाड़ों पे रेल सुविधा का ना होना पलायन को एक तरह से बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि रेल सुविधा के आने से पहाड़ों में रेह रहे लाखों युवाओं को रोजगार भी मिल सकता है। उत्तराखंड के पहाड़ भले ही उद्योग के छेत्र में पिछड़े हो लेकिन ये वन संपदा, प्राकृतिक दौलत और औषधीय वनस्पतियों से भरपूर  हैं। अगर इन सभी वस्तुओं का सही तरीके से दोहन किया जाये तो उत्तराखंड, भारत के सबसे विकसित प्रदेशों में अपना नाम दर्ज करा सकता है। इसलिए पहाड़ों तक रेल सुविधा उत्तराखंड के लिए कारीगर साबित हो सकती है।
                 पहाड़ों को रैल सुविधा देना एक ऐसा सपना था जो अंग्रेजों ने पहाड़ को लगभग 100 साल पहले दिखाया था। पहाड़ों को भी लगा था की अब शायद हमारे अच्छे दिन आएंगे, मगर सरकार और अधिकारीयों की लापरवाही के चलते उत्तराखंड के पहाड़ आज तक रेल सुविधा का बस इंतजार करने को मजबूर है । अब तो पहाड़ भी थक कर बोल रहे है", इम्तहां हो गयी इन्तजार की.......

Sunday, 24 July 2016

कण-कण मे भगवान शिव

सावन का महीना आते ही शिव भक्तो मे नया जोश ओर उमंग उठने लगती है ओर अपने छेत्र से बड़ी संख्या मे कावड यात्रा पर निकल पड़ते है। इनका पहला पड़ाव होता है हरिद्वार जंहा हरकी पोड़ी पर स्नान करके ये आगे ऋषीकेश पहुचते है, ऋषीकेश मे स्वर्गाश्रम से शुरु होती है नीलकंठ महादेव की यात्रा। इस यात्रा मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,हरियाणा,राजस्थान ओर पंजाब से लाखो की संख्या मे श्रद्धालु नीलकंठ महादेव पर जल चडाने आते है ओर भगवान् शिव इनकी मन्नतो को पूर कर देते है। मान्यता है कि उत्तराखंड के कण-कण मे भगवान शिव  का वास है हिमालय शिव परिवार का वास स्थान है यहाँ की यात्रा ओर यहाँ के दर्शन मात्र से भक्तो के सभी दुःख दूर हो जाते है,पुराणो में कहा की सबसे पहले कावड़ भगवान परशुराम ने उठाई ,आज उस परम्परा को शिवभक्त निर्बाध रूप से चला रहे है वेद पुराणो में मान्यता है कि  सावन के महीने मे  शिव परिवार की आराधना की जाती है चतुर्थ मास के इन चार महीनो मे शिव परिवार पर ही पूरी सृष्टी  को चलाने का भार रहता है यही कारण है सावन के महीने मे भगवान् शिव की पूजा की जाती है और शिवालयों पर जल चढाने ने भगवान शिव प्रसन्न होते है। 


Saturday, 23 July 2016

पहाड़ों पर तबाही की बरसात

हर साल की तरह इस बार भी उत्तराखंड के पहाड़ों में बरसात आफत बनके बरस रही है। 2013 की आपदा के जख्म अभी भर ही रहे थे की कुदरत ने एक बार फिर पहाड़ों में अपना तांडव दिखाना शुरू कर दिया है। लगातार हो रही बारिश से अब मैदानी इलाक़ों में भी बाढ़ जैसी स्तिथि बन रही है।  प्रशाशन हर बार की तरह खुद को पूरी तरह से तैयार मान रहा है, तो फिर क्यों तस्वीर इतनी भयानक बन जाती है।