Saturday, 22 April 2017

जल्लीकट्टू अत्याचार..तो गौहत्या क्यों नहीं?

बड़ा अजीब देश है हमारा, एक तरफ जल्लीकट्टू को जानवरों पर अत्याचार मानते हुए इसे सरकार ने प्रतिबंदित कर दिया है, तो इसी देश में आज भी गौहत्या पर सरकार खामोश हो जाती है। गौहत्या के लिए न सरकार कुछ बोलती है न ही कुछ सख्ती दिखती है। जल्लीकट्टू पर हर कोई राजनीती कर रहा है, हर मुँह अपनी बात रख रहा है तो दूसरी तरफ गौहत्या पर सब ख़ामोशी से मुँह ढकते फिरते है। जल्लीकट्टू के लिए लाखों लोग एक जुट है तो फिर गौहत्या के विरोध में एक क्यों नहीं होते?
         जल्लीकट्टू 2000 वर्ष पुरानी परंपरा है, जिसमे बेलों को सींग या पूंछ से पकड़कर काबू में किया जाता है, इस दौरान बहुत से बेल घायल हो जाते है और दौड़ते हुए लोगों को भी घायल कर देते है, लेकिन फिर भी जल्लीकट्टू को एक परंपरा के रूप में देखा जाता है इसलिए हजारों लोग आज सरकार से इसपे लगे प्रतिबंद को हटाने की मांग कर रहे है। साउथ में हजारों लोग प्रदर्शन में जुड़ चुके है जिसमे बड़े-बड़े उद्योगपति, तमिल सुपरस्टार्स और आम लोग शामिल है। जरा सोचिए कि जल्लीकट्टू के लिए दक्षिण भारत में हर कोई एक साथ खड़ा है तो गौहत्या को रोकने के लिए सब ऐसे ही साथ खड़े क्यों नहीं होते? एक बड़ा सवाल मन में आता है कि अगर जल्लीकट्टू अत्याचार है तो गौहत्या अत्याचार में क्यों नहीं आता? भारत एक ऐसा देश है जहाँ गाय को भगवन का दर्जा दिया जाता है, उसकी पूजा की जाती है,उसे गौमाता कहा जाता है लेकिन बड़े शर्म की बात है कि इसी भारत देश में गौहत्या भी सबसे ज्यादा की जाती है। सिर्फ भाषणों में गाय को सम्मान दिया जाता है, हक़ीक़त तो बेहद शर्मशार करने वाली है। इस देश में नेता लोग सिर्फ वोटबैंक भरने के चक्कर में भागते है, ये अब साफ़ देखा जा रहा है क्योंकि जल्लीकट्टू के लिए कोई भी नेता अपने वोटबैंक को नाराज नहीं करना चाहता इसलिए नेता लोग भी जल्लीकट्टू के लिए हाँ में हाँ मिला रहे है। बड़े-बड़े धर्मगुरु और साधू-संत भी ये मानते है कि गौहत्या बड़े शर्म की बात है, खासकर भारतीय संस्कृति में तो गौहत्या को महापाप माना जाता है लेकिन यहाँ फिर भी ये घिनोना पाप रोजाना होता है। गाय में सबको भगवान दिखता है लेकिन सड़क पर आवारा घूमती गाय किसी को नहीं दिखती,न कोई खाना देता है न ही रहने के कुछ इंतजाम करता है। हम रोज कहीं न कहीं देखते है कि बहुत सी गाय सड़क पर आवारा घूमती है इनके लिए किसी एक के भी कदम आगे नहीे बढ़ते लेकिन हाँ गौहत्या को पाप मानने वाले करोड़ों लोग है। अब गौहत्या के लिए भी एक ऐसे ही एक्शन की जरूरत है क्योंकि सिर्फ भाषणों से कुछ नहीं हो पायेगा। जल्लीकट्टू पर सरकार ने जो सख्ती दिखाई है यही सख्ती सरकार को गौहत्या के लिए भी दिखने की जरूरत है।
राहुल नेगी,ऋषिकेश

इस महँगाई का क्या होगा?


हमारे देश भारत में जितनी भाषाएँ है उससे ज्यादा यहाँ समस्याएं है। यहाँ करोड़ों की आबादी रहती है, जिसमे अमीर ,सामान्य और गरीब ये तीन तरह के लोग रहते है। पैसे वाले तो ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करते है लेकिन सामान्य और गरीबी में जी रहे लोगों का जीवन इस बढ़ती महँगाई की वजय से बहुत संगर्ष भरा हो जाता है। आज की तारीख में आम जनता के लिए जो सबसे ज्यादा सरदर्द बना है वो है लगातार बढ़ती मेहंगाई, कुछ दिन सब सामान्य चलता है फिर अचानक से कुछ न कुछ महंगा हो जाता है, अब घरेलू स्लेंडर की कीमत को ही देख लो 200 से शुरू हुई थी आज की तारिख में 740 रुपए हो गयी है। देश आगे बड़े न बड़े, मेहंगाई तो मानो दिन दुगनी रात चौगुनी की गति से बड़ रही है और ये जनता भ्रस्ट सरकार से उम्मीद लगाई बेठी है की उनकी सरकार मेहंगाई कम करेगी।        भारत में करोड़ों लोग इस मेहंगाई के कारण बेहद परेशान रहते है,इस मेहंगाई में 2 वक़्त की रोटी भी मानो चुनोती लगने लगी है। आज मेहंगाई आसमान छू रही है। रोटी, दाल, सब्जी,पेट्रोल, घर और यहाँ तक की पढ़ाई भी अब हर किसीके बसके बात नहीं रही। पिछले 10 सालों में दाल, सब्जी और तेल की कीमतों ने सबको रुलाया है और आज तक रुला रही है और अब तो घर में उपयोग में आने वाली रसोई गैस भी 700 से ज्यादा रुपए की हो चुकी है अब गरीब के घर चुल्हा कैसे जलेगा इस बारे में कोई नहीं सोचता। हम सरकार बरोसे बेठे है और वो भगवान बरोसे। जब नयी सरकार आती है तो वादे तो ऐसे करती है की मानो मेहंगाई बस इनके आने से ही भाग जायेगी, लेकिन कुछ सालों में मेहंगाई भागे या ना भागे सरकार जरूर भाग जाती है। आज बढ़ती मेहंगाई से गरीब लोगों को खाना तक नसीब नहीं हो पता, शिक्षा को तो भूल ही जाओ तो बेहतर है। आज बाजार में एक रोटी की कीमत 8 रुपए हो गयी है, बच्चों को स्कूल कैसे भेजे वहां तो हर क्लास में हजारों रुपए लग जाते है। मेहंगाई की असल वजय है भ्रस्टाचार और हमारी सरकार। रोजाना टीवी और अख़बारों में हम देखते है की सरकारी गोदान में लाखों क्विंटल गेंहू, चीनी,प्याज,आलू रखे रखे ख़राब हो जाते है तो कभी बरसात या ठण्ड की वजय से सड़ जाते है। सरकार इन चेजों पे बिलकुल ध्यान नहीं देती वरना लाखों का अन्न यूं ही बर्बाद नहीं होता। ये तो रही सरकार की अनदेखी अब बात करे अगर कुछ अधिकारीयों की तो मेहंगाई को आसमान तक पहुचाने में इनका बेहद खास योगदान रहा है। अधिकारीयों की अनदेखी और सुस्ती की वजय से ही घोटाले होते रहे है जिनका असर आम लोगों पे पड़ता है।आज मेहंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित निचले क्रम के लोग हो रहे है,क्योंकि अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब ओर ज्यादा गरीब । इस बात का असर सरकार या ऊपर बेठे अधिकारीयों को बिलकुल नहीं होता क्योंकि उनकी जेबों में इतना ज्यादा पैसा होता है की मेहंगाई नाम की बीमारी उनके पास भी नी भटकती। सरकार का काम ही होता है जनता के लिए सोचना, उनकी तकलीफों को दूर करना। अरे!हम कौन सा सारी चीजों को जनता के लिए फ्री करने के लिए बोल रहे है, बस इतनी की आस है सरकार से की इस बढ़ती मेहंगाई को रोके क्योंकि जिस गति से मेहंगाई बड़ रही है उससे आने वाले सालों में आम जनता को दो वक़्त की रोटी के लिए भी बहुत मसक्कत करनी पड़ेगी।

भारतीय फिल्मों का होली से गहरा नाता...

होली का त्यौहार रंगों और खुशियों का ऐसा त्यौहार है जिसमे हर कोई अपने गम भुलाकर इसमें खोने को मजबूर हो जाता है। रंगों के इस त्यौहार का रंग सिर्फ हमारी जिंदगी में ही नहीं है बल्कि भारतीय फिल्मों में इसका रंग हमेसा से पड़ता आया है। भारतीय फिल्मों का होली से बेहद पुराना रिश्ता है। होली ऐसा त्योहार है, जो भारतीय सिनेमा के कई महत्वपूर्ण दृश्यों और चरित्र के निर्माण में मददगार रहा है, देश का मुख्य त्योहार होने की वजह से हिंदी सिनेमा में इसे समय-समय पर महत्वपूर्ण स्थान मिला है.हिंदी फिल्मों में होली गीतों का तड़का सिनेमा के बेहद शुरुआती दौर से लगता रहा है. यह रिश्ता भारत की आजादी से पहले का है.
                70 दशक की मशहूर फिल्म, कटी पतंग का वो गीत कौन भूल सकता है," आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेंलेंगे हम होली" जिसने भारतीय सिनेमा में इस त्यौहार का स्थान पक्का कर दिया था उसके बाद तो मानो 'होली' के बिना हिंदी फिल्मों को सोचना मुमकिन न था। हिंदी फिल्मी जगत में 80 के दशक को होली के लिए महावर्ष कहा जा सकता है. इस दशक में हिंदी सिनेमा ने होली का जमकर इस्तेमाल किया. साल 1981 मेें फिल्म सिलसिला का गीत 'रंग बरसे भींगे चुनर वाली रंग बरसे' लगभग हर ऊंचाई हासिल कर चुका था और इस होली के तड़के के बाद से ही रेखा और अमिताभ की जोड़ी भी भारतीय सिनेमा जगत में मानो एक मिसाल बनती दिखी। उसके बाद आई भारतीय सिनेमा की सबसे हिट फिल्म शोले, इस फिल्म में भी होली का तड़का इस तरह इस्तमाल किया गया कि फिल्म को आज तक याद किया जाता है। होली के त्यौहार को सिनेमा में फिल्माना एक तरह से फिल्म का एहम हिस्सा बनता चला गया जो की आज भी अपनी एक खास पहचान रखता है, तीन घंटे की फिल्म अगर होली के रंग का तड़का न दिखे तो फिल्म ढीली और अधूरी सी लगती है, यही कारण है कि पिछले कई दशकों से रंगों के इस त्यौहार को सिनेमा में अच्छे से इस्तमाल किया जाता रहा है, ये सिलसिला तो तबसे शुरू हुआ है जब फिल्म ब्लैक एंड वाइट में आती थी। साल 2013 में आई फिल्म 'ये जवानी है दिवानी' में ",बलम पिचकारी जो तुने मुझे मारी, तो सीधी साधी छोरी शराबी हो गई", आज-कल के नौजवानों की पहली पसंद बना हुआ है और हो भी क्यों न क्योंकि होली में हर दिन नौजवां हो जाता है। हाल ही में सुपरहिट हुई फिल्म जॉली एल.एल.बी 2, में भी होली को विशेष स्थान दिया गया है। मतलब साफ है कि होली के त्यौहार को हर निर्देशक हर लेखक अपनी फिल्मों में जगह देना पसंद करता है क्योंकि इस त्यौहार का हमारी हिंदी सिनेमा से बहुत गहरा रिश्ता है, ऐसा रिश्ता जिसे 50 से ज्यादा साल हो गए है लेकिन उसकी महत्वता आज भी वैसी ही है।